पलामू: विलुप्ती के कगार पर पंहुचे इजिप्शियन वल्चर जिन्हें सफेद गिद्ध (white vulture) भी कहा जाता है पलामू में देखे गए हैं (Flock of Egyptian vulture seen in Palamu). सफेद गिद्धों का यह झुंड करीब 25 की संख्या में हैं और इसमें कुछ बच्चे भी हैं. सफेद गिद्धों का झुंड पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब पांच किलोमीटर दूर बिस्फुटा के पास देखा गया है.
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सफेद गिद्धों का यह झुंड प्रतिदिन शाम चार से पांच बजे के बीच पंहुचता है और बिजली के टावर पर बैठता है. पलामू टाइगर रिजर्व में कार्यरत एक कर्मी और पक्षियों को लेकर फोटोग्राफी करने वाले मनीष बक्शी को एक इजिप्शियन गिद्ध नजर आया था, जिसके बाद उन्होंने इसका पीछा शुरू किया. जिसके बाद गिद्धों का पूरा झुंड नजर आया, जो बिजली के टावर पर बैठा हुआ था. पलामू में पहली बार सफेद गिद्ध नजर आया है. मनीष बताते है कि वे प्रतिदिन गिद्धों को मॉनिटर कर रहे हैं, उनके व्यवहार और भोजन का आकलन किया जा रहा है.
सफेद गिद्ध पश्चिमी अफ्रीका समेत कई इलाको में पाया जाता है: इजिप्शियन वल्चर (सफेद गिद्ध) पश्चिमी अफ्रीका समेत कई इलाकों में पाया जाता है. इजिप्शियन वल्चर पुरानी दुनिया का है. 2007 के आसपास इजिप्शियन वल्चर को लुप्तप्राय जीवो की सूची में रखा गया है. वन्यजीव विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि इजिप्शियन वल्चर का नजर आना बेहद सुखद है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि या अफ्रीका, अफगानिस्तान, नेपाल और अन्य हिस्सों में पाए जाते हैं. वे बताते है कि यह झुंड पहली बार इस इलाके में आया है, लेकिन इससे पहले भारत के कई हिस्सों में देखा गया था. सफेद गिद्ध मांस खाते हैं. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि स्थानीय ग्रामीणों से बातचीत करने पर पता चला कि कई वर्षों से यह आ रहे हैं, लेकिन पहली बार प्रशासनिक तंत्र की जानकारी में यह बात आई है. उन्होंने बताया कि इसके संरक्षण के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं.
डिक्लोफेनेक दवा और रसायन बनी गिद्धों के विलुप्ती का कारण: एक सर्वे में इस बात की जानकारी मिली थी कि डिक्लोफेनेक नाम की दवा और रसायन गिद्धों के विलुप्ती का बड़ा कारण बनी है. प्रोफेसर डीजे श्रीवास्तव बताते हैं कि यह दवा लोग अपने मवेशियों को खिलाते थे, मौत के बाद भी दवा का असर मवेशी पर रहता था. मवेशियों को खाने के बाद गिद्ध भी चपेट में आते थे और उनकी मौत हो जाती थी. डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि भारत की सरकार ने बाद में सभा को प्रतिबंधित कर दिया था. किसी जमाने में झारखंड में भी गिद्धों की संख्यां अधिक थी, 2009 तक हजारीबाग में अकेले 350 थे, लेकिन इसके बाद ये लगातार विलुप्ती के कगार पर चले गए.