रांची: झारखंड में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं. कुलपति नियुक्ति का मामला बिहार से झारखंड के अलग होने से पहले हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और पूरी नियुक्ति को ही रद्द कर दिया गया था. झारखंड में सात विश्वविद्यालय हैं. इनमें से तीन विश्वविद्यालयों में जल्द ही स्थाई कुलपति की नियुक्ति होना है. नियुक्ति की प्रक्रिया लंबी होती है और इस प्रक्रिया में योग्यता रखने वाले प्रोफेसर ही शामिल हो सकते हैं.
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झारखंड के विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति को लेकर हमेशा ही पारदर्शिता बरतने की बात की जाती है. इसे लेकर यूजीसी के दिशा निर्देश पर राजभवन की ओर से एक कमेटी गठित की जाती है. तीन सदस्यीय यह कमेटी अहर्ता रखने वाले योग्य उम्मीदवारों को सर्च करती है और आवेदन मांगा जाता है.
देश के सभी राज्यों के योग्य उम्मीदवार कुलपति नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते हैं. 3 सदस्यीय टीम की ओर से आवेदनों की स्क्रुटनी कर नाम से संबंधित अभ्यर्थी का पूरा विवरण राजभवन को भेजा जाता है. उसके बाद कुलाधिपति राज्य सरकार से विचार विमर्श कर अंतिम मुहर लगाते हैं. कुलपति बनने के लिए योग्यता के साथ-साथ प्रोफेसर पद पर 10 वर्षों का अनुभव जरूरी है.
कुलपति की नियुक्ति पर कई बार सवाल खड़े
कुलपति नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी और पूरे प्रक्रिया पर भी कई बार सवाल खड़ा किए गए हैं. शिक्षाविद का कहना है कि सर्च कमेटी में बनाए गए मेंबर की उतनी योग्यता ही नहीं होती, जो कुलपतियों को नियुक्त कर सके, सबसे पहले सर्च कमेटी में सुधार करने की आवश्यकता है.
सदस्यों को कुलपति से भी अधिक योग्यता होना चाहिए, इसमें कई विसंगतियां हैं. कुलपति नियुक्ति में पैसों का खेल होने का आरोप भी शिक्षाविदों ने लगाया है. उन्होंने कहा कि कई बार राजभवन की ओर से भी मनमानी की गई है और राज्य सरकार से सहमति नहीं ली गई है, बिहार का एक उदाहरण है, जब मामला हाई कोर्ट से होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी बहाली को रोक दिया था.
उसके बाद झारखंड में अलग से कानून बनाया गया है कि राज्य सरकार की सहमति के बगैर कुलपति की नियुक्ति राज्यपाल नहीं कर सकता है और यह विवाद डॉ सैयद अहमद के राज्यपाल रहते शुरू हुआ था, उस दौरान गीताश्री उरांव को वीसी बनाने की कवायद तेज की गई थी.
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दलगत राजनीति भी कुलपति नियुक्ति में रहता है हावी
वहीं दूसरी ओर दलगत राजनीति भी कुलपति नियुक्ति में हावी होता है. कभी-कभी राजनीतिक पार्टियां अपने चहेते शिक्षाविदों को कुलपति बनाने के लिए एड़ी चोटी एक कर देती हैं और यह भी एक बड़ी विसंगती है. विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षाविदों ने कमेटी के पैनल को उच्च कोटि का बनाने की मांग की है.
झारखंड में भी कुछ कुलपतियों की नियुक्ति, नियम के विरुद्ध हुई हैं, जिसमें राजनीतिक पार्टियां हावी दिखी हैं. वहीं कई बार राजनीतिक पार्टियों पर राजभवन भी हावी हुआ है. इसमें योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि किसी खास जाति विचार और राजनीतिक पार्टी के साथ सांठगांठ की वजह से नियुक्ति कर दी गई है.
राजभवन ने लिए हैं कई बार बेहतर फैसले
हालांकि पारदर्शिता के लिए कई बार राजभवन की ओर से बेहतर फैसले भी लिए गए हैं, जिसका उदाहरण भी झारखंड में है. झारखंड में 3 विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है, जिसमें राज्य का सबसे पुराना विश्वविद्यालय रांची विश्वविद्यालय भी है. वर्तमान में इस विश्वविद्यालय में प्रभारी कुलपति के रूप में कामिनी कुमार काम कर रही हैं, जिन्हें राजभवन की ओर से नियुक्त किया गया है. वहीं डीएसपीएमयू और विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के वीसी की नियुक्ति के लिए एक सर्च कमेटी का गठन भी किया गया है, जिसके जरिए स्थाई रूप से कुलपतियों की नियुक्ति होनी है.
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समय पर प्रोफेसरों को नहीं मिलता है प्रमोशन
झारखंड के 3 विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति होना है. शिक्षाविदों का मानना है कि इस बार भी झारखंड के प्रोफेसर कुलपति नहीं बनाए जाएंगे, क्योंकि यहां के प्रोफेसर इसके अहर्ता पूरा नहीं करते हैं. 10 वर्षों का अनुभव मांगा जा रहा है और झारखंड में ऐसे प्रोफेसरों की संख्या मात्र चार से पांच ही है.
यही वजह है कि कुलपतियों के लिए आवेदन आते हैं, तो अधिक से अधिक आवेदन दूसरे राज्यों के प्रोफेसर करते हैं. इसका जीता जागता उदाहरण है सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति, जो पहले जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली की प्रोफेसर थी.
भले ही वो झारखंड के मूल निवासी हैं, लेकिन वह दिल्ली कैडर की प्रोफेसर हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार प्रमोशन को लेकर कितने संजीदा है. टाइमबॉन्ड प्रमोशन न मिलने की वजह से कई ऐसे शिक्षक हैं, जो प्रोफेसर बन ही नहीं पाते हैं. उसके बाद कार्य अनुभव नहीं रहने के कारण कुलपति पद के लिए वह आवेदन देने से चूक जाते हैं. या फिर उनके आवेदन को रिजेक्ट कर दिया जाता है. राज्य के अधिकतर विश्वविद्यालयों के कुलपति अन्य राज्यों के कैडर के प्रोफेसर हैं.