ETV Bharat / state

आजादी के नायक ने पलामू में की थी नौकरी, काकोरी कांड के बाद पहचान छिपाकर रह रहे थे

काकोरी कांड के हीरो अशफाक उल्ला खां ने डालटनगंज नगर पालिका कार्यालय में आठ से नौ महीने तक नौकरी की. पढ़िए इनसे जुड़ी रोचक तथ्य.

Jharkhand Freedom Fighter
काकोरी कांड के हीरो अशफाक उल्ला खां
author img

By

Published : Aug 15, 2023, 8:36 AM IST

पलामू: 15 अगस्त को आजादी की 77वीं वर्षगांठ है. आजादी की लड़ाई में सैकड़ों की भूमिका रही है और देश के लिए उन्होंने बलिदान दिया. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अशफाक उल्ला खां का नाम अमर है. अशफाक उल्ला खां का संबंध पलामू से रहा है. काकोरी ट्रेन कांड के बाद अशफाक उल्ला खां ने पलामू में महीनों समय बिताया था.

ये भी पढ़ें: JPCC ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को किया सम्मानित, आजादी की लड़ाई में योगदान को किया याद

शायरी से खुश करते थे अंग्रेजों को: अशफाक उल्ला खां पलामू के डालटनगंज नगर पालिका कार्यालय में आठ से नौ महीने तक नौकरी की थी. इस दौरान उन्होंने खुद को मथुरा का कायस्थ बताया और पहचान छिपाकर नौकरी करने लगे. इस दौरान अशफाक उल्ला खां ने बांग्ला सीखा और तत्कालीन इंजीनियर को शेरो शायरी से प्रभावित किया. अशफाक उल्ला खां के शेरो शायरी से खुश हो कर इंजीनियर ने उनका वेतन बढ़ा कर 20 रुपये कर दिया था.

उपनिदेशक आनंद ने क्या बताया: अशफाक उल्ला खां के जीवन पर लिखी किताब में इस बात का जिक्र है कि वे कितने दिनों तक पलामू में रहे और कैसे अपना जीवन यापन किया था. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक आनंद ने बताया कि किताब में कई महत्वपूर्ण जानकारी की है, जिसमें अशफाक उल्ला खां द्वारा पलामू में किए गए नौकरी का भी जिक्र है.

उपनिदेशक आनंद ने बताया कि इस बात की जानकारी मिली है कि डालटनगंज से जाने के दौरान अशफाक उल्ला खां ने अपनी कई महत्वपूर्ण सामग्री को किसी व्यक्ति को दिया था. लेकिन वह व्यक्ति कौन था यह अस्पष्ट नहीं हो पाया है.

काकोरी कांड के बाद आए थे चर्चा में: नौ अगस्त 1925 आजादी की लड़ाई के नायक चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह ने लखनऊ के काकोरी में अग्रेजों के खजाने को लूट लिया था. सभी ने ट्रेन से अंग्रेजों के खजाने को लूटा था. काकोरी कांड को अब काकोरी ट्रेन एक्शन डे के नाम से जाना जाता है.

डालटनगंज नगरपालिका में करते थे नौकरी: पलामू सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पास मौजूद किताब में बताया गया है कि काकोरी कांड के बाद अशफाक उल्ला खां शाहजहांपुर स्थित अपने घर में कई दिनों तक छिपे रहे. साथियों की तलाश में बनारस गए वहां भी उन्हें कोई साथी नहीं मिला. उसके बाद अशफाक उल्ला खां बिहार चले गए जहां अपने एक मित्र के जरिए पलामू पहुंचे. डालटनगंज नगरपालिका में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के कार्यालय में नौकरी की.

डाल्टनगंज में रहने के दौरान अशफाक उल्ला अध्ययन, शिकार और शायरी में रच बस गए थे. डालटनगंज में नौकरी करने के बाद सुबह दिल्ली चले गए थे. दिल्ली में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी.

पलामू: 15 अगस्त को आजादी की 77वीं वर्षगांठ है. आजादी की लड़ाई में सैकड़ों की भूमिका रही है और देश के लिए उन्होंने बलिदान दिया. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अशफाक उल्ला खां का नाम अमर है. अशफाक उल्ला खां का संबंध पलामू से रहा है. काकोरी ट्रेन कांड के बाद अशफाक उल्ला खां ने पलामू में महीनों समय बिताया था.

ये भी पढ़ें: JPCC ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को किया सम्मानित, आजादी की लड़ाई में योगदान को किया याद

शायरी से खुश करते थे अंग्रेजों को: अशफाक उल्ला खां पलामू के डालटनगंज नगर पालिका कार्यालय में आठ से नौ महीने तक नौकरी की थी. इस दौरान उन्होंने खुद को मथुरा का कायस्थ बताया और पहचान छिपाकर नौकरी करने लगे. इस दौरान अशफाक उल्ला खां ने बांग्ला सीखा और तत्कालीन इंजीनियर को शेरो शायरी से प्रभावित किया. अशफाक उल्ला खां के शेरो शायरी से खुश हो कर इंजीनियर ने उनका वेतन बढ़ा कर 20 रुपये कर दिया था.

उपनिदेशक आनंद ने क्या बताया: अशफाक उल्ला खां के जीवन पर लिखी किताब में इस बात का जिक्र है कि वे कितने दिनों तक पलामू में रहे और कैसे अपना जीवन यापन किया था. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक आनंद ने बताया कि किताब में कई महत्वपूर्ण जानकारी की है, जिसमें अशफाक उल्ला खां द्वारा पलामू में किए गए नौकरी का भी जिक्र है.

उपनिदेशक आनंद ने बताया कि इस बात की जानकारी मिली है कि डालटनगंज से जाने के दौरान अशफाक उल्ला खां ने अपनी कई महत्वपूर्ण सामग्री को किसी व्यक्ति को दिया था. लेकिन वह व्यक्ति कौन था यह अस्पष्ट नहीं हो पाया है.

काकोरी कांड के बाद आए थे चर्चा में: नौ अगस्त 1925 आजादी की लड़ाई के नायक चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह ने लखनऊ के काकोरी में अग्रेजों के खजाने को लूट लिया था. सभी ने ट्रेन से अंग्रेजों के खजाने को लूटा था. काकोरी कांड को अब काकोरी ट्रेन एक्शन डे के नाम से जाना जाता है.

डालटनगंज नगरपालिका में करते थे नौकरी: पलामू सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पास मौजूद किताब में बताया गया है कि काकोरी कांड के बाद अशफाक उल्ला खां शाहजहांपुर स्थित अपने घर में कई दिनों तक छिपे रहे. साथियों की तलाश में बनारस गए वहां भी उन्हें कोई साथी नहीं मिला. उसके बाद अशफाक उल्ला खां बिहार चले गए जहां अपने एक मित्र के जरिए पलामू पहुंचे. डालटनगंज नगरपालिका में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के कार्यालय में नौकरी की.

डाल्टनगंज में रहने के दौरान अशफाक उल्ला अध्ययन, शिकार और शायरी में रच बस गए थे. डालटनगंज में नौकरी करने के बाद सुबह दिल्ली चले गए थे. दिल्ली में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.