पलामूः वर्ष के अंतिम सप्ताह में आखिरकार झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग ने संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा के लिए विज्ञापन निकाल दिया है. यह विज्ञापन भले किसी के लिए मरहम हो, पलामू के युवाओं के लिए किसी जख्म से कम नहीं है. विज्ञापन निकाले जाने से पहले सरकार ने घोषणा की थी कि जेएसएससी की परीक्षा में हिंदी, भोजपुरी, मगही, अंगिका को शामिल नहीं किया जाएगा, जबकि पलामू में हिंदी, भोजपुरी, मगही जैसी ही भाषाएं ही बोलते हैं. इससे यहां के युवाओं के हाथ से बड़ा मौका निकल रहा है. यह झारखंड की राजनीति में पलामू में घटते कद की निशानी है.
भाषाओं के विवाद पर पलामू में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने आवाज उठाई थी. बावजूद इसके पलामू की आवाज सुनी नहीं गई. 2021 में पलामू में भाषा विवाद पर राजनीति तो गर्म रही लेकिन कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाया.
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बता दें कि पलामू झारखंड की राजनीतिक राजधानी कही जाती है. राज्य की झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार में पलामू प्रमंडल का प्रतिनिधित्व पेयजल और स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर करते हैं. जबकि पलामू जिले की पांच में से चार विधानसभा सीट विपक्षी दल भाजपा के पास है. वहीं प्रमंडल की दोनों लोकसभा सीट भी भाजपा के खाते में हैं. भाषा विवाद की तपिश यहां महसूस की गई, लेकिन विपक्षी दल भाजपा कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर सकी.
सीएम से की थी हिंदी-भोजपुरी को लिस्ट में शामिल करने की मांग
वरिष्ठ पत्रकार सतीश सुमन का कहना है कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि पलामू झारखंड की राजनीतिक राजधानी है. बावजूद यहां की आवाज सरकार में सुनी नहीं जा रही है. सतीश सुमन ने कहा कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का यह बयान साफ तौर पर पलामू के भाषा विवाद राजनीति के संदर्भ में था. सतीश सुमन बताते हैं कि हाल में सीएम हेमंत सोरेन के दौरे के दौरान विधायक आलोक चौरसिया ने हिंदी भोजपुरी को लेकर आवाज उठाई थी. सीएम के सामने उन्होंने हिंदी भोजपुरी को लिस्ट में शामिल करने की मांग की थी. पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने भी हिंदी भोजपुरी को लेकर आंदोलन की कोशिश की थी, मगर पलामू प्रमंडल में कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाया.
पलामू के युवाओं संग अन्याय
सुमन ने बताया कि राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर गढ़वा से विधायक चुने गए हैं. भाषा को लेकर हुए फैसले के बाद उन्होंने राज्य सरकार को चिट्ठी लिखी थी लेकिन सरकार ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. पत्रकार सतीश सुमन बताते हैं कि पलामू के युवाओं के साथ यह अन्याय है, यहां के युवा हिंदी, भोजपुरी, मगही, बोलते और पढ़ते हैं. जबकि कुछ इलाकों में नागपुरी भी बोली जाती है. ऐसे में भाषा पर सरकार की नई नीति से तमाम युवाओं से अवसर छूट जाएंगे. यह उनके प्रति अन्याय होगा. पलामू को प्रमंडल से मंत्री होने का फायदा होता नहीं दिख रहा है.