ETV Bharat / state

Birsa Munda Jayanti: धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती, अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था आंदोलन का बिगुल

आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने झारखंड में 19वीं शताब्दी में अपने क्रांतिकारी गतिविधियों से समाज की दशा और दिशा बदलकर रख दी थी. बिरसा मुंडा जयंती पर हर आम और खास आज उन्हें नमन कर रहा है.

birth anniversary of lord birsa munda today
रांची
author img

By

Published : Nov 15, 2022, 8:54 AM IST

रांची: झारखंड में भगवान की तरह पूजे जानेवाले धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती है. बिरसा मुंडा कितने बड़े जननायक रहे, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इनके नाम पर राज्य में कई योजनाएं चलती हैं, संसद भवन में भी इनकी प्रतिमा स्थापित है. राज्यवासी हर मौके पर धरती आबा बिरसा मुंडा को बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हैं और राज्य में हर जगह इनका नाम बड़े अदब से लिया जाता है.

इसे भी पढ़ें- Birsa Munda Jayanti: भगवान बिरसा मुंडा की समाधि स्थल पहुंचे राज्यपाल और सीएम, दी श्रद्धांजलि

नेतृत्वकर्ता थे बिरसाः बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था. इनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए, जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थे. आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गए. उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसारा. उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की.

1894 में फूंका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुलः 1894 में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में दो साल बंद रहे. इस दौरान 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे. उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं.

पड़ोसी राज्यों में भी पूजनीय हैं बिरसाः फरवरी 1900 में अंगेजी सेनाओं ने चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची जेल में ली. झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है. बिरसा मुंडा की समाधि रांची के कोकर में स्थित है.

रांची: झारखंड में भगवान की तरह पूजे जानेवाले धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती है. बिरसा मुंडा कितने बड़े जननायक रहे, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इनके नाम पर राज्य में कई योजनाएं चलती हैं, संसद भवन में भी इनकी प्रतिमा स्थापित है. राज्यवासी हर मौके पर धरती आबा बिरसा मुंडा को बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हैं और राज्य में हर जगह इनका नाम बड़े अदब से लिया जाता है.

इसे भी पढ़ें- Birsa Munda Jayanti: भगवान बिरसा मुंडा की समाधि स्थल पहुंचे राज्यपाल और सीएम, दी श्रद्धांजलि

नेतृत्वकर्ता थे बिरसाः बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था. इनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए, जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थे. आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गए. उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसारा. उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की.

1894 में फूंका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुलः 1894 में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में दो साल बंद रहे. इस दौरान 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे. उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं.

पड़ोसी राज्यों में भी पूजनीय हैं बिरसाः फरवरी 1900 में अंगेजी सेनाओं ने चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची जेल में ली. झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है. बिरसा मुंडा की समाधि रांची के कोकर में स्थित है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.