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खत्म हुआ बिहार के लीडरशिप का वर्चस्व, भाकपा माओवादी संगठन में इस इलाके का दबदबा

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Published : Aug 11, 2023, 5:14 PM IST

Updated : Aug 11, 2023, 10:54 PM IST

एक समय था कि भाकपा माओवादी नक्सल संगठन में बिहार के नेताओं का दबदबा था. लेकिन अब संगठन पर उनकी पकड़ कमजोर हो गई है. प्रमोद मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद उन्हें तगड़ा झटका लगा है.

influence of Bihar in CPI Maoist ended
influence of Bihar in CPI Maoist ended
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पलामू: करीब पांच दशक के भाकपा माओवादी नक्सल इतिहास में अब बिहार का लीडरशिप खत्म हो गई है. भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा के गिरफ्तार होने के बाद बिहार का कोई भी बड़ा चेहरा माओवादियों के संगठन में नहीं है. पांच दशक के नक्सल इतिहास में झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ के इलाके में बिहार के लीडरशिप का दबदबा रहा है.

ये भी पढ़ें: झारखंड में हावी दूसरे राज्यों के नक्सली कमांडर, करोड़ों की लेवी वसूल दूसरे जगह बनाते हैं ठिकाना

फिलहाल माओवादियों के संगठन में झारखंड, प. बंगाल और दक्षिण भारत के लीडरशिप का दबदबा है. पिछले एक वर्ष के आंकडों पर गौर कर करें तो बिहार के के टॉप कमांडर मारे गए हैं या पकड़े गए हैं. पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा, सेंट्रल कमेटी सदस्य विजय आर्य, मिथिलेश मेहता, स्टेट एरिया कमेटी सदस्य मारकस उर्फ सौरव गिरफ्तार हुए हैं.

बिहार के लीडरशिप का सबसे बड़ा चेहरा सेंट्रल कमेटी सदस्य संदीप यादव की मौत हो गई है. वहीं स्टेट एरिया कमेटी सदस्य विमल यादव ने आत्मसमर्पण कर दिया है. झारखंड बिहार और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों के भाकपा माओवादी की कमान पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा के पास है. जबकि सेंट्रल कमेटी में शामिल असीम मंडल समेत अन्य सदस्यों में कोई भी बिहार के इलाके का नहीं है.

माओवादियों के टॉप कमांडर रहे और वर्तमान में आजसू के केंद्रीय नेता सतीश कुमार ने कहा कि यह माओवादियों के संगठन का अंदरूनी मामला है. वे फिलहाल आजसू में हैं. इस मामले में वे अधिक नहीं बोल पाएंगे, लेकिन यह बात जरूर है कि बिहार की लीडरशिप का दबदबा खत्म हो गया है. बिहार के लीडरशिप में तानाशाही आ गई थी. यही वजह है कि धीरे-धीरे संगठन खत्म होता गया और संगठन टूट गया.

अविभाजित बिहार समेत कई इलाकों में बिहार के लीडरशिप में ही नक्सल संगठन पनपे थे. दो दशक पहले तक माओवादियों के संगठन में 71 पोलित ब्यूरो सदस्य हुआ करते थे, जिसमें से आधे से अधिक बिहार के थे. पिछले दो दशक में बिहार के रहने वाले 28 से अधिक पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी सदस्य पकड़े गए हैं. जिसमें कई लोग जेल जा चुके हैं जबकि कई सामान्य जीवन जी रहे हैं.

1970 के बाद बिहार के औरंगाबाद में रहने वाले जगदीश मास्टर जहानाबाद के रहने वाले देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद के नेतृत्व में नक्सल संगठनों का लीडरशिप पनपा था. उस दौरान नक्सली संगठनों के संस्थापक सदस्यों में कन्हाई चटर्जी और नारायण सान्याल ने दोनों का सहयोग किया था. जगदीश मास्टर एमसीसीआई जबकि देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद ने पार्टी यूनिटी को खड़ा किया था. दोनों संगठन ने 2004 में विलय कर लिया था. 2018 में बूढ़ापहाड़ पर देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद की बीमारी से मौत हो गई थी.

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पलामू: करीब पांच दशक के भाकपा माओवादी नक्सल इतिहास में अब बिहार का लीडरशिप खत्म हो गई है. भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा के गिरफ्तार होने के बाद बिहार का कोई भी बड़ा चेहरा माओवादियों के संगठन में नहीं है. पांच दशक के नक्सल इतिहास में झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ के इलाके में बिहार के लीडरशिप का दबदबा रहा है.

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फिलहाल माओवादियों के संगठन में झारखंड, प. बंगाल और दक्षिण भारत के लीडरशिप का दबदबा है. पिछले एक वर्ष के आंकडों पर गौर कर करें तो बिहार के के टॉप कमांडर मारे गए हैं या पकड़े गए हैं. पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा, सेंट्रल कमेटी सदस्य विजय आर्य, मिथिलेश मेहता, स्टेट एरिया कमेटी सदस्य मारकस उर्फ सौरव गिरफ्तार हुए हैं.

बिहार के लीडरशिप का सबसे बड़ा चेहरा सेंट्रल कमेटी सदस्य संदीप यादव की मौत हो गई है. वहीं स्टेट एरिया कमेटी सदस्य विमल यादव ने आत्मसमर्पण कर दिया है. झारखंड बिहार और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों के भाकपा माओवादी की कमान पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा के पास है. जबकि सेंट्रल कमेटी में शामिल असीम मंडल समेत अन्य सदस्यों में कोई भी बिहार के इलाके का नहीं है.

माओवादियों के टॉप कमांडर रहे और वर्तमान में आजसू के केंद्रीय नेता सतीश कुमार ने कहा कि यह माओवादियों के संगठन का अंदरूनी मामला है. वे फिलहाल आजसू में हैं. इस मामले में वे अधिक नहीं बोल पाएंगे, लेकिन यह बात जरूर है कि बिहार की लीडरशिप का दबदबा खत्म हो गया है. बिहार के लीडरशिप में तानाशाही आ गई थी. यही वजह है कि धीरे-धीरे संगठन खत्म होता गया और संगठन टूट गया.

अविभाजित बिहार समेत कई इलाकों में बिहार के लीडरशिप में ही नक्सल संगठन पनपे थे. दो दशक पहले तक माओवादियों के संगठन में 71 पोलित ब्यूरो सदस्य हुआ करते थे, जिसमें से आधे से अधिक बिहार के थे. पिछले दो दशक में बिहार के रहने वाले 28 से अधिक पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी सदस्य पकड़े गए हैं. जिसमें कई लोग जेल जा चुके हैं जबकि कई सामान्य जीवन जी रहे हैं.

1970 के बाद बिहार के औरंगाबाद में रहने वाले जगदीश मास्टर जहानाबाद के रहने वाले देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद के नेतृत्व में नक्सल संगठनों का लीडरशिप पनपा था. उस दौरान नक्सली संगठनों के संस्थापक सदस्यों में कन्हाई चटर्जी और नारायण सान्याल ने दोनों का सहयोग किया था. जगदीश मास्टर एमसीसीआई जबकि देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद ने पार्टी यूनिटी को खड़ा किया था. दोनों संगठन ने 2004 में विलय कर लिया था. 2018 में बूढ़ापहाड़ पर देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद की बीमारी से मौत हो गई थी.

Last Updated : Aug 11, 2023, 10:54 PM IST
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