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नक्सलियों के गढ़ में केसर के नाम पर क्या उपजा रहे किसान, कृषि विभाग करेगा जांच

पलामू के मनातू इलाके में इन दिनों एक खास फसल देखी जा रही है. इस इलाके के लोग अफीम की खेती करते रहे हैं, लेकिन अब यहां बड़े हिस्से में एक अलग तरह की फसल लहलहा रही है. किसान इसे केसर बता रहे हैं, जबकि कृषि पदाधिकारी इसे कुछ और मानते हैं.

New crop being cultivated in name of American Saffron
नक्सलियों के गढ़ में केसर के नाम पर क्या उपजा रहे किसान
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Published : Mar 20, 2021, 5:22 PM IST

Updated : Mar 22, 2021, 5:40 PM IST

पलामू: चतरा सीमा से लगा पलामू का मनातू इलाका नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है. यह इलाका अफीम की खेती के लिए भी बदनाम रहा है. इन दिनों यहां केसरिया फूलों से युक्त फसल लहलहा रही है. मनातू के कुसमी, बरगांव, पदमा, मिटार और चतरा से सटे सीमावर्ती इलाकों के दर्जनों किसानों ने यह फसल लगाई है. इस इलाके के दो दर्जन से अधिक लोग पोस्ता की खेती के आरोप में जेल भी जा चुके हैं. रिहाई के बाद इन्होंने इस फसल को लगाया है और वे इसे केसर बता रहे हैं.

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20 हजार रुपये किलो खरीदा बीज

मनातू के कुसमी के रहने वाले अनुज यादव 2017 में जेल जा चुके हैं. वह अब भी इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. अब यहां लोग कुछ अलग करना चाहते हैं, ताकि किसी परेशानी से ना गुजरना पड़े और अच्छी आमदनी भी हो जाए. अनुज यादव ने बताया कि उन्होंने 20 हजार रुपये किलो बीज खरीदा और केसर की खेती शुरू की. सितंबर में इसे खेतों में बोया जाता है और मार्च महीने में फसल काट ली जाती है. एक और किसान रवींद्र यादव बताते हैं कि पहली बार उन्हें जानकारी मिली है कि इसकी खेती करने से काफी आमदनी होती है, लेकिन इस फसल का बाजार कैसा है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है.

कृषि विभाग करेगा जांच

मनातू में केसर के नाम पर लगाए गए फसल की जानकारी टॉप अधिकारियों को भी है. जिला कृषि पदाधिकारी अरुण कुमार बताते हैं कि यह देखने से किसी भी रूप में केसर प्रतीत नहीं होता है. वे इलाकों का दौरा करेंगे और खुद इसकी जांच करेंगे. उन्होंने बताया कि केसर का फूल बैंगनी रंग का होता है, लेकिन यहां जो पौधे हैं, उसका फूल केसरिया है. उन्होंने बताया कि वह खुद मनातू जाकर फसल को देखेंगे.

ये भी पढ़ें-अनोखे अंदाज में सब्जी बेचते हैं धनबाद के पांडेजी, गाने में ही सब्जी और रेट का जिक्र

कैसे बदलेगी किसानों की तकदीर

किसान जिस बीज को बीस हजार रुपए किलो खरीद कर लाए हैं और जिसके भरोसे वह इलाके की तस्वीर और अपनी तकदीर बदलने की सोच रहे हैं, वह धोखा भी हो सकता है. दरअसल, जानकारों की मानें तो ये फसल केसर नहीं है. केसर जैसा दिखने वाला ये पौधा अमेरिकन केसर है. यह दिखने में तो केसर जैसा होता है लेकिन असल में ये केसर नहीं है. यह ठीक उसी तरह है जैसे हीरा और अमेरिकन डायमंड. हालांकि किसानों को इस बात का अंदाजा ही नही हैं.

कानूनी पेंच में फंस सकते हैं किसान

इस केसर के बारे में किसी को विस्तृत जानकारी नहीं है. जो फसल लगाई गई है, वो केसर से मिलता जुलता है. हो सकता है कि इसका उपयोग केसर में मिलावट के लिए होता हो. इस तरह की फसल लगाने में कोई कानूनी रुकावट तो नहीं है लेकिन अगर किसान इसे केसर बता कर बेचेंगे तो कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

पलामू: चतरा सीमा से लगा पलामू का मनातू इलाका नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है. यह इलाका अफीम की खेती के लिए भी बदनाम रहा है. इन दिनों यहां केसरिया फूलों से युक्त फसल लहलहा रही है. मनातू के कुसमी, बरगांव, पदमा, मिटार और चतरा से सटे सीमावर्ती इलाकों के दर्जनों किसानों ने यह फसल लगाई है. इस इलाके के दो दर्जन से अधिक लोग पोस्ता की खेती के आरोप में जेल भी जा चुके हैं. रिहाई के बाद इन्होंने इस फसल को लगाया है और वे इसे केसर बता रहे हैं.

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20 हजार रुपये किलो खरीदा बीज

मनातू के कुसमी के रहने वाले अनुज यादव 2017 में जेल जा चुके हैं. वह अब भी इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. अब यहां लोग कुछ अलग करना चाहते हैं, ताकि किसी परेशानी से ना गुजरना पड़े और अच्छी आमदनी भी हो जाए. अनुज यादव ने बताया कि उन्होंने 20 हजार रुपये किलो बीज खरीदा और केसर की खेती शुरू की. सितंबर में इसे खेतों में बोया जाता है और मार्च महीने में फसल काट ली जाती है. एक और किसान रवींद्र यादव बताते हैं कि पहली बार उन्हें जानकारी मिली है कि इसकी खेती करने से काफी आमदनी होती है, लेकिन इस फसल का बाजार कैसा है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है.

कृषि विभाग करेगा जांच

मनातू में केसर के नाम पर लगाए गए फसल की जानकारी टॉप अधिकारियों को भी है. जिला कृषि पदाधिकारी अरुण कुमार बताते हैं कि यह देखने से किसी भी रूप में केसर प्रतीत नहीं होता है. वे इलाकों का दौरा करेंगे और खुद इसकी जांच करेंगे. उन्होंने बताया कि केसर का फूल बैंगनी रंग का होता है, लेकिन यहां जो पौधे हैं, उसका फूल केसरिया है. उन्होंने बताया कि वह खुद मनातू जाकर फसल को देखेंगे.

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कैसे बदलेगी किसानों की तकदीर

किसान जिस बीज को बीस हजार रुपए किलो खरीद कर लाए हैं और जिसके भरोसे वह इलाके की तस्वीर और अपनी तकदीर बदलने की सोच रहे हैं, वह धोखा भी हो सकता है. दरअसल, जानकारों की मानें तो ये फसल केसर नहीं है. केसर जैसा दिखने वाला ये पौधा अमेरिकन केसर है. यह दिखने में तो केसर जैसा होता है लेकिन असल में ये केसर नहीं है. यह ठीक उसी तरह है जैसे हीरा और अमेरिकन डायमंड. हालांकि किसानों को इस बात का अंदाजा ही नही हैं.

कानूनी पेंच में फंस सकते हैं किसान

इस केसर के बारे में किसी को विस्तृत जानकारी नहीं है. जो फसल लगाई गई है, वो केसर से मिलता जुलता है. हो सकता है कि इसका उपयोग केसर में मिलावट के लिए होता हो. इस तरह की फसल लगाने में कोई कानूनी रुकावट तो नहीं है लेकिन अगर किसान इसे केसर बता कर बेचेंगे तो कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

Last Updated : Mar 22, 2021, 5:40 PM IST
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