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वर्ल्ड बैंबू डे: कभी बांस के व्यापार के लिए चर्चित था पलामू, अब सिर्फ पीटीआर में बचे हैं जंगल; हाथियों के लिए है वरदान

आज वर्ल्ड बैंबू डे हैं. इस मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में पढ़िये कि पलामू कब बांस के व्यापार के लिए चर्चित था और अब क्या स्थिति है. बांस हाथियों के लिए किस तरह से वरदान है.

Bamboo Forest in Palamu Tiger Reserve
पलामू टाइगर रिजर्व में बांस के जंगल
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Published : Sep 18, 2021, 10:12 AM IST

पलामू: 18 सितंबर को वर्ल्ड बैंबू डे के मौके पर बांस और उसके प्राकृतिक महत्व के बारे में चर्चा हो रही है. कभी बांस के व्यापार के लिए चर्चित पलामू के टाइगर रिजर्व इलाके में बांस के पेड़ हाथियों के लिए वरदान साबित हुए हैं.

यह भी पढ़ें: नेशनल हाईवे पर गजराज की मस्ती, जाम हो गया नेशनल हाईवे

पीटीआर में डेढ़ लाख एकड़ में बांस का जंगल फैला हुआ है जो हाथियों को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रहा है. ये बांस का जंगल ही है जो पीटीआर के हाथियों को आबादी की तरफ जाने से रोकता है. बांस को ग्रीन गोल्ड भी बोला जाता है. 2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने बांसों को संरक्षित करने के लिए ग्रीन गोल्ड योजना की शुरुआत की थी. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में प्राकृतिक संसाधनों के व्यापार पर रोक है और इसके कारण इस योजना को इस इलाके में शुरू नहीं किया गया. पलामू रेंज में भी इस योजना पर काम शुरू नहीं हुआ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

हाथी खुद करते हैं बांसों को संरक्षित, पीटीआर में लाठी बांस प्रजाति के हैं जंगल

बांस हाथियों का प्रिय भोजन रहा है. पीटीआर के करीब 60% इलाके में बांस के पेड़ हैं. ये गारु, मारोमार, बारेसाढ़, छिपादोहर, बेतला, हेनार, तिसिया, मारोमार के जंगल में फैले हुए हैं. इन इलाकों में करीब 120 हाथियों का बसेरा है. वन्य जीव विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि हाथी खुद बांसों को संरक्षित करते हैं. उन्होंने बताया कि बांस के नए पौधे(करील) को हाथी नुकसान नहीं पहुंचाते और न ही उसे खाते है. हाथी बांस के उसी पेड़ को खाते है जो तीन साल से ज्यादा बड़ा हो गया हो. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि बांस के जंगल के कारण पीटीआर के हाथी कभी बाहर नहीं जाते हैं. उन्हें भरपूर भोजन मिलता है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में डेंड्रो केलामस स्ट्रिक्ट्स(लाठी) बांस पाया जाता है.

पीटीआर में बांस के जंगलों को बचाने के लिए उठाए गए कई कदम, रोजगार से जुड़े हैं हेनार के ग्रामीण

पलामू टाइगर रिजर्व में बांस के जंगल को बचाने के लिए विभाग की तरफ से कई पहल किए जा रहे हैं. हर वर्ष बांस के पेड़ के इलाके की सफाई की जाती है ताकि बांस के नए पौधे निकल सकें और हाथी पीटीआर से बाहर नहीं जा सकें. पलामू टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक मुकेश कुमार बताते हैं कि कई इलाकों में बांस के जंगल भरे हुए हैं. बांस के जंगलों से हाथियों को भोजन मिल रहा है. बांस के जंगल से एक और फायदा है कि पीटीआर के इलाके में मिट्टी का कटाव नहीं हो रहा है. अधिकतर बांस के जंगल ढलान वाले इलाके में हैं. उन्होंने बताया कि पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके के हेनार जैसे गांव बांस के बनाए हुए हैंडीक्राफ्ट के जाना जाता है.

90 के दशक तक बांस के व्यापार के लिए चर्चित था पलामू

90 के दशक तक पलामू का इलाका बांस के व्यापार के लिए चर्चित था. अविभाजित पलामू के पीटीआर के इलाके को छोड़ दिया जाए तो बांस के जंगल बेहद कम हो गए हैं. 1995 तक पलामू से निकले हुए बांस कई कागज फैक्ट्रियों में जाया करता था. किसी जमाने मे बिहार का प्रसिद्ध डालमिया पेपर मील पलामू के ही बांस से उत्पादन करता था. फिलहाल टेंट के व्यवसाय में बांस का अधिक इस्तेमाल हो रहा है. मजदूर नेता राजीव कुमार बताते हैं कि धीरे-धीरे बांस पर निर्भरता कम हो गई. कभी पलामू का जंगल बास के लिए चर्चित हुआ करता था. अब यह बेहद कम हो गया. बांसों को संरक्षित करने की जरूरत है.

पलामू: 18 सितंबर को वर्ल्ड बैंबू डे के मौके पर बांस और उसके प्राकृतिक महत्व के बारे में चर्चा हो रही है. कभी बांस के व्यापार के लिए चर्चित पलामू के टाइगर रिजर्व इलाके में बांस के पेड़ हाथियों के लिए वरदान साबित हुए हैं.

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पीटीआर में डेढ़ लाख एकड़ में बांस का जंगल फैला हुआ है जो हाथियों को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रहा है. ये बांस का जंगल ही है जो पीटीआर के हाथियों को आबादी की तरफ जाने से रोकता है. बांस को ग्रीन गोल्ड भी बोला जाता है. 2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने बांसों को संरक्षित करने के लिए ग्रीन गोल्ड योजना की शुरुआत की थी. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में प्राकृतिक संसाधनों के व्यापार पर रोक है और इसके कारण इस योजना को इस इलाके में शुरू नहीं किया गया. पलामू रेंज में भी इस योजना पर काम शुरू नहीं हुआ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

हाथी खुद करते हैं बांसों को संरक्षित, पीटीआर में लाठी बांस प्रजाति के हैं जंगल

बांस हाथियों का प्रिय भोजन रहा है. पीटीआर के करीब 60% इलाके में बांस के पेड़ हैं. ये गारु, मारोमार, बारेसाढ़, छिपादोहर, बेतला, हेनार, तिसिया, मारोमार के जंगल में फैले हुए हैं. इन इलाकों में करीब 120 हाथियों का बसेरा है. वन्य जीव विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि हाथी खुद बांसों को संरक्षित करते हैं. उन्होंने बताया कि बांस के नए पौधे(करील) को हाथी नुकसान नहीं पहुंचाते और न ही उसे खाते है. हाथी बांस के उसी पेड़ को खाते है जो तीन साल से ज्यादा बड़ा हो गया हो. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि बांस के जंगल के कारण पीटीआर के हाथी कभी बाहर नहीं जाते हैं. उन्हें भरपूर भोजन मिलता है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में डेंड्रो केलामस स्ट्रिक्ट्स(लाठी) बांस पाया जाता है.

पीटीआर में बांस के जंगलों को बचाने के लिए उठाए गए कई कदम, रोजगार से जुड़े हैं हेनार के ग्रामीण

पलामू टाइगर रिजर्व में बांस के जंगल को बचाने के लिए विभाग की तरफ से कई पहल किए जा रहे हैं. हर वर्ष बांस के पेड़ के इलाके की सफाई की जाती है ताकि बांस के नए पौधे निकल सकें और हाथी पीटीआर से बाहर नहीं जा सकें. पलामू टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक मुकेश कुमार बताते हैं कि कई इलाकों में बांस के जंगल भरे हुए हैं. बांस के जंगलों से हाथियों को भोजन मिल रहा है. बांस के जंगल से एक और फायदा है कि पीटीआर के इलाके में मिट्टी का कटाव नहीं हो रहा है. अधिकतर बांस के जंगल ढलान वाले इलाके में हैं. उन्होंने बताया कि पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके के हेनार जैसे गांव बांस के बनाए हुए हैंडीक्राफ्ट के जाना जाता है.

90 के दशक तक बांस के व्यापार के लिए चर्चित था पलामू

90 के दशक तक पलामू का इलाका बांस के व्यापार के लिए चर्चित था. अविभाजित पलामू के पीटीआर के इलाके को छोड़ दिया जाए तो बांस के जंगल बेहद कम हो गए हैं. 1995 तक पलामू से निकले हुए बांस कई कागज फैक्ट्रियों में जाया करता था. किसी जमाने मे बिहार का प्रसिद्ध डालमिया पेपर मील पलामू के ही बांस से उत्पादन करता था. फिलहाल टेंट के व्यवसाय में बांस का अधिक इस्तेमाल हो रहा है. मजदूर नेता राजीव कुमार बताते हैं कि धीरे-धीरे बांस पर निर्भरता कम हो गई. कभी पलामू का जंगल बास के लिए चर्चित हुआ करता था. अब यह बेहद कम हो गया. बांसों को संरक्षित करने की जरूरत है.

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