नई दिल्लीः केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun munda) एवं भगवान बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा ने दिल्ली हाट में आदि महोत्सव (Aadi Mahotsav at Dilli Haat) का शुभारंभ किया. इस दौरान ट्राइफेड के MD प्रवीर कृष्ण भी मौजूद थे. ट्राइफेड की ओर से 16 से 30 नवंबर तक दिल्ली हाट में इस महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय की ओर से ट्राइफेड 'द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट ऑफ इंडिया' की स्थापना 1987 में की गई थी. ट्राइफेड का मूल उद्देश्य आदिवासी लोगों की ओर से जंगल से एकत्र किए गए या उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों को बाजार में सही दामों पर बिकवाने की व्यवस्था करना है. इधर ट्राइफेड की ओर से आदि महोत्सव की शुरुआत की गई है. इसका मकसद जनजातीय समुदाय के विविध शिल्प, संस्कृति से लोगों को एक ही स्थान पर परिचित कराना है.
महोत्सव में 200 स्टॉल
बता दें कि आदि महोत्सव में 200 से अधिक स्टॉल लगे हुए हैं. 1000 से अधिक कलाकार व कारीगर इसमें हिस्सा ले रहे हैं. 30 से अधिक राज्यों की सहभागिता है. इस महोत्सव की खासियत यह है कि आदिवासियों द्वारा बनाए गए शिल्प वस्तु, कलाकृति, चित्रकारी, परिधान और आभूषण विभिन्न स्टॉलों पर बिक्री के लिए प्रदर्शित किए जा रहे हैं. हाथ से बने हुए सूती, रेशमी कपड़े, ऊन, धातु शिल्प, टेराकोटा, मनका कार्य से जुड़ी वस्तुएं यहां प्रदर्शित की जा रहीं हैं. इसके अलावा यहां आदिवासी औषधि-उपचार, व्यंजन, लोक मंचन की भी जानकारी मिलेगी.
महोत्सव में इसके स्टॉल
प्राकृतिक और प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले जनजातीय उत्पाद जैसे जैविक हल्दी, सूखा आंवला, जंगली शहद, काली मिर्च, रागी, त्रिफला के अलावा विभिन्न प्रकार के दाल जैसे मूंग, उड़द, सफेद बीन्स और डलिया से लेकर पेंटिंग जैसी कलाकृतियां चाहे वो वार्ली शैली की हों या पटचित्र. डोकरा शैली में हस्तनिर्मित आभूषणों से लेकर पूर्वोत्तर की वांचो और कोन्याक जनजातियों द्वारा बनाए गए मोतियों के हार. समृद्ध एवं जीवंत सूती और रेशमी वस्त्र, रंगीन कठपुतलियों और बच्चों के खिलौनों से लेकर पारंपरिक बुनाई जैसे डोंगरिया और बोडो बुनाई वाले शॉल. धातु शिल्प से लेकर बांस से बने उत्पाद. यहां तक कि हर तरह की उपहार देने योग्य वस्तु यहां उपलब्ध हैं.
संस्कृति संरक्षण की कोशिश
अर्जुन मुंडा ने कहा कि आदिवासियों की आय में वृद्धि हो. उनके उत्पादों को नया और बड़ा बाजार मिले. उनका सशक्तीकरण हो. लोकल फॉर वोकल को बढ़ावा मिले. उसी उद्देश्य के साथ इसकी शुरुआत की गई है. आदिवासियों की संस्कृति को हमें बचाना है.