ETV Bharat / state

कर्नाटक के परिणाम से गदगद कांग्रेस, क्या झारखंड में दोहरा पाएगी ऐतिहासिक जीत - Jharkhand news

कर्नाटक में मिली जीत के बाद भले ही कांग्रेस उत्साहित हो, लेकिन उसकी ये जीत बाकी राज्यों को प्रभावित कर पाएंगी इसमें राजनीतिक विशेषज्ञों को शक है. हर राज्य की अपनी अलग राजनीति होती है. ऐसे में अगर झारखंड की बात करें तो ये कहना मुश्किल है कि कांग्रेस राज्य में 2019 वाली ऐसिहासिक जीत को दोहरा पाए.

Congress historic victory in Jharkhand
डिजाइन इमेज
author img

By

Published : May 21, 2023, 9:38 AM IST

Updated : May 21, 2023, 10:11 AM IST

रांची: कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है. यहां मिले जीत का भले ही सीधे तौर पर झारखंड में कोई असर ना हो. लेकिन इससे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा का संचार तो हुआ ही है. जाहिर तौर पर पार्टी नेतृत्व इस जोश को अपने कैडर में भरेंगे. लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या इस नई ऊर्जा के साथ जब कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता जमीन पर जाएंगे तो उनके पास मुद्दे क्या होंगे. क्या वे एक बार फिर से 2019 वाली सफलता को दोहरा पाएंगे.

ये भी पढ़ें: Ranchi News: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से उत्साहित झामुमो, इशारों-इशारों में की बजरंग दल की आतंकी और उदंड संगठन से तुलना

2019 में कांग्रेस को झारखंड में सबसे बड़ी जीत मिली और यहां उसके 17 विधायक चुन कर आए. इससे पार्टी गदगद हुई, सरकार में इसे चार मंत्री पद भी मिले. सभी मंत्री दावा कर रहे हैं कि उन्होंने बेहतर काम किया है. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर पार्टी के प्रभारी ही सवाल उठा चुके हैं. इसके बाद भी पार्टी ये मान रही है कि वे पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा बेहतर स्थिति में होंगे. कई जानकार मानते हैं कि पिछले साढ़े तीन साल में जितने भी बड़े फैसले लिए गए उसका चेहरा हेमंत सोरेन बने हैं. जेएमएम ने बढ़ चढ़ के इसका प्रचार भी किया. इस दौर में कई बड़े फैसले ऐसे भी रहे जिसे सीधे सीधे जेएमएम ने अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए किए. इसलिए उन फैसलों को कांग्रेस अपने पक्ष में कितना भुना पाएगी ये कह पाना मुश्किल है.

हेमंत सोरेन ने वोट बैंक को किया मजबूत: हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 खतियान पर आधारित स्थानीय नीति, एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए नियामवी के साथ ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे बड़े फैसले लिए. ये अलग बात रही कि कुछ फैसले या तो खारिज कर दिए गए या किसी न किसी वजह से अटके हुए हैं. लेकिन इन फैसलों से हेमंत सोरेन ने अपने वोट बैंक तक अपना संदेश देने में कामयाब रहे.

कांग्रेस की राजनीति में फिट नहीं हेमंत के फैसले: दूसरी तरफ ये फैसले कहीं से भी कांग्रेस की राजनीति में फिट नहीं हो रहे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कई विधायक सरकार के इस फैसले से खुश नहीं थे. लेकिन हेमंत सोरेन ने जिस प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखी कांग्रेस विधायकों को उनके फैसले मानने पड़े.

आदिवासी चेहरे की कमी: इसके अलावा झारखंड में कांग्रेस के पास कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है. हालांकि चाईबासा से सांसद गीता कोड़ा जरुर आदिवासी हैं लेकिन कई राजनीति जानकारों का मानना है कि पार्टी ने उन्हें कभी एक मजबूत चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया. रामेश्वर उरांव जरूर कांग्रेस खेवनहार साबित हुए हैं. इसके अलावा बंधु तिर्की भी हैं जो की प्रदेश कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. वहीं, प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत भी हैं. माना जाता है कि अगर पार्टी इन्हें ठीक से इस्तेमाल करती है तो इसका फायदा जरूर मिल सकता है.

पार्टी में गुटबाजी: वहीं पार्टी में गुटबाजी अभी खत्म नहीं हुई है. ये रह रह कर सामने आ जाती है. आलोक ठाकुर के खिलाफ कई लोग शिकायत भी कर चुके हैं. आलोक दुबे, राजेश गुप्ता छोटू, साधु चरण गोप जैसे नेता लगातार आलोक ठाकुर के खिलाफ बोलते रहे हैं. हालांकि ये नेता पार्टी से सस्पेंड हैं. इसके अलावा कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगाड़ी पर अभी तक पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया है.

रांची: कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है. यहां मिले जीत का भले ही सीधे तौर पर झारखंड में कोई असर ना हो. लेकिन इससे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा का संचार तो हुआ ही है. जाहिर तौर पर पार्टी नेतृत्व इस जोश को अपने कैडर में भरेंगे. लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या इस नई ऊर्जा के साथ जब कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता जमीन पर जाएंगे तो उनके पास मुद्दे क्या होंगे. क्या वे एक बार फिर से 2019 वाली सफलता को दोहरा पाएंगे.

ये भी पढ़ें: Ranchi News: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से उत्साहित झामुमो, इशारों-इशारों में की बजरंग दल की आतंकी और उदंड संगठन से तुलना

2019 में कांग्रेस को झारखंड में सबसे बड़ी जीत मिली और यहां उसके 17 विधायक चुन कर आए. इससे पार्टी गदगद हुई, सरकार में इसे चार मंत्री पद भी मिले. सभी मंत्री दावा कर रहे हैं कि उन्होंने बेहतर काम किया है. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर पार्टी के प्रभारी ही सवाल उठा चुके हैं. इसके बाद भी पार्टी ये मान रही है कि वे पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा बेहतर स्थिति में होंगे. कई जानकार मानते हैं कि पिछले साढ़े तीन साल में जितने भी बड़े फैसले लिए गए उसका चेहरा हेमंत सोरेन बने हैं. जेएमएम ने बढ़ चढ़ के इसका प्रचार भी किया. इस दौर में कई बड़े फैसले ऐसे भी रहे जिसे सीधे सीधे जेएमएम ने अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए किए. इसलिए उन फैसलों को कांग्रेस अपने पक्ष में कितना भुना पाएगी ये कह पाना मुश्किल है.

हेमंत सोरेन ने वोट बैंक को किया मजबूत: हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 खतियान पर आधारित स्थानीय नीति, एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए नियामवी के साथ ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे बड़े फैसले लिए. ये अलग बात रही कि कुछ फैसले या तो खारिज कर दिए गए या किसी न किसी वजह से अटके हुए हैं. लेकिन इन फैसलों से हेमंत सोरेन ने अपने वोट बैंक तक अपना संदेश देने में कामयाब रहे.

कांग्रेस की राजनीति में फिट नहीं हेमंत के फैसले: दूसरी तरफ ये फैसले कहीं से भी कांग्रेस की राजनीति में फिट नहीं हो रहे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कई विधायक सरकार के इस फैसले से खुश नहीं थे. लेकिन हेमंत सोरेन ने जिस प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखी कांग्रेस विधायकों को उनके फैसले मानने पड़े.

आदिवासी चेहरे की कमी: इसके अलावा झारखंड में कांग्रेस के पास कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है. हालांकि चाईबासा से सांसद गीता कोड़ा जरुर आदिवासी हैं लेकिन कई राजनीति जानकारों का मानना है कि पार्टी ने उन्हें कभी एक मजबूत चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया. रामेश्वर उरांव जरूर कांग्रेस खेवनहार साबित हुए हैं. इसके अलावा बंधु तिर्की भी हैं जो की प्रदेश कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. वहीं, प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत भी हैं. माना जाता है कि अगर पार्टी इन्हें ठीक से इस्तेमाल करती है तो इसका फायदा जरूर मिल सकता है.

पार्टी में गुटबाजी: वहीं पार्टी में गुटबाजी अभी खत्म नहीं हुई है. ये रह रह कर सामने आ जाती है. आलोक ठाकुर के खिलाफ कई लोग शिकायत भी कर चुके हैं. आलोक दुबे, राजेश गुप्ता छोटू, साधु चरण गोप जैसे नेता लगातार आलोक ठाकुर के खिलाफ बोलते रहे हैं. हालांकि ये नेता पार्टी से सस्पेंड हैं. इसके अलावा कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगाड़ी पर अभी तक पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया है.

Last Updated : May 21, 2023, 10:11 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.