पलामू: भारत के बारे में पहले यह कहा जाता था- 'इंडिया इज ए कंट्री ऑफ टाइगर'. झारखंड के जंगलों में तो हजारों की संख्या में बाघ थे. खासकर पलामू में बाघों की संख्या बहुत थी. लेकिन, आजादी के बाद हुए अंधाधुंध शिकार की वजह से बाघों की संख्या तेजी से घटी. 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के बाद स्थिति थोड़ी ठीक हुई लेकिन तस्करी के कारण बाघ की संख्या कम हो रही है.
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विलुप्त होने के कगार पर बाघ
इंडिया का बेस्ट हैबिटेट होने के बावजूद पलामू टाइगर रिजर्व में बाघ विलुप्त होने की कगार पर हैं. पीटीआर में बाघ हैं या नहीं, इस पर भी संशय है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में मार्च 2020 के बाद बाघ नहीं दिखा है. आज(29 जुलाई) अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है. पलामू टाइगर रिजर्व जो पलामू, गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा है, बाघ के लिए महशूर रहा है. पलामू टाइगर रिजर्व 1,026 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जबकि इसका कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में हैं.
1974 में थे 50 बाघ
1974 में पूरे देश मे बाघों को संरक्षित करने के लिए एक साथ नौ इलाकों में टाइगर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की गई थी. पलामू टाइगर रिजर्व उन नौ इलाकों में से एक है जहां बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था. 1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में 50 बाघ बताए गए थे. देश मे पहली बार 1932 बाघों की गिनती पलामू से ही शुरू हुई थी.
बाघों के प्राकृतिक आवास से हो रही छेड़खानी, नक्सल और सुरक्षाबलों की है मौजूदगी
पलामू टाइगर रिजर्व इंडिया का बेस्ट टाइगर हैबिटेट है. इसके बावजूद यहां बाघों के प्राकृतिक आवास के साथ छेड़खानी हो रही है. पीटीआर के इलाके में सुरक्षाबल और नक्सलियों की मौजूदगी है. नक्सली और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष ने पलामू टाइगर रिजर्व किला को काफी प्रभावित किया है. आंकड़ों पर गौर करें तो पीटीआर के इलाके में नक्सली और सुरक्षाबलों के बीच पिछले दो वर्षों में कई बार मुठभेड़ हुई है जबकि एक दर्जन के करीब लैंड माइंस विस्फोट हुए है. इसमें जंगली जीवों को बहुत नुकसान हुआ है.
खाली होंगे कई गांव
पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में बड़ी संख्या में पुलिस कैंप हैं जबकि पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है. कई बार नक्सली और सुरक्षाबल आमने सामने होते हैं और बड़े हथियारों का इस्तेमाल होता है. नक्सलियों के बम से हाथी जैसे कई जीव शिकार हुए हैं. माओवादियो का सुरक्षित मांद बूढ़ापहाड़ पीटीआर से लगा हुआ है. पलामू टाइगर रिजर्व के कोर में मौजूद कुजरूम लाटू जैसे आधा दर्जन गांव को खाली कराने का प्रस्ताव पारित हुआ है. हेमंत कैबिनेट ने मामले में मुहर भी लगा दी है. विस्थापन के लिए पलामू के पोखराहा और लातेहार के सरयू का इलाका चिन्हित किया गया है.
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वन्य जीवों के लिए काम करने वाले कौशिक मल्लिक ने बताया कि पीटीआर में बाघों के प्राकृतिक आवास में काफी संघर्ष है. इलाके में कई तरह की गतिविधियां संचालित है. उन्होंने बताया कि बाघ काफी शर्मिला होता है लेकिन गैरकानूनी गतिविधि के कारण बाघ अपने प्राकृतिक आवास में नहीं रह पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यही कारण है कि बाघों की संख्या लगातार कम होते जा रही है.
46 साल पहले थे 50 बाघ, अब एक भी नहीं!
1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो बताया गया था की 50 बाघ हैं. 2005 में जब बाघों की गिनती हुई तो बाघों की संख्या घटकर 38 हो गई. 2007 में जब फिर से गिनती हुई तो बताया कि पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 17 बाघ हैं. 2009 में वैज्ञानिक तरीके से बाघों की गिनती शुरू हुई तो बताया गया कि सिर्फ आठ बाघ बचे हैं. उसके बाद से कोई भी नया बाघ रिजर्व एरिया में नही मिला. 2018 में हुई जनगणना में पीटीआर के इलाके में बाघों की संख्या शून्य बताई गई.
6 बाघों के होने का दावा
पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण के लिए लंबे समय से काम करने वाले प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि इलाके में बाघों की मौजूदगी है. वन विभाग के कर्मचारी बाघों को खोजने के प्रति लापरवाह हो गए हैं. डीएस श्रीवास्तव का साफ कहना है कि पीटीआर के इलाके में कम से कम 6 बाघ हैं जिसके बारे में उन्हें समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है. उन्होंने बताया कि पीटीआर के इलाके में नक्सल सिर्फ बहाना है.
लोगों के हस्तक्षेप के कारण बाघ पर संकट !
पलामू टाइगर रिजर्व के पूरे इलाके में 250 से अधिक गांव हैं. टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में नौ गांव हैं. टाइगर रिजर्व के बीच से हाइवे और रेलवे लाइन गुजरती है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते है कि पीटीआर में मानव गतिविधि काफी अधिक है. डेढ़ लाख से भी अधिक मवेशी चरने के लिए पीटीआर के इलाके में दाखिल होते हैं.
फरवरी 2020 में मृत मिली थी बाघिन, उसके बाद पीटीआर में नहीं दिखा बाघ
पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके के बेतला नेशनल पार्क में फरवरी 2020 में एक बाघिन की मौत हुई थी. बाघिन बुजुर्ग थी. पलामू टाइगर रिजर्व के निदेशक कुमार आशुतोष बताते हैं कि पीटीआर के इलाके में बाघ हैं, उन्हें खोजने पर काम चल रहा है. जहां भी शिकार हो रहे हैं उस इलाके के पग मार्क और स्कैट लिए जा रहे हैं, ताकि बाघों का पता लगाया जा सके.