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BAU Research on Apple Cultivation: झारखंड में सेब की खेती की संभावना पर प्रयोग, हिमाचल से लाए पौधों में फूल आने से वैज्ञानिक उत्साहित

झारखंड में सेब की खेती की संभावना पर प्रयोग किया जा रहा है. इसको लेकर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) हिमाचल से लाकर लगाए गए 150 सेब के पौधों की देखभाल कर रहा है. अब इसमें फूल आने से बीएयू के वैज्ञानिक काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं.

Birsa Agriculture University experimenting on possibility of apple cultivation in Jharkhand
झारखंड में सेब की खेती की संभावना पर प्रयोग कर रहा है बीएयू
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Published : Mar 10, 2023, 7:05 AM IST

Updated : Mar 10, 2023, 7:32 AM IST

देखें पूरी खबर

रांचीः वैसे तो सेब को ठंडे प्रदेशों में उपजने वाला फल माना जाता है. फूल से फल बनने के समय बर्फबारी होना जरूरी माना जाता है. लेकिन पिछले कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश की एक प्रजाति को गर्म प्रदेश में फल देने वाला सेब की प्रजाति बताकर खूब प्रसिद्धि मिली है. ऐसे में क्या वास्तव में झारखंड जैसे प्रदेश में जहां उच्चतम तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक जाता है, वहां सेब का उत्पादन हो सकता है. इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यानिकी विभाग ने गर्म जलवायु में होने वाले सेब को लेकर एक रिसर्च शुरू किया है.

इसे भी पढ़ें- कश्मीर और हिमाचल के बाद झारखंड में सेब की खेती, बंजर जमीन पर लगाए जाएंगे एप्पल फार्म

इसके पहले चरण में हिमाचल से लो चिलिंग वैराइटी की चार प्रजातियों के 150 पौधों को लाकर बीएयू के मुख्य बगान और वेटनरी कॉलेज के बगीचे में लगाया गया है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के बागवानी विभाग के कर्मचारी और कृषि वैज्ञानिक यह देखकर उत्साहित हैं कि एक साल में ही सेब के पौधों में फ्लावरिंग यानि फूल आना शुरू हो गया है. दिन-रात इन पौधों की सेवा करने वाले कर्मचारी ललकू महतो कहते हैं कि जब फूल आया है तो इसमें फल भी जरूर आएगा.

बीएयू के बागवानी विभाग के हेड डॉ. संयत मिश्रा कहते हैं कि बीएयू का रिसर्च सिर्फ इतना भर नहीं है कि गर्म जलवायु में इन सेब के पौधों में फल आते है या नहीं. उन्होंने कहा कि यह भी रिसर्च का विषय है कि जो सेब के फल हमें प्राप्त होगा, उसकी मात्रा प्रति पौधा कितनी होती है, फलों की स्वाद, उनकी गुणवत्ता कैसी है. डॉ. संयत मिश्रा कहते हैं कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को इसलिए रिसर्च करना पड़ रहा है क्योंकि अभी राज्य के कुछ प्रगतिशील किसान सीधे हिमाचल से गर्म प्रदेश में लगने वाले सेब के फलों को लगा रहे हैं.

किसान सेब का पौधा तो लगा रहे हैं लेकिन झारखंड की जलवायु में सेब की खेती को लेकर कोई प्रामाणिक आंकड़ा या रिपोर्ट नहीं है. ऐसे में अगर किसान पैसा लगाकर अपने खेतों में सेब की वैराइटी लगाए और तीन-चार साल बाद उसमें फल न आये या फिर उसकी क्वालिटी खराब निकल जाए तो किसानों का काफी नुकसान होगा. इसलिए बीएयू पहले अपने यहां गर्म जलवायु में सेब की खेती की संभावना और अनुशंसित प्रजाति विषय पर शोध कर रहा है.

डॉ. संयत मिश्रा कहते है कि अभी तक प्रयोग का नतीजा सकारात्मक रहा है. अगर हमारे सभी मानकों पर रिसर्च सफल रहा तो कृषि विश्वविद्यालय सेब की प्रभेदों को राज्य के किसानों के लिए अनुशंसित करेगा. बीएयू में गर्म प्रदेश में होने वाले सेब की खेती को लेकर चल रहे प्रयोग का प्रारंभिक रिपोर्ट उत्साहित करने वाला है. अगर प्रयोग सफल रहा तो संभव है कि आने वाले दिनों में झारखंड के फल बाजार में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में उत्पादित सेब के साथ साथ झारखंड का सेब भी दिखे. झारखंड में सेब की खेती से जहां यहां के किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, वहीं कुपोषण से निपटने में भी यह मददगार होगा.

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रांचीः वैसे तो सेब को ठंडे प्रदेशों में उपजने वाला फल माना जाता है. फूल से फल बनने के समय बर्फबारी होना जरूरी माना जाता है. लेकिन पिछले कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश की एक प्रजाति को गर्म प्रदेश में फल देने वाला सेब की प्रजाति बताकर खूब प्रसिद्धि मिली है. ऐसे में क्या वास्तव में झारखंड जैसे प्रदेश में जहां उच्चतम तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक जाता है, वहां सेब का उत्पादन हो सकता है. इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यानिकी विभाग ने गर्म जलवायु में होने वाले सेब को लेकर एक रिसर्च शुरू किया है.

इसे भी पढ़ें- कश्मीर और हिमाचल के बाद झारखंड में सेब की खेती, बंजर जमीन पर लगाए जाएंगे एप्पल फार्म

इसके पहले चरण में हिमाचल से लो चिलिंग वैराइटी की चार प्रजातियों के 150 पौधों को लाकर बीएयू के मुख्य बगान और वेटनरी कॉलेज के बगीचे में लगाया गया है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के बागवानी विभाग के कर्मचारी और कृषि वैज्ञानिक यह देखकर उत्साहित हैं कि एक साल में ही सेब के पौधों में फ्लावरिंग यानि फूल आना शुरू हो गया है. दिन-रात इन पौधों की सेवा करने वाले कर्मचारी ललकू महतो कहते हैं कि जब फूल आया है तो इसमें फल भी जरूर आएगा.

बीएयू के बागवानी विभाग के हेड डॉ. संयत मिश्रा कहते हैं कि बीएयू का रिसर्च सिर्फ इतना भर नहीं है कि गर्म जलवायु में इन सेब के पौधों में फल आते है या नहीं. उन्होंने कहा कि यह भी रिसर्च का विषय है कि जो सेब के फल हमें प्राप्त होगा, उसकी मात्रा प्रति पौधा कितनी होती है, फलों की स्वाद, उनकी गुणवत्ता कैसी है. डॉ. संयत मिश्रा कहते हैं कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को इसलिए रिसर्च करना पड़ रहा है क्योंकि अभी राज्य के कुछ प्रगतिशील किसान सीधे हिमाचल से गर्म प्रदेश में लगने वाले सेब के फलों को लगा रहे हैं.

किसान सेब का पौधा तो लगा रहे हैं लेकिन झारखंड की जलवायु में सेब की खेती को लेकर कोई प्रामाणिक आंकड़ा या रिपोर्ट नहीं है. ऐसे में अगर किसान पैसा लगाकर अपने खेतों में सेब की वैराइटी लगाए और तीन-चार साल बाद उसमें फल न आये या फिर उसकी क्वालिटी खराब निकल जाए तो किसानों का काफी नुकसान होगा. इसलिए बीएयू पहले अपने यहां गर्म जलवायु में सेब की खेती की संभावना और अनुशंसित प्रजाति विषय पर शोध कर रहा है.

डॉ. संयत मिश्रा कहते है कि अभी तक प्रयोग का नतीजा सकारात्मक रहा है. अगर हमारे सभी मानकों पर रिसर्च सफल रहा तो कृषि विश्वविद्यालय सेब की प्रभेदों को राज्य के किसानों के लिए अनुशंसित करेगा. बीएयू में गर्म प्रदेश में होने वाले सेब की खेती को लेकर चल रहे प्रयोग का प्रारंभिक रिपोर्ट उत्साहित करने वाला है. अगर प्रयोग सफल रहा तो संभव है कि आने वाले दिनों में झारखंड के फल बाजार में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में उत्पादित सेब के साथ साथ झारखंड का सेब भी दिखे. झारखंड में सेब की खेती से जहां यहां के किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, वहीं कुपोषण से निपटने में भी यह मददगार होगा.

Last Updated : Mar 10, 2023, 7:32 AM IST
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