पलामू: आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति से एक नक्सली सरेंडर करता है. सरेंडर करने के बाद उसे कुछ राशि दी जाती है और आत्मसमर्पण का कुछ लाभ भी दिया जाता है, लेकिन जेल जाने के बाद पत्नी रुपये को लेकर भाग जाती है. यह कहानी है कभी सीबीआई के मोस्टवांटेड नक्सली सहदेव उर्फ विनय खरवार उर्फ विनय सिंह की.
ये भी पढ़ें: New Naxal Commander: माओवादियों ने मिसिर बेसरा को बनाया गया ईआरबी का सुप्रीम कमांडर, नक्सली प्रशांत बोस की लेगा जगह
सहदेव उर्फ विनय खरवार पलामू के मनातू थाना क्षेत्र के कुंडिलपुर का रहने वाले हैं. विनय पर बिहार के रोहतास डीएफओ संजय सिंह हत्याकांड में शामिल रहने का आरोप रहा है. आज विनय अपने गांव में सामान्य जीवन जी रहे हैं और आत्मसमर्पण नीति से मिलने वाले यानी योजनाओं का लाभ का इंतजार कर रहे हैं. सहदेव उर्फ विनय ने 2017-18 में पलामू पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. विनय को उस दौरान आत्मसमर्पण नीति के तहत एक लाख रुपये नगद दिया गया था, जबकि शहरी इलाके में चार डिसमिल जमीन और बच्चों की पढ़ाई मुफ्त में कराने की घोषणा की गई थी. आत्मसमर्पण करने के बाद विनय करीब एक साल तक जेल में रहा.
नक्सलियों के टीम में गाने बजाने का करता था काम: 15 फरवरी 2002 को बिहार के रोहतास के इलाके में प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी ने तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही थी. इस हत्याकांड में सहदेव उर्फ विनय सिंह का नाम जुड़ा था. विनय लंबे अरसे तक फरार रहे थे, जिसके बाद सीबीआई ने उस पर एक लाख रुपये का इनाम रखा. 2016-17 में पलामू पुलिस के समक्ष उसने आत्मसमर्पण किया था. 1990-91 में वह नक्सलियों के बाल दस्ते में शामिल हुए थे और वहां वह गाने बजाने का काम करते थे. धीरे-धीरे वह माओवादियों के हार्डकोर सदस्य बन गए.
विनय ने कहा डीएफओ हत्याकांड से जुड़ी बातें कम है याद: विनय सिंह से डीएफओ संजय सिंह हत्याकांड से जुड़ी हुई बातें पूछने पर वह बताते हैं कि उस दौरान की हुई घटना है के बारे में उन्हें बेहद ही कम बातें याद हैं, जिस वक्त में घटना हुई थी उस वक्त वह नक्सलियों के लिए गाने बजाने के साथ अन्य कई कार्य करते थे. इस हत्याकांड से उसका नाम कैसे जुड़ा था, इसके बारे में उसे कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. विनय सिंह बताते हैं कि अब इलाके का माहौल बदल गया है. हालांकि, उनके गांव तक आने-जाने की सुविधा अभी तक मौजूद नहीं. इलाके में अब किसी प्रकार का डर और भय का माहौल नहीं है. विनय सिंह बताते हैं कि आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाले सारे लाभ अभी तक उसे नहीं मिले हैं. अधिकारियों से पूछने पर उसे आश्वासन दिया जाता है और कहा जाता है कि जल्द ही सभी तरह के लाभ मिलेंगे.
पोस्ता की खेती नहीं करने के लिए लोगों से कर रहा अपील: विनय सिंह बताते हैं कि उसका पूरा इलाका पोस्ता की खेती से प्रभावित है. उन्होंने कई ग्रामीणों से पोस्ता की खेती नहीं करने की अपील की है. उसके गांव में भी पोस्ता की फसल लगी हुई है. विनय सिंह बताते हैं कि पोस्ता की खेती के खिलाफ एक बड़े जागरुकता अभियान की जरूरत है.