ETV Bharat / state

अफ्रीकी देशों ने जाना झारखंड में हाथियों और मानव के संघर्ष की कहानी, कई बिंदुओं पर बनी साझा रणनीति - ranchi news

झारखंड में लगातार हो रहे हाथियों और मानव के संघर्ष के बारे में अफ्रीकी देशों को बताया गया. इस दौरान इसे रोकने के साथ ही कई बिंदूओं पर साझा रणनीति भी बनाई गई. झारखंड में 2017 से अब तक करीब 510 लोगों की जान इस संघर्ष के कारण चली गई है.

conflict between elephants and humans in Jharkhand
conflict between elephants and humans in Jharkhand
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 7, 2023, 8:12 PM IST

देखें पूरी खबर

पलामू: भारत और दक्षिण अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में हाथी मौजूद हैं. दोनों देशों में हाथियों के संरक्षण को लेकर कई कदम उठाए जा रहे हैं. भारत और अफ्रीकी देश मानव और हाथियों के संघर्षों को लेकर भी जूझ रहे हैं. भारत के झारखंड में हाथी और मानव की संघर्ष की कई कहानियां हैं. अफ्रीकी देशों ने झारखंड में मानव और हाथियों के बीच संघर्ष के कारण और हाथियों के बदलते व्यवहार के बारे में जाना है. साथ ही इसे रोकने के लिए साझा रूप से रणनीति भी बनी.

यह भी पढ़ें: बगोदर इलाके में दूसरे दिन भी हाथियों ने जारी रखा तांडव, घर, दुकान समेत फसलों को किया तबाह

दरअसल, दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में 8 से 12 अगस्त तक हाथी और मानव के बीच संघर्ष को लेकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया. इस वर्कशॉप में भारत के एनटीसीए के पूर्व सदस्य सह चर्चित पर्यावरणविद डॉ डीएस श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया. इस वर्कशॉप में दक्षिण अफ्रीका के अलावा तंजानिया, केन्या, जिम्बाब्वे, इथोपिया, नामीबिया ने भाग लिया. चार दिनों तक चले इस वर्कशॉप में हाथियों और मानव के बीच संघर्ष को लेकर कई सुझावों पर सहमति बनी.

अफ्रीका और भारत के हाथियों में है अंतर: अफ्रीका से वर्कशॉप में भाग लेने के बाद भारत लौटने पर प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने बताया कि अफ्रीका और भारत के हाथियों में काफी अंतर है. दोनों के व्यवहार भी काफी अलग हैं. प्रोफेसर बताते हैं कि दोनों की प्रजाति भी अलग है. भारत की अपेक्षा अफ्रीकी देशों के हाथी कम हिसंक हैं. वे बताते हैं कि भारत और अफ्रीकी देशों में रिजर्व एरिया में एक बड़ा अंतर है. अफ्रीकी देशों में सरकारी और प्राइवेट अलग-अलग रिजर्व एरिया है. प्राइवेट रिजर्व एरिया में शिकार की अनुमति है, लेकिन सरकारी रिजर्व एरिया में शिकार की अनुमति नहीं है. जबकि भारत में किसी तरह के वन्य जीवों का शिकार प्रतिबंधित है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि अफ्रीकी देशों से उन्होंने भारत जैसे कानून को लागू करने का आग्रह किया.

हाथियों के फूड सिक्योरिटी, प्रवास और ईको टूरिज्म पर रणनीति बनाने पर जोर: वर्कशॉप में हाथी और मानव के बीच हो रहे संघर्षों को लेकर चिंता व्यक्त की गयी. इस संघर्ष को दूर करने के लिए फूड सिक्योरिटी, हाथियों के लिए प्रवास और ईको टूरिज्म पर रणनीति बनाने पर सहमति बनी. हाथियों के प्रवास वाले इलाके से आबादी को दूर रखने की बात कही गई है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि हाथी और मानव संघर्ष की सबसे बड़ी वजह फूड सिक्योरिटी को लेकर है. फूड सिक्योरिटी के कारण ही हाथी जंगल से बाहर निकल रहे हैं और मानव के साथ संघर्ष हो रहा है. वह बताते हैं कि रिजर्व एरिया में रहने वाली आबादी को दूसरी जगह बसाया जा सकता है या रिजर्व एरिया में रहने वाली आबादी को रोजगार का ऐसा साधन उपलब्ध करवाया जाए कि वह वन संपदा को नुकसान नहीं पहुंचाएं. वे बताते हैं कि भारत की अपेक्षा अफ्रीका के इलाके में हाथियों के लिए फूड सिक्योरिटी अधिक है. भारत में एक से लेकर पांच हजार स्क्वायर किलोमीटर तक रिजर्व एरिया है. जबकि अफ्रीका में एक-एक रिजर्व एरिया 20-20 हजार स्क्वायर किलोमीटर में है.

2017 से अब तक झारखंड में 510 लोगों की मौत: झारखंड में हाथियों और मानव के बीच संघर्ष से प्रत्येक वर्ष दर्जनों लोगों की मौत होती है. 2017 से अब तक झारखंड में 510 लोगों की मौत हुई है. 2023 में अप्रैल तक 96 लोगों की मौत हुई है. झारखंड के इलाके में पलामू टाइगर रिजर्व, दालमा, सारंडा के इलाके में हाथी मौजूद हैं. पलामू टाइगर रिजर्व में 180 से 190 के करीब हाथी मौजूद हैं.

देखें पूरी खबर

पलामू: भारत और दक्षिण अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में हाथी मौजूद हैं. दोनों देशों में हाथियों के संरक्षण को लेकर कई कदम उठाए जा रहे हैं. भारत और अफ्रीकी देश मानव और हाथियों के संघर्षों को लेकर भी जूझ रहे हैं. भारत के झारखंड में हाथी और मानव की संघर्ष की कई कहानियां हैं. अफ्रीकी देशों ने झारखंड में मानव और हाथियों के बीच संघर्ष के कारण और हाथियों के बदलते व्यवहार के बारे में जाना है. साथ ही इसे रोकने के लिए साझा रूप से रणनीति भी बनी.

यह भी पढ़ें: बगोदर इलाके में दूसरे दिन भी हाथियों ने जारी रखा तांडव, घर, दुकान समेत फसलों को किया तबाह

दरअसल, दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में 8 से 12 अगस्त तक हाथी और मानव के बीच संघर्ष को लेकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया. इस वर्कशॉप में भारत के एनटीसीए के पूर्व सदस्य सह चर्चित पर्यावरणविद डॉ डीएस श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया. इस वर्कशॉप में दक्षिण अफ्रीका के अलावा तंजानिया, केन्या, जिम्बाब्वे, इथोपिया, नामीबिया ने भाग लिया. चार दिनों तक चले इस वर्कशॉप में हाथियों और मानव के बीच संघर्ष को लेकर कई सुझावों पर सहमति बनी.

अफ्रीका और भारत के हाथियों में है अंतर: अफ्रीका से वर्कशॉप में भाग लेने के बाद भारत लौटने पर प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने बताया कि अफ्रीका और भारत के हाथियों में काफी अंतर है. दोनों के व्यवहार भी काफी अलग हैं. प्रोफेसर बताते हैं कि दोनों की प्रजाति भी अलग है. भारत की अपेक्षा अफ्रीकी देशों के हाथी कम हिसंक हैं. वे बताते हैं कि भारत और अफ्रीकी देशों में रिजर्व एरिया में एक बड़ा अंतर है. अफ्रीकी देशों में सरकारी और प्राइवेट अलग-अलग रिजर्व एरिया है. प्राइवेट रिजर्व एरिया में शिकार की अनुमति है, लेकिन सरकारी रिजर्व एरिया में शिकार की अनुमति नहीं है. जबकि भारत में किसी तरह के वन्य जीवों का शिकार प्रतिबंधित है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि अफ्रीकी देशों से उन्होंने भारत जैसे कानून को लागू करने का आग्रह किया.

हाथियों के फूड सिक्योरिटी, प्रवास और ईको टूरिज्म पर रणनीति बनाने पर जोर: वर्कशॉप में हाथी और मानव के बीच हो रहे संघर्षों को लेकर चिंता व्यक्त की गयी. इस संघर्ष को दूर करने के लिए फूड सिक्योरिटी, हाथियों के लिए प्रवास और ईको टूरिज्म पर रणनीति बनाने पर सहमति बनी. हाथियों के प्रवास वाले इलाके से आबादी को दूर रखने की बात कही गई है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि हाथी और मानव संघर्ष की सबसे बड़ी वजह फूड सिक्योरिटी को लेकर है. फूड सिक्योरिटी के कारण ही हाथी जंगल से बाहर निकल रहे हैं और मानव के साथ संघर्ष हो रहा है. वह बताते हैं कि रिजर्व एरिया में रहने वाली आबादी को दूसरी जगह बसाया जा सकता है या रिजर्व एरिया में रहने वाली आबादी को रोजगार का ऐसा साधन उपलब्ध करवाया जाए कि वह वन संपदा को नुकसान नहीं पहुंचाएं. वे बताते हैं कि भारत की अपेक्षा अफ्रीका के इलाके में हाथियों के लिए फूड सिक्योरिटी अधिक है. भारत में एक से लेकर पांच हजार स्क्वायर किलोमीटर तक रिजर्व एरिया है. जबकि अफ्रीका में एक-एक रिजर्व एरिया 20-20 हजार स्क्वायर किलोमीटर में है.

2017 से अब तक झारखंड में 510 लोगों की मौत: झारखंड में हाथियों और मानव के बीच संघर्ष से प्रत्येक वर्ष दर्जनों लोगों की मौत होती है. 2017 से अब तक झारखंड में 510 लोगों की मौत हुई है. 2023 में अप्रैल तक 96 लोगों की मौत हुई है. झारखंड के इलाके में पलामू टाइगर रिजर्व, दालमा, सारंडा के इलाके में हाथी मौजूद हैं. पलामू टाइगर रिजर्व में 180 से 190 के करीब हाथी मौजूद हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.