पलामू: पलामू सुखाड़ और अकाल से जूझ रहा है. इसलिए इलाके में किसान परंपरागत खेती से हटकर पपीते की खेती कर रहे हैं. वहीं इसके लिए नीति आयोग भी लगातार जागरूकता अभियान चला रहा है. पहले पलामू में स्ट्रॉबेरी की खेती ने बड़ा बदलाव लाया है, दर्जनों किसान अब इसकी खेती करने लगे हैं. अब इस कड़ी में नाम जुड़ा है पपीता का, पपीता की खेती से किसानों की किस्मत बदल रही है. किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं.
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पलामू के लेस्लीगंज में सबसे पहले प्रायोगिक तौर पर एक एकड़ में पपीता की खेती लगाई गई थी. एक एकड़ में एक टन से भी अधिक पपीता का उत्पादन हुआ है. इस पपीते को बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ के इलाकों में बेचा गया. लेस्लीगंज में एक प्राइवेट संस्था ने इसकी खेती की शुरुआत की थी और रेड लेडी प्रजाति का पपीता लगाया था. हॉर्टिकल्चर एक्सपर्ट कृष्णा कुमार ने बताया कि यह पपीता बेहद ही कम वक्त में तैयार हो जाता है. इसकी गुणवत्ता के साथ स्वाद भी काफी अच्छा है. उन्होंने एक एकड़ में इसके फसल की शुरुआत की थी. अब यह धीरे-धीरे इलाके में बढ़ रही है. इसके उत्पादन से अब तक 40 लाख से भी अधिक की आय हुई है.
नक्सल हिट इलाके में पपीता की खेती बदल रही किसानों की किस्मत: पलामू के लेस्लीगंज के अलावा पांकी, चैनपुर, नावाबाजार, सदर प्रखंड, हरिहरगंज और छतरपुर में बड़े पैमाने पर किसान पपीता की खेती कर रहे हैं. पलामू के चैनपुर के सत्यनारायण मेहता ने करीब छह एकड़ में पपीता की खेती की थी. उन्होंने सितंबर अक्टूबर के महीने में पपीता का पौधा लगाया था. दिसंबर के अंतिम और जनवरी के पहले सप्ताह में यह फसल तैयार हो गई. अब तक वे दो लाख रुपये के पपीते बेच चुके हैं.
नीति आयोग भी कर रही है पहल: पलामू कृषि विभाग के अनुसार पलामू में 135 से अधिक किसान पपीता की खेती से जुड़े हुए हैं. पलामू में नीति आयोग भी किसानों के परंपरागत खेती से अलग हटकर कुछ करने के लिए जागरूक कर रहा है. नीति आयोग की एडीएफ नाजरीन ने बताया कि किसानों को पपीता की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहल कर रही है. किसानों को बताया जा रहा है कि कम बारिश में कौन-कौन सी फसल लगाई जा सकती है और कितना फायदा हो सकता है.
रेड लेडी पपीता बदल रहा किसानों की किस्मत, लाखों रुपये कमा रहे किसान
पलामू में किसान सुखाड़ और अकाल की मार से बचने के लिए परांपरागत खेती से हटकर कुछ अलग कर रहे हैं. स्ट्रॉबेरी के बाद किसान अब पपीता के रेड लेडी प्रजाति की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. पलामू में बड़ी संख्या में किसान इसे लेकर जागरूक हैं, वहीं अन्य किसानों को भी लगातार जागरूक किया जा रहा है.
पलामू: पलामू सुखाड़ और अकाल से जूझ रहा है. इसलिए इलाके में किसान परंपरागत खेती से हटकर पपीते की खेती कर रहे हैं. वहीं इसके लिए नीति आयोग भी लगातार जागरूकता अभियान चला रहा है. पहले पलामू में स्ट्रॉबेरी की खेती ने बड़ा बदलाव लाया है, दर्जनों किसान अब इसकी खेती करने लगे हैं. अब इस कड़ी में नाम जुड़ा है पपीता का, पपीता की खेती से किसानों की किस्मत बदल रही है. किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं.
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पलामू के लेस्लीगंज में सबसे पहले प्रायोगिक तौर पर एक एकड़ में पपीता की खेती लगाई गई थी. एक एकड़ में एक टन से भी अधिक पपीता का उत्पादन हुआ है. इस पपीते को बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ के इलाकों में बेचा गया. लेस्लीगंज में एक प्राइवेट संस्था ने इसकी खेती की शुरुआत की थी और रेड लेडी प्रजाति का पपीता लगाया था. हॉर्टिकल्चर एक्सपर्ट कृष्णा कुमार ने बताया कि यह पपीता बेहद ही कम वक्त में तैयार हो जाता है. इसकी गुणवत्ता के साथ स्वाद भी काफी अच्छा है. उन्होंने एक एकड़ में इसके फसल की शुरुआत की थी. अब यह धीरे-धीरे इलाके में बढ़ रही है. इसके उत्पादन से अब तक 40 लाख से भी अधिक की आय हुई है.
नक्सल हिट इलाके में पपीता की खेती बदल रही किसानों की किस्मत: पलामू के लेस्लीगंज के अलावा पांकी, चैनपुर, नावाबाजार, सदर प्रखंड, हरिहरगंज और छतरपुर में बड़े पैमाने पर किसान पपीता की खेती कर रहे हैं. पलामू के चैनपुर के सत्यनारायण मेहता ने करीब छह एकड़ में पपीता की खेती की थी. उन्होंने सितंबर अक्टूबर के महीने में पपीता का पौधा लगाया था. दिसंबर के अंतिम और जनवरी के पहले सप्ताह में यह फसल तैयार हो गई. अब तक वे दो लाख रुपये के पपीते बेच चुके हैं.
नीति आयोग भी कर रही है पहल: पलामू कृषि विभाग के अनुसार पलामू में 135 से अधिक किसान पपीता की खेती से जुड़े हुए हैं. पलामू में नीति आयोग भी किसानों के परंपरागत खेती से अलग हटकर कुछ करने के लिए जागरूक कर रहा है. नीति आयोग की एडीएफ नाजरीन ने बताया कि किसानों को पपीता की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहल कर रही है. किसानों को बताया जा रहा है कि कम बारिश में कौन-कौन सी फसल लगाई जा सकती है और कितना फायदा हो सकता है.