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बाघों के प्राकृतिक आवास में नक्सली और सुरक्षाबलों का जमावाड़ा, नक्सल गतिवधि का खामियाजा भुगत रहे वन्य जीव - पलामू टाइगर रिजर्व में मुठभेड़

बाघों के प्राकृतिक आवास में नक्सलियों और सुरक्षाबलों का जमावड़ा है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में आधा दर्जन से अधिक सुरक्षाबलों के कैंप हैं. कई बार पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ होती है और इसका खामियाजा वन्य जीव भुगत रहे हैं.

palamu tiger reserve
पलामू टाइगर रिजर्व
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Published : Aug 21, 2021, 7:01 PM IST

Updated : Aug 21, 2021, 8:34 PM IST

पलामू: चार दशक के नक्सल इतिहास और उसके प्रभाव में कई बदलाव हुआ है. चार दशकों में नक्सल हिंसा आबादी से निकल कर जंगलों में पंहुच गई. आबादी के बाद अब वन्य जीव भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. वन्य जीवों के आवास में अब सुरक्षाबलों और नक्सलियों का जमावड़ा हो गया है.

यह भी पढ़ें: बाघ की आंखों से लेकर पूंछ तक की लगती है बोली, हड्डियों से बनती है शराब

कई वन्य जीव हुए हैं लैंडमाइंस के शिकार

एशिया प्रसिद्ध पलामू टाइगर रिजर्व अब बाघों की जगह नक्सल गतिविधि और सुरक्षाबलों के अभियान के लिए चर्चित हो गया है. करीब 1,026 वर्ग किलोमीटर में फैला पलामू टाइगर रिजर्व का अधिकांश इलाका अतिनक्सल प्रभावित है. झारखंड माओवादी की सबसे सुरक्षित मांद में से एक बूढ़ा पहाड़ पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में ही आता है. पीटीआर का 226 वर्ग किलोमीटर कोर एरिया है. इस कोर एरिया में नक्सल और सुरक्षा बल दोनों की मौजूदगी है. सुरक्षाबलों को टारगेट कर लगाए गए लैंडमाइंस से कई वन्य जीव शिकार बन गए हैं. कई हाथियों की भी मौत हुई है.

देखें पूरी खबर

वन्य जीव होते हैं संवेदनशील, हल्की आवाज भी देती है सुनाई

पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में 2013-14 के बाद नक्सल हिंसा में बढ़ोतरी हुई थी. 2013-14 से लेकर 2018 -19 तक नक्सलियों के खिलाफ 900 से भी अधिक अभियान चलाए गए. इस दौरान कई बार नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई. कई लैंडमाइंस विस्फोट भी हुए हैं. विस्फोट और गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज से पूरा इलाका कभी-कभी गूंज उठता है.

यह भी पढ़ें: कभी बाघों की दहाड़ से गूंज उठता था पलामू का जंगल, अब विलुप्त होने के कगार पर

वन्य जीव पलामू टाइगर रिजर्व को लेकर लगातार आवाज उठाने वाले सनी शुक्ला बताते हैं कि वन्य जीव बेहद संवेदनशील होते हैं हल्की आवाज भी उन्हें तेज सुनाई देती है. वन्य जीवों के इलाके में दखलअंदाजी उनके प्रवास को प्रभावित करती है. वे अपना इलाका छोड़ देते हैं. 2017 में बूढ़ा पहाड़ के नजदीक हुए लैंडमाइंस विस्फोट मे एक हाथी की मौत हो गई थी.

पीटीआर के इलाके में आधा दर्जन से अधिक है सुरक्षाबलों के कैंप

पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में आधा दर्जन से अधिक सुरक्षा बलों के कैंप हैं. सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण 2019 के बाद से नक्सली कमजोर हो गए हैं. अब पीटीआर के इलाके में संघर्ष कम हो रही है. पीटीआर में संघर्ष जरूर कम हुए हैं लेकिन वन्य जीवों को अभी भी अपना सुरक्षित प्रवास नहीं मिल पा रहा है. पीटीआर के इलाके में मानवीय हस्तक्षेप के कारण बाघ समेत अन्य वन्य जीव बेहद कम नजर आने लगे है. युवा राहुल दुबे और कमलेश पांडेय बताते हैं कि जिस इलाके में मानवीय हस्तक्षेप होगा उस इलाके में वन्य जीव प्रभावित होंगे. संवेदनशील इलाकों में शहरीकरण हो रहा है जिसके कारण वन्य जीव प्रभावित हो रहे हैं.

धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हालात, बेहतर प्लानिंग की जरूरत

कुछ दिनों पहले विधानसभा के सामान्य प्रयोजन समिति के सभापति सरयू राय समेत विधायकों की एक टीम ने पीटीआर के इलाके का जायजा लिया था . सरयू राय ने बताया पीटीआर के इलाके में नक्सल गतिविधि कमजोर हुई है. पीटीआर के इलाके में नक्सलियों और सुरक्षाबलों के आपसी संघर्ष को लेकर एक कमेटी भी बनाई गई. इस कमेटी में लातेहार के एसपी भी हैं.

पीटीआर में लंबे समय से वन्य के लिए काम करने वाले प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि पीटीआर के इलाके में सभी काम हो रहे हैं. बस बेहतर प्लानिंग नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि पूर्व में नक्सलियों के कारण कैमरा ट्रैक लगाने में परेशानी हुई थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब नक्सली सिर्फ बहाना बन कर रह गया है.

पलामू: चार दशक के नक्सल इतिहास और उसके प्रभाव में कई बदलाव हुआ है. चार दशकों में नक्सल हिंसा आबादी से निकल कर जंगलों में पंहुच गई. आबादी के बाद अब वन्य जीव भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. वन्य जीवों के आवास में अब सुरक्षाबलों और नक्सलियों का जमावड़ा हो गया है.

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कई वन्य जीव हुए हैं लैंडमाइंस के शिकार

एशिया प्रसिद्ध पलामू टाइगर रिजर्व अब बाघों की जगह नक्सल गतिविधि और सुरक्षाबलों के अभियान के लिए चर्चित हो गया है. करीब 1,026 वर्ग किलोमीटर में फैला पलामू टाइगर रिजर्व का अधिकांश इलाका अतिनक्सल प्रभावित है. झारखंड माओवादी की सबसे सुरक्षित मांद में से एक बूढ़ा पहाड़ पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में ही आता है. पीटीआर का 226 वर्ग किलोमीटर कोर एरिया है. इस कोर एरिया में नक्सल और सुरक्षा बल दोनों की मौजूदगी है. सुरक्षाबलों को टारगेट कर लगाए गए लैंडमाइंस से कई वन्य जीव शिकार बन गए हैं. कई हाथियों की भी मौत हुई है.

देखें पूरी खबर

वन्य जीव होते हैं संवेदनशील, हल्की आवाज भी देती है सुनाई

पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में 2013-14 के बाद नक्सल हिंसा में बढ़ोतरी हुई थी. 2013-14 से लेकर 2018 -19 तक नक्सलियों के खिलाफ 900 से भी अधिक अभियान चलाए गए. इस दौरान कई बार नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई. कई लैंडमाइंस विस्फोट भी हुए हैं. विस्फोट और गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज से पूरा इलाका कभी-कभी गूंज उठता है.

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वन्य जीव पलामू टाइगर रिजर्व को लेकर लगातार आवाज उठाने वाले सनी शुक्ला बताते हैं कि वन्य जीव बेहद संवेदनशील होते हैं हल्की आवाज भी उन्हें तेज सुनाई देती है. वन्य जीवों के इलाके में दखलअंदाजी उनके प्रवास को प्रभावित करती है. वे अपना इलाका छोड़ देते हैं. 2017 में बूढ़ा पहाड़ के नजदीक हुए लैंडमाइंस विस्फोट मे एक हाथी की मौत हो गई थी.

पीटीआर के इलाके में आधा दर्जन से अधिक है सुरक्षाबलों के कैंप

पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में आधा दर्जन से अधिक सुरक्षा बलों के कैंप हैं. सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण 2019 के बाद से नक्सली कमजोर हो गए हैं. अब पीटीआर के इलाके में संघर्ष कम हो रही है. पीटीआर में संघर्ष जरूर कम हुए हैं लेकिन वन्य जीवों को अभी भी अपना सुरक्षित प्रवास नहीं मिल पा रहा है. पीटीआर के इलाके में मानवीय हस्तक्षेप के कारण बाघ समेत अन्य वन्य जीव बेहद कम नजर आने लगे है. युवा राहुल दुबे और कमलेश पांडेय बताते हैं कि जिस इलाके में मानवीय हस्तक्षेप होगा उस इलाके में वन्य जीव प्रभावित होंगे. संवेदनशील इलाकों में शहरीकरण हो रहा है जिसके कारण वन्य जीव प्रभावित हो रहे हैं.

धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हालात, बेहतर प्लानिंग की जरूरत

कुछ दिनों पहले विधानसभा के सामान्य प्रयोजन समिति के सभापति सरयू राय समेत विधायकों की एक टीम ने पीटीआर के इलाके का जायजा लिया था . सरयू राय ने बताया पीटीआर के इलाके में नक्सल गतिविधि कमजोर हुई है. पीटीआर के इलाके में नक्सलियों और सुरक्षाबलों के आपसी संघर्ष को लेकर एक कमेटी भी बनाई गई. इस कमेटी में लातेहार के एसपी भी हैं.

पीटीआर में लंबे समय से वन्य के लिए काम करने वाले प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि पीटीआर के इलाके में सभी काम हो रहे हैं. बस बेहतर प्लानिंग नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि पूर्व में नक्सलियों के कारण कैमरा ट्रैक लगाने में परेशानी हुई थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब नक्सली सिर्फ बहाना बन कर रह गया है.

Last Updated : Aug 21, 2021, 8:34 PM IST
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