पलामूः झारखंड में बारिश के हालात को देखते हुए एक बार फिर से सुखाड़ की चर्चा जोरों पर है. राज्य के कई ऐसे जिले हैं जहां बारिश औसत से बेहद ही कम हुई है, लेकिन राज्य के कुछ ऐसे भी इलाके हैं जो प्रत्येक दो वर्षों में सुखाड़ का सामना करते हैं. यह इलाका है पलामू प्रमंडल का. पलामू प्रमंडल में धान की खेती को लेकर कई बड़ी सिंचाई परियोजनाएं शुरू हुई थी. दशकों बीत गए, लेकिन आज भी यह सिंचाई परियोजना पूरी नहीं हुई है. सिंचाई परियोजना का काम अधूरा रहने से अकेले पलामू जिला में 1.32 लाख हेक्टेयर जमीन अब तक प्यासी है. यह जमीन सिंचाई के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रकृति पर निर्भर है.
पलामू में औसत से कम बारिश, अब तक धनरोपणी का काम शुरू नहींः वर्ष 2022 के बाद 2023 में भी पलामू में औसत से बेहद कम बारिश हुई है. जुलाई महीने में 70 प्रतिशत से भी कम बारिश हुई है. नतीजा है कि पलामू के इलाके में अभी तक धनरोपनी भी शुरू नहीं हुई है. वर्ष 2022 में पलामू के सभी प्रखंडों को सुखाड़ घोषित किया गया था. बताते चलें कि पलामू प्रमंडल का इलाका बिहार के मगध से सटा हुआ है, जो धान के कटोरा के नाम से जाना जाता है. अविभाजित बिहार में कई बड़ी सिंचाई परियोजनाएं शुरू हुई थी. जिनसे पलामू प्रमंडल के इलाके में भी सिंचाई होनी थी, लेकिन राज्यों के आपसी विवाद और तकनीकी कारणों के कारण कोई भी सिंचाई परियोजना पूरी नहीं हुई है.
अरबों खर्च हुए, पर आज भी सिंचाई परियोजनाएं अधूरीः 70 के दशक में शुरू हुई सिंचाई परियोजनाओं पर अब तक अरबों रुपए खर्च हो गए हैं, लेकिन आज तक परियोजना का काम पूरा नहीं हुआ. बिहार के मगध और पलामू प्रमंडल को ध्यान में रखकर उत्तर कोयल नहर परियोजना (मंडल डैम), बटाने सिंचाई परियोजना, औरंगा और कनहर सिंचाई परियोजना शुरू की गई थी. इन परियोजनाओं पर डेढ़ हजार करोड़ से भी अधिक खर्च हो चुके हैं, लेकिन अभी तक सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाया.
कोयल नहर परियोजना की पीएम ने रखी थी आधारशिला, पर काम शुरू नहींः वर्ष 2019 देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर कोयल नहर परियोजना के तहत अधूरे मंडल डैम के कार्यों को पूरा करने की आधारशिला रखी थी, लेकिन आज तक इस परियोजना पर कार्य शुरू नहीं हुआ है. मंडल डैम के पूरा होने के बाद 390324 एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती. पलामू में 49000 एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती. मंडल डैम में 1160 मिलियन घन पानी मीटर जमा होगा और यहां से करीब 96 किलोमीटर की दूरी तय कर मोहम्मदगंज भीम बराज पहुंचेगा और यहां से नहर के माध्यम से बिहार के गया औरंगाबाद को पानी मिलेगा.
महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाएं और उनका महत्व
- उतर कोयल नहर परियोजना (मंडल डैम): वर्ष 1972-73 में 30 करोड़ की लागत से यह परियोजना शुरू हुई थी. वर्तमान में परियोजना की लागत 1622 करोड़ हो गई है. 1997 में डैम निर्माण स्थल पर इंजीनियर की हत्या के बाद निर्माण कार्य बंद है. यह इलाका पीटीआर का हिस्सा है. जमीन अधिग्रहण का मामला लंबित होने के कारण परियोजना पूरी नहीं हो रही है.
- बटाने सिंचाई परियोजनाः झारखंड-बिहार सीमा पर बटाने नदी पर वर्ष 1975 में सिंचाई परियोजना शुरू हुई थी. परियोजना पर अब तक 129 करोड़ रुपए खर्च हुए है, लेकिन किसानों को लक्ष्य के अनुसार पानी नहीं मिल पा रहा है. नेशनल हाईवे 98 के कारण इसका मुख्य नहर भी बंद हो गया है.
- कनहर सिंचाई परियोजनाः वर्ष 1976 में बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सीमा पर करोड़ों की लागत से इस परियोजना की शुरुआत हुई थी. एमपी और बिहार के बंटवारे के बाद राज्य सरकारों ने परियोजना को लेकर रुचि नहीं दिखाई. इस कारण यह परियोजना अधर में है. परियोजना के पूरा होने से पलामू प्रमंडल का गढ़वा जिला, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ के किसानों को पानी उपलब्ध हो पाएगा.