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त्रासदी के 36 साल : गैस पीड़ितों के लिए सबसे खतरनाक हुआ 'कोरोना काल',अब तक नहीं हट पाया जहरीला कचरा

भोपाल में ओद्यौगिक त्रासदी की वजह रही यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री के परिसर में दफन जहरीले कचरे को अब तक नहीं हटाया जा सका. जहरीले कचरे को न हटाए जाने की वजह से भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है और भोपाल की जनता के लिए ये एक त्रासदी बन सकती है, देखिए और पढ़िए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट..

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Published : Dec 3, 2020, 8:25 AM IST

गैस त्रासदी
गैस त्रासदी

भोपाल। विश्व की सबसे बड़ी भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस कांड को 36 साल बीत गए हैं. इतना लंबा वक्त बीतने के बाद भी शहर में स्थित यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री के परिसर में दफन जहरीले कचरे को अब तक नहीं हटाया जा सका. करीब पांच साल पहले इस जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाया गया, लेकिन इसके बाद से ही अब तक इसकी रिपोर्ट ही नहीं आ सकी. जहरीले कचरे को जलाने को लेकर स्थानीय स्तर पर हुए कड़े विरोध के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

त्रासदी के 36 साल

10 टन कचरा जलाया, रिपोर्ट आज तक नहीं मिली

2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुए गैस कांड में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग आज भी गैस कांड के दंश को झेल रहे हैं. गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री परिसर में मौजूद साढे़ तीन सौ टन कचरा फैक्ट्री में ही दफन है, जिसको नष्ट करने को लेकर अंतिम निर्णय आज तक नहीं हो पाया है.

यह भी पढ़ेंः सीएम इन एक्शनः आज करेंगे स्वास्थ्य-पर्यटन-खेल युवा मामलों की बैठक, 18 दिसंबर तक चलेगी विभागों की सिलसिलेवार समीक्षा

हालांकि, वर्ष 2015 में यूनियन कार्बाईड की मालिक कंपनी डाउ केमिकल के कारखाने में पड़े 10 टन कचरे को पीथमपुर स्थित एक कम्पनी में नष्ट करने के लिए भेजा गया. इसके बाद से ही पूरा मामला अटक गया है. कचरा जलाने के पर्यावरण पर किस तरह के दुष्प्रभाव पड़े और कचरे को किस हद तक नष्ट किया जा सका, इसकी रिपोर्ट ही तैयार नहीं हो सकी. भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी कहते हैं कि पूरा मामला केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बीच अटका हुआ है केंद्र चाहता है कि इसकी प्रक्रिया स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरी करे.

भू-जल को प्रदूषित कर रहा है जहरीला कचरा

भोपाल गैस पीड़ित संगठनों का आरोप है कि यूनियन कार्बाइड परिसर में सिर्फ साढे़ 300 टन जहरीला कचरा नहीं, बल्कि 20, हजार मैट्रिक टन जहरीला कचरा दबा हुआ है. इसके अलावा 21 स्थानों पर गड्ढे खोदकर उसमें कारखाने से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को दबा दिया गया था, सरकार को यह पूरा कचरा नष्ट करना चाहिए, लेकिन इतने साल बाद भी सरकार इस को लेकर गंभीर नहीं है. जहरीले कचरे को ना हटाए जाने की वजह से भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है. भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी के मुताबिक भारतीय विष विज्ञान संस्थान सहित अलग-अलग संस्थानों के 16 अध्ययन हो चुके हैं.

वर्ष 2004 में जहां जहरीले कचरे से 14 महीनों का भूजल प्रभावित था. वह अब 48 मोहल्लों तक पहुंच चुका है. जमीन के पानी का बहाव शहर की तरफ है और यही वजह है कि रेलवे स्टेशन तक का भूजल प्रभावित हो चुका है. वे कहते हैं कि जहरीले कचरे में कई ऐसे रसायन मौजूद हैं, जो सदियों तक अपनी विषाक्तता बनाए रख सकते हैं, इसलिए एक व्यापक अध्ययन के बाद जहरीले कचरे और भूजल की सफाई होना चाहिए. उधर गैस राहत एवं पर्यावरण विभाग के संचालक बसंत कुर्रे के मुताबिक पूरा मामला केंद्रीय स्तर से ही निपटाया जाना है. 2015 में पीथमपुर में 10 मैट्रिक टन कचरे को जलाया गया था, उसको लेकर फिलहाल रिपोर्ट का इंतजार है.

भोपाल। विश्व की सबसे बड़ी भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस कांड को 36 साल बीत गए हैं. इतना लंबा वक्त बीतने के बाद भी शहर में स्थित यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री के परिसर में दफन जहरीले कचरे को अब तक नहीं हटाया जा सका. करीब पांच साल पहले इस जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाया गया, लेकिन इसके बाद से ही अब तक इसकी रिपोर्ट ही नहीं आ सकी. जहरीले कचरे को जलाने को लेकर स्थानीय स्तर पर हुए कड़े विरोध के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

त्रासदी के 36 साल

10 टन कचरा जलाया, रिपोर्ट आज तक नहीं मिली

2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुए गैस कांड में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग आज भी गैस कांड के दंश को झेल रहे हैं. गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री परिसर में मौजूद साढे़ तीन सौ टन कचरा फैक्ट्री में ही दफन है, जिसको नष्ट करने को लेकर अंतिम निर्णय आज तक नहीं हो पाया है.

यह भी पढ़ेंः सीएम इन एक्शनः आज करेंगे स्वास्थ्य-पर्यटन-खेल युवा मामलों की बैठक, 18 दिसंबर तक चलेगी विभागों की सिलसिलेवार समीक्षा

हालांकि, वर्ष 2015 में यूनियन कार्बाईड की मालिक कंपनी डाउ केमिकल के कारखाने में पड़े 10 टन कचरे को पीथमपुर स्थित एक कम्पनी में नष्ट करने के लिए भेजा गया. इसके बाद से ही पूरा मामला अटक गया है. कचरा जलाने के पर्यावरण पर किस तरह के दुष्प्रभाव पड़े और कचरे को किस हद तक नष्ट किया जा सका, इसकी रिपोर्ट ही तैयार नहीं हो सकी. भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी कहते हैं कि पूरा मामला केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बीच अटका हुआ है केंद्र चाहता है कि इसकी प्रक्रिया स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरी करे.

भू-जल को प्रदूषित कर रहा है जहरीला कचरा

भोपाल गैस पीड़ित संगठनों का आरोप है कि यूनियन कार्बाइड परिसर में सिर्फ साढे़ 300 टन जहरीला कचरा नहीं, बल्कि 20, हजार मैट्रिक टन जहरीला कचरा दबा हुआ है. इसके अलावा 21 स्थानों पर गड्ढे खोदकर उसमें कारखाने से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को दबा दिया गया था, सरकार को यह पूरा कचरा नष्ट करना चाहिए, लेकिन इतने साल बाद भी सरकार इस को लेकर गंभीर नहीं है. जहरीले कचरे को ना हटाए जाने की वजह से भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है. भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी के मुताबिक भारतीय विष विज्ञान संस्थान सहित अलग-अलग संस्थानों के 16 अध्ययन हो चुके हैं.

वर्ष 2004 में जहां जहरीले कचरे से 14 महीनों का भूजल प्रभावित था. वह अब 48 मोहल्लों तक पहुंच चुका है. जमीन के पानी का बहाव शहर की तरफ है और यही वजह है कि रेलवे स्टेशन तक का भूजल प्रभावित हो चुका है. वे कहते हैं कि जहरीले कचरे में कई ऐसे रसायन मौजूद हैं, जो सदियों तक अपनी विषाक्तता बनाए रख सकते हैं, इसलिए एक व्यापक अध्ययन के बाद जहरीले कचरे और भूजल की सफाई होना चाहिए. उधर गैस राहत एवं पर्यावरण विभाग के संचालक बसंत कुर्रे के मुताबिक पूरा मामला केंद्रीय स्तर से ही निपटाया जाना है. 2015 में पीथमपुर में 10 मैट्रिक टन कचरे को जलाया गया था, उसको लेकर फिलहाल रिपोर्ट का इंतजार है.

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