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दिवाली में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले खुद अंधेरे में, कुम्हारों पर आर्थिक संकट

दीपोत्सव के पर्व दिवाली में आज दीये बनाने वाले कुम्हारों के आंगन में अंधेरा कायम है. दूसरों के घरों में उजाला करने वाले ये लोग रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस बार कोरोना और स्थिति और खराब कर दी है. महंगाई और चाइनीज सामनों के चलते कुम्हार पहले ही परेशान हैं.

कुम्हारों पर आर्थिक संकट
कुम्हारों पर आर्थिक संकट
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Published : Nov 11, 2020, 1:17 PM IST

पलामूः दिवाली की शान समझे जाने वाले दिया का व्यवसाय आज संकट से दौर से गुजर रहा है. दिवाली में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों के समक्ष जीवन यापन का प्रश्न खड़ा है. पलामू में 2005 तक दिवाली के दौरान दियों का कारोबार 50 लाख रुपये से भी अधिक का था. आज यह करोबार सिमटकर 15 लाख रुपये से भी कम हो गए है,

कुम्हारों की जिदगी में है अंधेरा.

जबकि इस दौरान मिट्टी कोयला और अन्य वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना काल ने मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को प्रभावित किया है.

दुर्गा पूजा के बाद दीवाली और छठ पूजा से उम्मीद

कुम्हारों के मन में दिवाली को लेकर उम्मीद है कि उनके घर भी रोशन होंगे. सरकार ने कोरोना काल के दौरान लोकल फॉर वोकल का नारा दिया है. पलामू के कुम्हारों को इस बार उम्मीद है, उनके मन में भी इस बार उम्मीद की रोशनी जली है कि कारोबार बढ़ेगा.

कारोना के चलते गर्मियों में घड़ा, दुर्गा पूजा में बर्तन नहीं बिके. पलामू के जीवंत प्रजापति को इस बार दिवाली से काफी उम्मीद है. यही कारण है कि वे अपना मन पसंद गीत सुन रहे और तेजी चाक चलाते हुए दिए बना रहे. 10 हजार दिए बना चुके हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए जीवंत प्रजापति बताते है कि बाजार नहीं है, कभी कभी काफी कम कीमत पर बेचने पड़ते हैं.

इस बार थोड़ा उम्मीद है. जीवंत की तरह ही दिए बनाने वाले जगजीवन प्रजापति ने ईटीवी भारत को बताया कि इस धंधे के तरफ किसी का ध्यान नही है, ना ही उन्हें उम्मीद है कि कोई ध्यान देगा. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है तब से उनका कारोबार चौपट हो गया है. वे मजबूर है कि इस कारोबार से जुड़े है, उनके बाद उनकी पीढ़ी यह नहीं करने वाली है.

नहीं मिलती मिट्टी, महंगी हो गई है लागत

मिट्टी के दीए बनाने वाले कुमारों के समक्ष कई समस्या उत्पन्न हो रही है ,एक तो उन्हें बाजार नहीं मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ दीये बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री काफी महंगी हो गई है. बढ़ते शहरीकरण के कारण कुम्हारों को मिट्टी नहीं मिल रही है, जबकि दिये को बनाने में इस्तेमाल होने वाला कोयला नहीं मिल पा रहा.

विनोद प्रजापति बताते हैं कि अगर उन्हें व्यवस्था दी जाए तो वह एक से बढ़ कर एक उत्पाद को बाजार में देंगे जो काफी सुंदर और टिकाउ भी होंगे, लेकिन उन्हें सहायता नहीं मिल पा रही है.

पलामू में पांच हजार से अधिक कारोबारी

पलामू में मिट्टी के बर्तन के कारोबार से पांच हजार से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं. माटी कला बोर्ड के सदस्य अविनाश देव ने ईटीवी भारत को बताया कि कुम्हार बड़ी उम्मीद के साथ मिट्टी के बर्तन और अन्य सामग्री को तैयार कर रहे हैं ,लेकिन उन्हें बाजार नहीं मिल पा रहा है सरकार को इसके लिए पहल करने की जरूरत है. बाजार नही होने से कुम्हारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही. मिट्टी के बर्तन पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए ठीक है.

पलामूः दिवाली की शान समझे जाने वाले दिया का व्यवसाय आज संकट से दौर से गुजर रहा है. दिवाली में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों के समक्ष जीवन यापन का प्रश्न खड़ा है. पलामू में 2005 तक दिवाली के दौरान दियों का कारोबार 50 लाख रुपये से भी अधिक का था. आज यह करोबार सिमटकर 15 लाख रुपये से भी कम हो गए है,

कुम्हारों की जिदगी में है अंधेरा.

जबकि इस दौरान मिट्टी कोयला और अन्य वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना काल ने मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को प्रभावित किया है.

दुर्गा पूजा के बाद दीवाली और छठ पूजा से उम्मीद

कुम्हारों के मन में दिवाली को लेकर उम्मीद है कि उनके घर भी रोशन होंगे. सरकार ने कोरोना काल के दौरान लोकल फॉर वोकल का नारा दिया है. पलामू के कुम्हारों को इस बार उम्मीद है, उनके मन में भी इस बार उम्मीद की रोशनी जली है कि कारोबार बढ़ेगा.

कारोना के चलते गर्मियों में घड़ा, दुर्गा पूजा में बर्तन नहीं बिके. पलामू के जीवंत प्रजापति को इस बार दिवाली से काफी उम्मीद है. यही कारण है कि वे अपना मन पसंद गीत सुन रहे और तेजी चाक चलाते हुए दिए बना रहे. 10 हजार दिए बना चुके हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए जीवंत प्रजापति बताते है कि बाजार नहीं है, कभी कभी काफी कम कीमत पर बेचने पड़ते हैं.

इस बार थोड़ा उम्मीद है. जीवंत की तरह ही दिए बनाने वाले जगजीवन प्रजापति ने ईटीवी भारत को बताया कि इस धंधे के तरफ किसी का ध्यान नही है, ना ही उन्हें उम्मीद है कि कोई ध्यान देगा. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है तब से उनका कारोबार चौपट हो गया है. वे मजबूर है कि इस कारोबार से जुड़े है, उनके बाद उनकी पीढ़ी यह नहीं करने वाली है.

नहीं मिलती मिट्टी, महंगी हो गई है लागत

मिट्टी के दीए बनाने वाले कुमारों के समक्ष कई समस्या उत्पन्न हो रही है ,एक तो उन्हें बाजार नहीं मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ दीये बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री काफी महंगी हो गई है. बढ़ते शहरीकरण के कारण कुम्हारों को मिट्टी नहीं मिल रही है, जबकि दिये को बनाने में इस्तेमाल होने वाला कोयला नहीं मिल पा रहा.

विनोद प्रजापति बताते हैं कि अगर उन्हें व्यवस्था दी जाए तो वह एक से बढ़ कर एक उत्पाद को बाजार में देंगे जो काफी सुंदर और टिकाउ भी होंगे, लेकिन उन्हें सहायता नहीं मिल पा रही है.

पलामू में पांच हजार से अधिक कारोबारी

पलामू में मिट्टी के बर्तन के कारोबार से पांच हजार से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं. माटी कला बोर्ड के सदस्य अविनाश देव ने ईटीवी भारत को बताया कि कुम्हार बड़ी उम्मीद के साथ मिट्टी के बर्तन और अन्य सामग्री को तैयार कर रहे हैं ,लेकिन उन्हें बाजार नहीं मिल पा रहा है सरकार को इसके लिए पहल करने की जरूरत है. बाजार नही होने से कुम्हारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही. मिट्टी के बर्तन पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए ठीक है.

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