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पलामू में डराते हैं नवजात को सड़क पर फेंकने के आंकड़े, पढ़ें ये रिपोर्ट - नवजातों को सड़कों पर फेंका जा रहा

पलामू में पिछले 2 साल 27 से अधिक नवजात बच्चियों को फेंका गया. इसमें 20 से अधिक मृत अवस्था में मिली, जबकि चार ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. 3 बच्चियों को बचाया जा सका है, जिसमें 2 मिशन ऑफ चैरिटी में है, जबकि एक बच्ची का इलाज मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में चल रहा है.

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पालमू में डराते हैं नवजात को सड़क पर फेंकने के आंकड़े
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Published : Oct 31, 2020, 10:25 AM IST

Updated : Oct 31, 2020, 11:46 AM IST

पलामू: सरकार ने बेटियों के संरक्षण का नारा दिया है, बेटी बचाव-बेटी पढ़ाओ. बेटियों को बचाने के लिए कई स्तर पर पहल की जा रही है. हालांकि इन सब के बीच अक्सर यह खबर सामने आती रही है कि नवजात बच्चियों को सड़क किनारे फेंका गया है. पलामू लिंग अनुपात की बात करें तो 1000 लड़कों पर 954 लड़कियां हैं. पलामू के शहर या ग्रामीण हर इलाके से नवजात बच्चियों को फेंके जाने के मामले सामने आते हैं. कई मामले तो पुलिस और बच्चों बाल संरक्षण आयोग तक पहुंचती ही नहीं हैं.

देखें स्पेशल खबर

कई नवजात की बच जाती है जान

पलामू में पिछले 2 साल में 27 से अधिक नवजात बच्चियों को फेंका गया. इसमें 20 से अधिक मृत अवस्था में मिली, जबकि चार ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. 3 बच्चियों को बचाया जा सका है, जिसमें 2 मिशन ऑफ चैरिटी में है, जबकि एक बच्ची का इलाज मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में चल रहा है. पलामू के लेस्लीगंज थाना क्षेत्र के जामुनडीह में 14 अक्टूबर को एक बच्ची को बरामद किया गया. उसे कपड़े में लपेटकर फेंका गया था. समय रहते पुलिस को सूचना मिल गई, तो बच्ची की जान बचाई जा सकी. इसी तरह नौडीहा बाजार में 6 सितंबर को एक बच्ची मिली, जिसकी जान बचाई जा सकी. नवजात बच्चियों को सुनसान जगहों पर फेंका जाता है, जिस कारण उनकी जान नहीं बच पाती है.

कहीं एफआईआर तो कहीं होती है सिर्फ एंट्री

नवजात बच्चियों के शव या जिंदा बरामद मामले में किसी थाने में एफआईआर तो किसी थाने में सिर्फ स्टेशन डायरी में एंट्री की जाती है. हालांकि अभी तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया. जिस मामले में कोई ठोस कार्रवाई या गिरफ्तारी हुई हो. पलामू के हुसैनाबाद, मेदिनीनगर, छत्तरपुर, पांकी, चैनपुर और बिश्रामपुर के इलाके में अधिकतर नावजातो के शव मिले हैं। एसडीपीओ संदीप कुमार गुप्ता बताते हैं कि नवजात के बरामद मामले में पुलिस जांच करती है और मामला भी दर्ज किया जाता है.

नहीं है अडॉप्टिंग एजेंसी

किसी भी नवजात बच्चियों के बरामद मामले में उसके माता-पिता का पता नहीं चल पाया. कानूनन जो नवजात मृत मिलता है, उसका पोस्टमार्टम किया जाना है और उसके बिसरे को सुरक्षित रखा जाना है. बाल संरक्षण आयोग के धीरेन्द्र किशोर बताते हैं कि किसी के भी माता-पिता का पता नहीं चल पाया. कोर्ट के आदेश से ही डीएनए टेस्ट लिया जाना है. नवजातों के लिए कोई सामने भी नहीं आता. पलामू के बाल संरक्षण पदाधिकारी प्रकाश कुमार बताते हैं कि हर स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया गया. वो बताते हैं कि पलामू में अडॉप्टिंग ऐजेंसी नहीं है, बरामद बच्चियों को देवघर भेजा जाता है. पलामू के स्पेशल एडॉप्शन ऑथोरिटी का लाइसेंस रद्द हो गया है.

महिलाओं के बीच जागरूकता लाने की जरूरत

पलामू में लंबे समय से सामाजिक कार्यो से जुड़ी इंदु भगत बताती हैं कि महिलाओं के बीच जागरूकता चलाने की जरूरत है. इंदु भगत विधिक सेवा प्राधिकार की सदस्य भी हैं. वो बताती हैं कि ऐसा देखा गया कि प्रेम संबंध या सामाजिक कुरीतियों के कारण बच्चियों को फेंक दिया जाता है. उनका कहना है कि महिलाओं को यह समझना होगा कि लड़के और लड़कियों के बीच भेद नहीं है.

पलामू: सरकार ने बेटियों के संरक्षण का नारा दिया है, बेटी बचाव-बेटी पढ़ाओ. बेटियों को बचाने के लिए कई स्तर पर पहल की जा रही है. हालांकि इन सब के बीच अक्सर यह खबर सामने आती रही है कि नवजात बच्चियों को सड़क किनारे फेंका गया है. पलामू लिंग अनुपात की बात करें तो 1000 लड़कों पर 954 लड़कियां हैं. पलामू के शहर या ग्रामीण हर इलाके से नवजात बच्चियों को फेंके जाने के मामले सामने आते हैं. कई मामले तो पुलिस और बच्चों बाल संरक्षण आयोग तक पहुंचती ही नहीं हैं.

देखें स्पेशल खबर

कई नवजात की बच जाती है जान

पलामू में पिछले 2 साल में 27 से अधिक नवजात बच्चियों को फेंका गया. इसमें 20 से अधिक मृत अवस्था में मिली, जबकि चार ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. 3 बच्चियों को बचाया जा सका है, जिसमें 2 मिशन ऑफ चैरिटी में है, जबकि एक बच्ची का इलाज मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में चल रहा है. पलामू के लेस्लीगंज थाना क्षेत्र के जामुनडीह में 14 अक्टूबर को एक बच्ची को बरामद किया गया. उसे कपड़े में लपेटकर फेंका गया था. समय रहते पुलिस को सूचना मिल गई, तो बच्ची की जान बचाई जा सकी. इसी तरह नौडीहा बाजार में 6 सितंबर को एक बच्ची मिली, जिसकी जान बचाई जा सकी. नवजात बच्चियों को सुनसान जगहों पर फेंका जाता है, जिस कारण उनकी जान नहीं बच पाती है.

कहीं एफआईआर तो कहीं होती है सिर्फ एंट्री

नवजात बच्चियों के शव या जिंदा बरामद मामले में किसी थाने में एफआईआर तो किसी थाने में सिर्फ स्टेशन डायरी में एंट्री की जाती है. हालांकि अभी तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया. जिस मामले में कोई ठोस कार्रवाई या गिरफ्तारी हुई हो. पलामू के हुसैनाबाद, मेदिनीनगर, छत्तरपुर, पांकी, चैनपुर और बिश्रामपुर के इलाके में अधिकतर नावजातो के शव मिले हैं। एसडीपीओ संदीप कुमार गुप्ता बताते हैं कि नवजात के बरामद मामले में पुलिस जांच करती है और मामला भी दर्ज किया जाता है.

नहीं है अडॉप्टिंग एजेंसी

किसी भी नवजात बच्चियों के बरामद मामले में उसके माता-पिता का पता नहीं चल पाया. कानूनन जो नवजात मृत मिलता है, उसका पोस्टमार्टम किया जाना है और उसके बिसरे को सुरक्षित रखा जाना है. बाल संरक्षण आयोग के धीरेन्द्र किशोर बताते हैं कि किसी के भी माता-पिता का पता नहीं चल पाया. कोर्ट के आदेश से ही डीएनए टेस्ट लिया जाना है. नवजातों के लिए कोई सामने भी नहीं आता. पलामू के बाल संरक्षण पदाधिकारी प्रकाश कुमार बताते हैं कि हर स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया गया. वो बताते हैं कि पलामू में अडॉप्टिंग ऐजेंसी नहीं है, बरामद बच्चियों को देवघर भेजा जाता है. पलामू के स्पेशल एडॉप्शन ऑथोरिटी का लाइसेंस रद्द हो गया है.

महिलाओं के बीच जागरूकता लाने की जरूरत

पलामू में लंबे समय से सामाजिक कार्यो से जुड़ी इंदु भगत बताती हैं कि महिलाओं के बीच जागरूकता चलाने की जरूरत है. इंदु भगत विधिक सेवा प्राधिकार की सदस्य भी हैं. वो बताती हैं कि ऐसा देखा गया कि प्रेम संबंध या सामाजिक कुरीतियों के कारण बच्चियों को फेंक दिया जाता है. उनका कहना है कि महिलाओं को यह समझना होगा कि लड़के और लड़कियों के बीच भेद नहीं है.

Last Updated : Oct 31, 2020, 11:46 AM IST
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