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ब्लैक, व्हाइट के बाद अब येलो फंगस का भी खतरा, रिपोर्ट में जानें अंतर और उपचार का तरीका

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Published : May 25, 2021, 10:50 PM IST

Updated : May 26, 2021, 2:17 PM IST

कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को एक के बाद एक जानलेवा बीमारी जकड़ रही है. पहले ब्लैक, व्हाइट और अब येलो फंगस ने दस्तक दे दी है. इसके अलावा एक नई बीमारी एमआईएससी यानी मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम भी बच्चों को चपेट में ले रहा है. इसे विस्तार से समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है.

black, white and yellow fungus
ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस

रांची: कोरोना की दूसरी लहर में एक तरफ हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई है. वहीं, दूसरी तरफ कोरोना से ठीक हो चुके कई मरीज पोस्ट कोविड इफेक्ट से परेशान हैं. कई लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं. ब्लैक फंगस से कई लोगों की जान भी गई है. ब्लैक फंगस के केस लगातार आ ही रहे हैं कि इस बीच व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आ गए. 24 घंटे पहले येलो फंगस का भी एक मामला सामने आया है. ऐसे में यह सवाल है कि ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस क्या है. इसके अलावा एक नई बीमारी एमआईएससी यानी मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम ने भी दस्तक दी है. ये चारों बीमारी क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

ब्लैक और व्हाइट फंगस में क्या है अंतर?

ब्लैक फंगस नाक से होकर आंखों तक पहुंच जाता है और वह आंखों को डैमेज करने लगता है. इससे डबल विजन की समस्या खड़ी हो जाती है. इसके साथ ही धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होने लगती है. इस समय रहते सचेत होने की जरूरत है. डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि अगर इस तरह का कोई लक्षण किसी मरीज में मिलता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. समय रहते अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो जान भी जा सकती है. ब्लैक फंगस के ज्यादातर केस उन मरीजों में सामने आ रहे हैं जिन्हें कोरोना हुआ है. कोरोना के दौरान कुछ मरीजों को ठीक करने के लिए डॉक्टर स्टेरॉयड का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे मरीजों को ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस आंखों और ब्रेन को ज्यादा प्रभावित करता है. ब्लैक फंगस में डेथ रेट 50% के आसपास है. मतलब यह कि औसतन ब्लैक फंगस के शिकार हर दूसरे मरीज की मौत हो जा रही है.

व्हाइट फंगस श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालता है. हमारे शरीर के श्वसन प्रणाली से जुड़े अंग इससे प्रभावित होते हैं. व्हाइट फंगस के केस उन मरीजों में भी संभव है जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है. यह फंगस फेफड़ा, किडनी, हार्ट, आंत और पेट को प्रभावित करता है. अगर एक बार व्हाइट फंगस खून में आ जाए तो यह खून के जरिये फेफड़ा, हार्ट, किडनी, आंत, पेट समेत सभी अंगों में फैल सकता है. व्हाइट फंगस से मृत्यु दर को लेकर अभी कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इसको लेकर अभी रिसर्च की जा रही है.

ब्लैक फंगस को लेकर क्या कहते हैं डॉक्टर?

कोरोना से ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस जैसे खतरनाक बीमारी से बचने के लिए रांची के प्रसिद्ध ईएनटी (आंख, कान और गला रोग विशेषज्ञ) स्पेशलिस्ट डॉ. समित लाल का कहना है कि जैसे ही कोई मरीज कोरोना से संक्रमित होता है, उसे शुगर लेवल का ध्यान रखना चाहिए. कोरोना से ठीक और शुगर वाले मरीजों को इसका ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के लिए एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन रामबाण माना जाता है. लेकिन जिस तरह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से इंजेक्शन अभी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में डॉक्टर वैकल्पिक दवा लगाने को मजबूर हैं लेकिन लगातार एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन की मांग की जा रही है.

व्हाइट फंगस को लेकर डॉक्टरों की राय

रांची के डॉक्टर प्रभात कुमार के मुताबिक व्हाइट फंगस (कैंडिडोसिस) कोई नया फंगस नहीं है बल्कि इसके केस कोरोना काल से पहले भी बड़ी संख्या में मिलते रहे हैं. यह शरीर के कई अंगों में फैल सकता है. इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और इस वजह से यह फंगस खतरनाक हो जाता है. डायबिटीज से पीड़ित मरीज या फिर वैसे मरीज जो लंबे समय से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें इस फंगस का खतरा ज्यादा है. व्हाइट फंगस ब्लैक फंगस की तरह खतरनाक नहीं होता लेकिन अगर यह फेफड़े या पेट तक पहुंच जाए तो काफी दिक्कत हो सकती है. व्हाइट फंगस शरीर के जिस हिस्से में संक्रमण करता है, उसके हिसाब से कई एंटीफंगल दवाएं उपलब्ध हैं.

डॉक्टर यह लगतार सलाह दे रहे हैं कि ब्लैक और व्हाइट फंगस में कोई भी लक्षण शरीर में देखे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. शुरुआती दौर में अगर इसका इलाज नहीं हो सका तो आगे जाकर यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है. ब्लैक फंगस में मौत का खतरा थोड़ा ज्यादा होता है. कोरोना से उबरे मरीज खासतौर पर अपना ख्याल रखें.

क्या है येलो फंगस?

डॉक्टरों के मुताबिक यह ब्लैक और व्हाइट फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है. चूंकि यह बीमारी नई है तो इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में इसका पहला केस सामने आया है. ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर बीपी त्यागी का कहना है कि यह बीमारी सरीसृप यानी रेपटाइल्स में पाए जाते हैं. पहली बार इस तरह की बीमारी इंसानों में देखी गई है. डॉ. त्यागी के मुताबिक इसका एक मात्र इलाज एम्फोटेरासिन इंजेक्शन है. लेकिन ब्लैक और व्हाइट फंगस की तुलना में इस बीमारी में घाव भरने में ज्यादा वक्त लगता है.

येलो फंगस के लक्षण

  • सुस्ती, कम भूख या बिल्कुल भूख नहीं लगना और वजन कम होना
  • शरीर में घावों का जल्द ठीक नहीं होना और घाव से मवाद बहना
  • शरीर दर्द करना और कमजोरी महसूस होना
  • अचानक दिल का धड़कन बढ़ जाना
  • नाक बंद होना और शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना

येलो फंगस से बचाव के तरीके

  • घर में और आसपास साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें
  • कोरोना से ठीक हुए मरीज विशेष सतर्कता बरतें
  • घर में नमी को नॉर्मल रखें, 30-40 फीसदी से ज्यादा नमी खतरनाक हो सकती है
  • हेल्दी खाना खाएं और खूब पानी पीएं
  • इम्यूनिटी को मजबूत करने वाले खाने पर विशेष ध्यान दें

ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब MIS-C का खतरा

डॉक्टरों ने इस बात की संभावना जताई कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. तीसरी लहर से पहले ही 20 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पोस्ट कोविड एक बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी का नाम है एमआईएस-सी यानि मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम. डॉ. राजेश कुमार के मुताबिक एमआईएस-सी एक इम्यूनो रिएक्शन डिजीज है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है तब अपने ही अंगों को खतरनाक रूप से प्रभावित करने लगता है. यह बीमारी इसलिए खतरनाक है क्योंकि यह बच्चों के हार्ट, लीवर, किडनी, त्वचा, आंख, फेफड़ा और आंतों को प्रभावित करता है. कई बार तो बच्चों के हार्ट की कोरोनरी आर्टरी को खराब कर देता है और पूरी जिंदगी के लिए बीमारी दे देता है.

क्या है MIS-C के लक्षण?

कोरोना संक्रमण से ठीक होने के दो से छः सप्ताह के बाद मुख्य रूप से 20 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यह बीमारी होती है. बच्चों को तेज बुखार आ जाता है. बच्चों के शरीर का तापमान 101 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर होता है. इस बीमारी में आंखें लाल हो जाती है. शरीर पर दाने आना, पेट दर्द, उल्टी, हाथ पैर में सूजन और डायरिया इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.

तीन दिन से अधिक बुखार रहे तो तुरंत डॉक्टर से करें संपर्क

डॉ. राजेश के मुताबिक एमआईएस-सी से पीड़ित बच्चे को तत्काल हॉस्पिटल में भर्ती कराना जरूरी है. जिन बच्चों को इस बीमारी के लक्षण हैं उनके पैरेंट्स डॉक्टर को यह बताएं कि क्या बच्चा पहले कोरोना से पीड़ित रहा है. अगर बच्चे को तीन दिन से अधिक बुखार रहे तो सचेत होने की जरूरत है. कई बार बच्चों को कोरोना हो जाता है और इसका पता नहीं चलता. ऐसे में ये बीमारी और ज्यादा खतरनाक रूप ले सकती है.

इलाज महंगी, लेकिन समय पर पहुंचे तो बच सकती है जान

डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि यह बीमारी नई है और करीब 50% बच्चों में इसका पता भी नहीं चलता. यह बीमारी इसलिए भी जटिल है क्योंकि लगभग सभी जांच रिपोर्ट नॉर्मल आती है. एंटीबाडी टेस्ट, सीआरपी टेस्ट, ईको जैसे टेस्ट से पता चलता है कि यह एमआईएस-सी है. इस बीमारी में एक लाख से ज्यादा का खर्च आता है. अगर समय से इस बीमारी का पता चल जाता है तो जान आसानी से बचाई जा सकती है.

कई बच्चे हो रहे इस बीमारी से प्रभावित

रांची के एक निजी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में एमआईएस-सी से पीड़ित आठ बच्चों का इलाज चल रहा है. एक बच्चे की मां मंजुला ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के 2 हफ्ते बाद ही मिहिर को बुखार आया और फिर डायरिया हो गया. इसी तरह अशोक नगर के 7 वर्षीय साद मोहसिन की मां सदफ मजहर ने बताया कि उन्हें तो पता ही नहीं चला कि सदफ को कब कोरोना हुआ. जब तेज बुखार आया तो कई डॉक्टरों से दिखाने के बाद पता चला कि इसे एमआईएस-सी है.

रांची: कोरोना की दूसरी लहर में एक तरफ हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई है. वहीं, दूसरी तरफ कोरोना से ठीक हो चुके कई मरीज पोस्ट कोविड इफेक्ट से परेशान हैं. कई लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं. ब्लैक फंगस से कई लोगों की जान भी गई है. ब्लैक फंगस के केस लगातार आ ही रहे हैं कि इस बीच व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आ गए. 24 घंटे पहले येलो फंगस का भी एक मामला सामने आया है. ऐसे में यह सवाल है कि ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस क्या है. इसके अलावा एक नई बीमारी एमआईएससी यानी मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम ने भी दस्तक दी है. ये चारों बीमारी क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

ब्लैक और व्हाइट फंगस में क्या है अंतर?

ब्लैक फंगस नाक से होकर आंखों तक पहुंच जाता है और वह आंखों को डैमेज करने लगता है. इससे डबल विजन की समस्या खड़ी हो जाती है. इसके साथ ही धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होने लगती है. इस समय रहते सचेत होने की जरूरत है. डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि अगर इस तरह का कोई लक्षण किसी मरीज में मिलता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. समय रहते अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो जान भी जा सकती है. ब्लैक फंगस के ज्यादातर केस उन मरीजों में सामने आ रहे हैं जिन्हें कोरोना हुआ है. कोरोना के दौरान कुछ मरीजों को ठीक करने के लिए डॉक्टर स्टेरॉयड का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे मरीजों को ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस आंखों और ब्रेन को ज्यादा प्रभावित करता है. ब्लैक फंगस में डेथ रेट 50% के आसपास है. मतलब यह कि औसतन ब्लैक फंगस के शिकार हर दूसरे मरीज की मौत हो जा रही है.

व्हाइट फंगस श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालता है. हमारे शरीर के श्वसन प्रणाली से जुड़े अंग इससे प्रभावित होते हैं. व्हाइट फंगस के केस उन मरीजों में भी संभव है जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है. यह फंगस फेफड़ा, किडनी, हार्ट, आंत और पेट को प्रभावित करता है. अगर एक बार व्हाइट फंगस खून में आ जाए तो यह खून के जरिये फेफड़ा, हार्ट, किडनी, आंत, पेट समेत सभी अंगों में फैल सकता है. व्हाइट फंगस से मृत्यु दर को लेकर अभी कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इसको लेकर अभी रिसर्च की जा रही है.

ब्लैक फंगस को लेकर क्या कहते हैं डॉक्टर?

कोरोना से ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस जैसे खतरनाक बीमारी से बचने के लिए रांची के प्रसिद्ध ईएनटी (आंख, कान और गला रोग विशेषज्ञ) स्पेशलिस्ट डॉ. समित लाल का कहना है कि जैसे ही कोई मरीज कोरोना से संक्रमित होता है, उसे शुगर लेवल का ध्यान रखना चाहिए. कोरोना से ठीक और शुगर वाले मरीजों को इसका ज्यादा खतरा है. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के लिए एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन रामबाण माना जाता है. लेकिन जिस तरह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से इंजेक्शन अभी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में डॉक्टर वैकल्पिक दवा लगाने को मजबूर हैं लेकिन लगातार एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन की मांग की जा रही है.

व्हाइट फंगस को लेकर डॉक्टरों की राय

रांची के डॉक्टर प्रभात कुमार के मुताबिक व्हाइट फंगस (कैंडिडोसिस) कोई नया फंगस नहीं है बल्कि इसके केस कोरोना काल से पहले भी बड़ी संख्या में मिलते रहे हैं. यह शरीर के कई अंगों में फैल सकता है. इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और इस वजह से यह फंगस खतरनाक हो जाता है. डायबिटीज से पीड़ित मरीज या फिर वैसे मरीज जो लंबे समय से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें इस फंगस का खतरा ज्यादा है. व्हाइट फंगस ब्लैक फंगस की तरह खतरनाक नहीं होता लेकिन अगर यह फेफड़े या पेट तक पहुंच जाए तो काफी दिक्कत हो सकती है. व्हाइट फंगस शरीर के जिस हिस्से में संक्रमण करता है, उसके हिसाब से कई एंटीफंगल दवाएं उपलब्ध हैं.

डॉक्टर यह लगतार सलाह दे रहे हैं कि ब्लैक और व्हाइट फंगस में कोई भी लक्षण शरीर में देखे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. शुरुआती दौर में अगर इसका इलाज नहीं हो सका तो आगे जाकर यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है. ब्लैक फंगस में मौत का खतरा थोड़ा ज्यादा होता है. कोरोना से उबरे मरीज खासतौर पर अपना ख्याल रखें.

क्या है येलो फंगस?

डॉक्टरों के मुताबिक यह ब्लैक और व्हाइट फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है. चूंकि यह बीमारी नई है तो इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में इसका पहला केस सामने आया है. ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर बीपी त्यागी का कहना है कि यह बीमारी सरीसृप यानी रेपटाइल्स में पाए जाते हैं. पहली बार इस तरह की बीमारी इंसानों में देखी गई है. डॉ. त्यागी के मुताबिक इसका एक मात्र इलाज एम्फोटेरासिन इंजेक्शन है. लेकिन ब्लैक और व्हाइट फंगस की तुलना में इस बीमारी में घाव भरने में ज्यादा वक्त लगता है.

येलो फंगस के लक्षण

  • सुस्ती, कम भूख या बिल्कुल भूख नहीं लगना और वजन कम होना
  • शरीर में घावों का जल्द ठीक नहीं होना और घाव से मवाद बहना
  • शरीर दर्द करना और कमजोरी महसूस होना
  • अचानक दिल का धड़कन बढ़ जाना
  • नाक बंद होना और शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना

येलो फंगस से बचाव के तरीके

  • घर में और आसपास साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें
  • कोरोना से ठीक हुए मरीज विशेष सतर्कता बरतें
  • घर में नमी को नॉर्मल रखें, 30-40 फीसदी से ज्यादा नमी खतरनाक हो सकती है
  • हेल्दी खाना खाएं और खूब पानी पीएं
  • इम्यूनिटी को मजबूत करने वाले खाने पर विशेष ध्यान दें

ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब MIS-C का खतरा

डॉक्टरों ने इस बात की संभावना जताई कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. तीसरी लहर से पहले ही 20 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पोस्ट कोविड एक बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी का नाम है एमआईएस-सी यानि मल्टी सिस्टम इन्फ्लामेट्री सिंड्रोम. डॉ. राजेश कुमार के मुताबिक एमआईएस-सी एक इम्यूनो रिएक्शन डिजीज है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है तब अपने ही अंगों को खतरनाक रूप से प्रभावित करने लगता है. यह बीमारी इसलिए खतरनाक है क्योंकि यह बच्चों के हार्ट, लीवर, किडनी, त्वचा, आंख, फेफड़ा और आंतों को प्रभावित करता है. कई बार तो बच्चों के हार्ट की कोरोनरी आर्टरी को खराब कर देता है और पूरी जिंदगी के लिए बीमारी दे देता है.

क्या है MIS-C के लक्षण?

कोरोना संक्रमण से ठीक होने के दो से छः सप्ताह के बाद मुख्य रूप से 20 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यह बीमारी होती है. बच्चों को तेज बुखार आ जाता है. बच्चों के शरीर का तापमान 101 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर होता है. इस बीमारी में आंखें लाल हो जाती है. शरीर पर दाने आना, पेट दर्द, उल्टी, हाथ पैर में सूजन और डायरिया इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.

तीन दिन से अधिक बुखार रहे तो तुरंत डॉक्टर से करें संपर्क

डॉ. राजेश के मुताबिक एमआईएस-सी से पीड़ित बच्चे को तत्काल हॉस्पिटल में भर्ती कराना जरूरी है. जिन बच्चों को इस बीमारी के लक्षण हैं उनके पैरेंट्स डॉक्टर को यह बताएं कि क्या बच्चा पहले कोरोना से पीड़ित रहा है. अगर बच्चे को तीन दिन से अधिक बुखार रहे तो सचेत होने की जरूरत है. कई बार बच्चों को कोरोना हो जाता है और इसका पता नहीं चलता. ऐसे में ये बीमारी और ज्यादा खतरनाक रूप ले सकती है.

इलाज महंगी, लेकिन समय पर पहुंचे तो बच सकती है जान

डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि यह बीमारी नई है और करीब 50% बच्चों में इसका पता भी नहीं चलता. यह बीमारी इसलिए भी जटिल है क्योंकि लगभग सभी जांच रिपोर्ट नॉर्मल आती है. एंटीबाडी टेस्ट, सीआरपी टेस्ट, ईको जैसे टेस्ट से पता चलता है कि यह एमआईएस-सी है. इस बीमारी में एक लाख से ज्यादा का खर्च आता है. अगर समय से इस बीमारी का पता चल जाता है तो जान आसानी से बचाई जा सकती है.

कई बच्चे हो रहे इस बीमारी से प्रभावित

रांची के एक निजी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में एमआईएस-सी से पीड़ित आठ बच्चों का इलाज चल रहा है. एक बच्चे की मां मंजुला ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के 2 हफ्ते बाद ही मिहिर को बुखार आया और फिर डायरिया हो गया. इसी तरह अशोक नगर के 7 वर्षीय साद मोहसिन की मां सदफ मजहर ने बताया कि उन्हें तो पता ही नहीं चला कि सदफ को कब कोरोना हुआ. जब तेज बुखार आया तो कई डॉक्टरों से दिखाने के बाद पता चला कि इसे एमआईएस-सी है.

Last Updated : May 26, 2021, 2:17 PM IST
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