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SPECIAL: बदहाली की मार झेल रहा है खादी ग्रामोद्योग, प्रशासन से लगाई मदद की गुहार - रांची के खादी ग्रामोद्योग की स्थिति जर्जर

रांची के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर नागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान बदहाली की मार झेल रहा है और इस संस्थान में काम करने वाले प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे है. संस्थान के संचालक का कहना है कि अगर बकाया राशि सरकार की ओर से संस्थान को मिल जाए तो संस्थान का कायाकल्प हो जाएगा.

bad condition of Khadi Village Industries in ranchi
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Published : Oct 2, 2020, 6:23 AM IST

रांची: जिस स्वावलंबी समाज की गांधी जी ने परिकल्पना की थी, उसी समाज को तैयार करता है धुर्वा के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर नागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान. इस संस्थान की स्थापना देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से 1928 में की गई. लेकिन इस संस्थान की नींव देश के राष्ट्रपिता और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने 1917 में ही रखी थी और तब से लेकर अभी तक यह संस्थान गांधी जी के विचारों पर चलने का काम कर रहा है. आज भी इस संस्थान में चरखे और हस्त करघाह पर सूती की बुनाई देखने को मिलती है.

देखें स्पेशल स्टोरी

लोगों को रोजगार देने में अहम भूमिका

इस संस्था में 40 वर्षों से अपनी सेवा दे रहे श्याम किशोर लाल बताते हैं कि गांधीजी के विचारों को आगे तक ले जाने का काम यह संस्था कर रहा है और यह संस्था से सूती के कपड़े का ही नहीं बल्कि बेरोजगारी को रोजगार देने में भी अहम भूमिका निभाने का काम कर रहा है. क्योंकि इस संस्थान में कोई भी काम मशीन से नहीं बल्कि मजदूरों के हाथों से होती है. खादी के कपड़े बनाने के लिए पहले किसानों से कोकून खरीदा जाता है. उसके बाद उस कोकून से सुते को निकाला जाता है और फिर उसे हस्तकरघाह और चरखे पर मजदूरों की ओर से बुनने का काम किया जाता है, जिसके बाद उस बुने हुए कपड़ो को फिनिशिंग के लिए बाहर भेजा जाता है. फिर वह कपड़ा बनकर तैयार होता है, जिसे हम खादी के कपड़े के रूप में उपयोग करते हैं. इस कपड़े को बनाने में मशीन से ज्यादा मजदूरों के कारीगिरी की जरूरत पड़ती है. जिस वजह से बेरोजगारों को रोजगार मिलता है.

बदहाली की मार झेल रहे कारीगर

गांधी जी के सपनों का यह संस्थान आज बदहाली की मार झेल रहा है, जिस संस्थान के कर्मचारी अपने दिन की शुरुआत गांधी जी के भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए' और 'रघुपति राघव राजा राम' जैसे शब्दों से करते हैं. आज वही कर्मचारी आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. 24 एकड़ में फैला इस संस्थान में एक समय कई कुटीर उद्योग चलते थे, जैसे मधु प्रोडक्शन उद्योग, सरसों तेल घानी उद्योग इत्यादि इस संस्था में बनते थे और हजारों युवकों को रोजगार मिलता था, जो गांधी जी के स्वावलंबी समाज के सपनों को कहीं न कहीं साकार कर रहा था. लेकिन सरकार की उदासीनता और लापरवाही से आज ये संस्थान मजबूर होकर गांधी के सिद्धांतों पर चलने के लिये कमजोर पड़ रहा है.

मेहनत के हिसाब से कम है मजदूरी

संस्थान के संचालक अभय कुमार चौधरी के दृढ़ संकल्प की वजह से संस्थान आज भी खादी के कपड़ो का लगातार निर्माण कर रहा है, जिससे आसपास रहने वाली कई महिलाएं और बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है. इस संस्थान में काम करने वाली महिलाएं बताती है कि प्रतिदिन खादी के कपड़ों को काट-छांट कर हम लोग कुर्ता-पजामा और अन्य डिजाइन के कपड़े बनाने का काम करते हैं. लेकिन डिमांड अधिक नहीं होने के कारण हम लोगों को मजदूरी मेहनत के हिसाब से नहीं मिल पाती है.

ये भी पढ़ें: सरकार ने नहीं दिखाई दिलचस्पी, झारखंड को नहीं मिल पाई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेजबानी

सरकार से लगाई मदद की गुहार

संस्थान के उपाध्यक्ष उषा रानी बताती हैं कि हमारे संस्था और हमारे संस्था के लोगों की सोच आज भी गांधीजी के विचारों पर चलती है और उनके मार्गदर्शन पर चलती रहेगी. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहे हैं, जो जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये इस संस्था के प्रति उस पर सरकार खड़ी नहीं उतर पा रही है. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि जिस प्रकार से आज की तारीख में देश के प्रधानमंत्री खादी को बढ़ावा देने के लिए आगे आ रहे हैं उसके अनुरूप राज्य सरकार राज्य के खादी ग्राम उद्योग को बढ़ावा नहीं दे पा रही है. ऐसे में जरूरत है कि राज्य सरकार प्रचार-प्रसार के माध्यम से खादी के उपयोग को बढ़ाने के लिए प्रयास करें. ताकि देश की पहचान कहीं जाने वाली खादी को बढ़ावा मिल सके.

ये भी पढ़ें: प्रेझा फाउंडेशन के पहल से 112 नर्सिंग स्टूडेंट को मिली नौकरी, सीएम ने की तारीफ

सरकार के करोड़ों रुपए बकाया

जानकारी के अनुसार गांधी जी के सपनों के इस संस्थान का करोड़ों ड्यूज आज भी कई सरकारों के पास बकाया है, जिसमें बिहार सरकार, झारखंड सरकार और केंद्र सरकार शामिल है. अगर यह बकाया राशि सरकार की ओर से संस्थान को मिल जाए, तो संस्थान का कायाकल्प हो जाएगा और गांधी जी के मौत के 7 दशक बाद भी उनके सिद्धांतों को यह छोटानागपुर खादी ग्राम उद्योग संस्थान बेहतर तरीके से जिंदा रख सकते हैं.

गांधी की गरिमा है बरकरार

इस संस्थान को संचालित कर रहे अभय चौधरी के प्रयासों को देखकर यह जरूर कहा जा सकता है कि लाख विपरीत परिस्थिति हो जाए फिर भी यह संस्थान गांधी के सिद्धांतों को याद करता है और उस पर चलने को लगातार प्रयत्नशील है. भले ही सरकार की लापरवाही और समाज की उदासीनता के कारण रांची का तिरिल खादी ग्राम उद्योग गांधी के सपनो का समाज बनाने में कमजोर पड़ रहा हो. लेकिन गांधी के शहादत के 72 साल बाद भी हमारे बापू की प्रतिमा का पूजन कर ये संस्थान देश की गरिमा को जरूर बढ़ा रहे हैं.

रांची: जिस स्वावलंबी समाज की गांधी जी ने परिकल्पना की थी, उसी समाज को तैयार करता है धुर्वा के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर नागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान. इस संस्थान की स्थापना देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से 1928 में की गई. लेकिन इस संस्थान की नींव देश के राष्ट्रपिता और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने 1917 में ही रखी थी और तब से लेकर अभी तक यह संस्थान गांधी जी के विचारों पर चलने का काम कर रहा है. आज भी इस संस्थान में चरखे और हस्त करघाह पर सूती की बुनाई देखने को मिलती है.

देखें स्पेशल स्टोरी

लोगों को रोजगार देने में अहम भूमिका

इस संस्था में 40 वर्षों से अपनी सेवा दे रहे श्याम किशोर लाल बताते हैं कि गांधीजी के विचारों को आगे तक ले जाने का काम यह संस्था कर रहा है और यह संस्था से सूती के कपड़े का ही नहीं बल्कि बेरोजगारी को रोजगार देने में भी अहम भूमिका निभाने का काम कर रहा है. क्योंकि इस संस्थान में कोई भी काम मशीन से नहीं बल्कि मजदूरों के हाथों से होती है. खादी के कपड़े बनाने के लिए पहले किसानों से कोकून खरीदा जाता है. उसके बाद उस कोकून से सुते को निकाला जाता है और फिर उसे हस्तकरघाह और चरखे पर मजदूरों की ओर से बुनने का काम किया जाता है, जिसके बाद उस बुने हुए कपड़ो को फिनिशिंग के लिए बाहर भेजा जाता है. फिर वह कपड़ा बनकर तैयार होता है, जिसे हम खादी के कपड़े के रूप में उपयोग करते हैं. इस कपड़े को बनाने में मशीन से ज्यादा मजदूरों के कारीगिरी की जरूरत पड़ती है. जिस वजह से बेरोजगारों को रोजगार मिलता है.

बदहाली की मार झेल रहे कारीगर

गांधी जी के सपनों का यह संस्थान आज बदहाली की मार झेल रहा है, जिस संस्थान के कर्मचारी अपने दिन की शुरुआत गांधी जी के भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए' और 'रघुपति राघव राजा राम' जैसे शब्दों से करते हैं. आज वही कर्मचारी आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. 24 एकड़ में फैला इस संस्थान में एक समय कई कुटीर उद्योग चलते थे, जैसे मधु प्रोडक्शन उद्योग, सरसों तेल घानी उद्योग इत्यादि इस संस्था में बनते थे और हजारों युवकों को रोजगार मिलता था, जो गांधी जी के स्वावलंबी समाज के सपनों को कहीं न कहीं साकार कर रहा था. लेकिन सरकार की उदासीनता और लापरवाही से आज ये संस्थान मजबूर होकर गांधी के सिद्धांतों पर चलने के लिये कमजोर पड़ रहा है.

मेहनत के हिसाब से कम है मजदूरी

संस्थान के संचालक अभय कुमार चौधरी के दृढ़ संकल्प की वजह से संस्थान आज भी खादी के कपड़ो का लगातार निर्माण कर रहा है, जिससे आसपास रहने वाली कई महिलाएं और बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है. इस संस्थान में काम करने वाली महिलाएं बताती है कि प्रतिदिन खादी के कपड़ों को काट-छांट कर हम लोग कुर्ता-पजामा और अन्य डिजाइन के कपड़े बनाने का काम करते हैं. लेकिन डिमांड अधिक नहीं होने के कारण हम लोगों को मजदूरी मेहनत के हिसाब से नहीं मिल पाती है.

ये भी पढ़ें: सरकार ने नहीं दिखाई दिलचस्पी, झारखंड को नहीं मिल पाई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेजबानी

सरकार से लगाई मदद की गुहार

संस्थान के उपाध्यक्ष उषा रानी बताती हैं कि हमारे संस्था और हमारे संस्था के लोगों की सोच आज भी गांधीजी के विचारों पर चलती है और उनके मार्गदर्शन पर चलती रहेगी. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहे हैं, जो जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये इस संस्था के प्रति उस पर सरकार खड़ी नहीं उतर पा रही है. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि जिस प्रकार से आज की तारीख में देश के प्रधानमंत्री खादी को बढ़ावा देने के लिए आगे आ रहे हैं उसके अनुरूप राज्य सरकार राज्य के खादी ग्राम उद्योग को बढ़ावा नहीं दे पा रही है. ऐसे में जरूरत है कि राज्य सरकार प्रचार-प्रसार के माध्यम से खादी के उपयोग को बढ़ाने के लिए प्रयास करें. ताकि देश की पहचान कहीं जाने वाली खादी को बढ़ावा मिल सके.

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सरकार के करोड़ों रुपए बकाया

जानकारी के अनुसार गांधी जी के सपनों के इस संस्थान का करोड़ों ड्यूज आज भी कई सरकारों के पास बकाया है, जिसमें बिहार सरकार, झारखंड सरकार और केंद्र सरकार शामिल है. अगर यह बकाया राशि सरकार की ओर से संस्थान को मिल जाए, तो संस्थान का कायाकल्प हो जाएगा और गांधी जी के मौत के 7 दशक बाद भी उनके सिद्धांतों को यह छोटानागपुर खादी ग्राम उद्योग संस्थान बेहतर तरीके से जिंदा रख सकते हैं.

गांधी की गरिमा है बरकरार

इस संस्थान को संचालित कर रहे अभय चौधरी के प्रयासों को देखकर यह जरूर कहा जा सकता है कि लाख विपरीत परिस्थिति हो जाए फिर भी यह संस्थान गांधी के सिद्धांतों को याद करता है और उस पर चलने को लगातार प्रयत्नशील है. भले ही सरकार की लापरवाही और समाज की उदासीनता के कारण रांची का तिरिल खादी ग्राम उद्योग गांधी के सपनो का समाज बनाने में कमजोर पड़ रहा हो. लेकिन गांधी के शहादत के 72 साल बाद भी हमारे बापू की प्रतिमा का पूजन कर ये संस्थान देश की गरिमा को जरूर बढ़ा रहे हैं.

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