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आर्य सिद्धांतों की स्थापना के लिए बरकाकाना डीएवी स्कूल में किया गया विशेष हवन - रामगढ न्यूज

रामगढ़ के बरकाकाना स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में आर्य सिद्धांतों की स्थापना के लिए हवन (Havan at Barkakana DAV School) किया गया. हवन वैदिक मंत्रोचार के साथ यज्ञशाला में हुआ. मौके पर सीसीएल बरका-सयाल के महाप्रबंधक एके सिंह और डीएवी जोन-डी के सभी प्रिंसिपल और शिक्षक मौजूद थे.

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Published : Mar 23, 2022, 3:52 PM IST

रामगढ़: जिले के बरकाकाना डीएवी स्कूल में हवन (Havan at Barkakana DAV School) कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसका उद्देश्य आर्य सिद्धांतों की स्थापना करना है. विशेष हवन और वैदिक मंत्रोचार हुआ. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का संदेश फैलाने और आर्य समाज के सिद्धांतों को लोगों में प्रसारित करने के उद्देश्य से आने वाले दिनों में डीएवी जोन-डी के अंतर्गत पड़ने वाले सभी 9 स्कूलों में इसकी स्थापना की जायेगी.

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मुख्य अतिथि सीसीएल बरका-सयाल के महाप्रबंधक एके सिंह ने कहा कि महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वतंत्रता दिलाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की. आर्य समाज के नियम और सिद्धांत प्राणी मात्र कल्याण के लिए हैं. इस समाज का मुख्य उद्देश संसार का उपकार करना है. आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ, वह व्यक्ति जो अपने जीवन के श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण रहता है.

डीएवी स्कूल की प्राचार्य सह क्षेत्रीय अधिकारी डॉ उर्मिला सिंह ने कहा कि समाज अंधकार के घर में चला गया था. हम अपने स्वाभिमान को भूलकर पश्चिम का अनुकरण कर रहे थे, तो ऐसी स्थिति में स्वामी दयानंद ने हमारा मार्ग प्रशस्त किया और सत्यार्थ प्रकाश की रचना करके सत्य को एक बार फिर से स्थापित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया. डीएवी जहां भी है, वहां एक साथ वेद और विज्ञान को लेकर चल रहे हैं. डीएवी का हर प्रांगण वेद रचनाओं से गूंजायमान होता है और हवन की सुगंध से सुभाषित होता है. आर्य समाज की स्थापना सर्वप्रथम 1875 में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपने गुरु स्वामी विरजानंद जी की प्रेरणा से मुंबई में की थी. आर्य समाज का सबसे अधिक प्रभाव विद्या और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में देखने को मिलता है. शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज और डीएवी विद्यालयों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

रामगढ़: जिले के बरकाकाना डीएवी स्कूल में हवन (Havan at Barkakana DAV School) कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसका उद्देश्य आर्य सिद्धांतों की स्थापना करना है. विशेष हवन और वैदिक मंत्रोचार हुआ. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का संदेश फैलाने और आर्य समाज के सिद्धांतों को लोगों में प्रसारित करने के उद्देश्य से आने वाले दिनों में डीएवी जोन-डी के अंतर्गत पड़ने वाले सभी 9 स्कूलों में इसकी स्थापना की जायेगी.

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मुख्य अतिथि सीसीएल बरका-सयाल के महाप्रबंधक एके सिंह ने कहा कि महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वतंत्रता दिलाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की. आर्य समाज के नियम और सिद्धांत प्राणी मात्र कल्याण के लिए हैं. इस समाज का मुख्य उद्देश संसार का उपकार करना है. आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ, वह व्यक्ति जो अपने जीवन के श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण रहता है.

डीएवी स्कूल की प्राचार्य सह क्षेत्रीय अधिकारी डॉ उर्मिला सिंह ने कहा कि समाज अंधकार के घर में चला गया था. हम अपने स्वाभिमान को भूलकर पश्चिम का अनुकरण कर रहे थे, तो ऐसी स्थिति में स्वामी दयानंद ने हमारा मार्ग प्रशस्त किया और सत्यार्थ प्रकाश की रचना करके सत्य को एक बार फिर से स्थापित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया. डीएवी जहां भी है, वहां एक साथ वेद और विज्ञान को लेकर चल रहे हैं. डीएवी का हर प्रांगण वेद रचनाओं से गूंजायमान होता है और हवन की सुगंध से सुभाषित होता है. आर्य समाज की स्थापना सर्वप्रथम 1875 में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपने गुरु स्वामी विरजानंद जी की प्रेरणा से मुंबई में की थी. आर्य समाज का सबसे अधिक प्रभाव विद्या और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में देखने को मिलता है. शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज और डीएवी विद्यालयों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

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