पलामूः गर्मी के दिनों में जंगलों में लगी आग से निपटना बड़ी चुनौती है. यह आग सामान्य नहीं होता है बल्कि यह पेड़-पौधों के साथ साथ वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंचता है. झारखंड के जंगलों में ग्रामीण महुआ चुनने के लिए खर पतवार में आग लगाते है, यही आग जंगलों में फैल जाता है. इस आग से निपटने के लिए पलामू टाइगर रिजर्व ने एक योजना तैयार की है.
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जंगलों में अगलगी की घटनाएं ना हो इसके लिए पीटीआर की पहल सामने आई है. इस योजना के तहत ग्रामीणों को महुआ चुनने के लिए जाल का इस्तेमाल करने को कहा गया है. रिजर्व के विजयपुर गांव से इसकी शुरुआत की गई है. पीटीआर प्रबंधन के तरफ ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है. जिसके बाद ग्रामीणों ने एक कपड़े का जाल तैयार किया, इस जाल को महुआ के पेड़ के नीचे बिछाया गया. महुआ पेड़ से टूटकर जाल पर गिरे, जिसे ग्रामीणों ने आसानी से चुन लिया. पीटीआर प्रबंधन अब इस योजना के सभी इलाकों में लागू करने की योजना बनाई है.
पीटीआर में एक लाख से अधिक महुआ के पेड़ः पलामू का टाइगर रिजर्व करीब 1129 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. पूरे इलाके में एक लाख से अधिक महुआ के पेड़ मौजूद हैं जबकि पूरे पीटीआर में 206 से अधिक गांव हैं. टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक मुकेश कुमार बताते हैं कि एक अच्छी पहल की शुरुआत की गई है. इसे और बड़े पैमाने पर ले जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जंगलों को आग से बचाने के लिए एक बेहतरीन पहल है. पीटीआर के ग्रामीणों को महुआ चुनने के लिए जाल का इस्तेमाल और आग को लेकर समय-समय पर जागरूक भी किया गया है.
जानकारी के अनुसार पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में प्रतिवर्ष 30 से 35 जगह पर अगलगी की घटनाएं होती हैं. कभी-कभी है आग काफी दूर तक जंगलों में फैल जाती है. इस हिसाब से बड़े पैमाने पर पेड़-पौधों के साथ-साथ वन्यजीवों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इसके अलावा इस आग में आसपास के गांवों के भी चपेट में आने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसलिए पीटीआर की पहल को लेकर ग्रामीण जागरूक भी हो रहे हैं.
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जंगलों के आग से पर्यावरण को नुकसानः 2022 में पलामू, गढ़वा और लातेहार के विभिन्न इलाकों में 40 से अधिक घटनाएं हुई हैं. इन घटनाओं में बड़े पैमाने पर वन संपति का नुकसान हुआ है. अप्रैल महीने का यह दूसरा पखवाड़ा है, मई और जून बाकी है. पलामू प्रमंडल में 20 जून के बाद मानसून दस्तक देती है. पूरे इलाके में मई के अंतिम सप्ताह तक महुआ चुनने का काम होता है. पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि आग से जंगलों को बड़े पैमाने पर नुकसान है, इससे पलामू प्रमंडल की चट्टानें गर्म हो रही हैं और यहां के वातावरण में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड किया जा रहा है.