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योजनाएं तमाम फिर भी दिव्यांग परेशान, सरकारी कार्यालयों के काट रहे चक्कर - Lohardaga Social Welfare Department News

लोहरदगा जिले में दिव्यांग सरकारी व्यवस्था के आगे बेबश और लाचार हैं. दिव्यांग सुविधाओं के लिए सरकारी चौखट पर एड़ियां रगड़ रहे हैं, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है. सिस्टम की उदासीनता से उनमें भारी आक्रोश है.

दिव्यांग परेशान
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Published : Jan 8, 2021, 3:48 PM IST

Updated : Jan 8, 2021, 5:12 PM IST

लोहरदगा: केंद्र व राज्य सरकार दिव्यांगों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन अभी भी बुनियादी तौर पर कुछ नहीं बदला. एक ओर पीएम मोदी ने ऐसे लोगों को दिव्यांग नाम दिया है, लेकिन सिर्फ नाम बदलने से व्यवस्था बदल जाएगी, ऐसा फिलहाल नहीं दिख रहा है. कुछ इसी तरह का मामला यहां देखने को मिला.

देखें स्पेशल खबर.

समाज का अभिन्न हिस्सा होने के बाद भी सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठाता है. मजबूर परेशान और अपनी तकलीफों को लेकर सरकारी चौखट पर एड़ियां रगड़ते दिव्यांग सवाल पूछते हैं कि क्या सिर्फ कागजों में उन्हें सम्मान मिलेगा.

लोहरदगा में दिव्यांगों की संख्या 4,740 है. इन दिव्यांगों की परेशानी को सुनने वाला कोई नहीं है. सरकारी दफ्तर में पहुंचकर घंटों जमीन पर बैठकर किसी अधिकारी का इंतजार करते हैं कि कोई आए और उनकी बात को सुने. इनके हालत सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं. पूछते हैं कि क्या दिव्यांग सिर्फ कागजों में हैं.

अधिकारियों तक पहुंच भी नहीं पाते

किसी को ट्राई साइकिल चाहिए तो कोई बैसाखी की मांग को लेकर आता है. कोई ट्राई साइकिल चला नहीं पाता तो कोई बैटरी संचालित ट्राई साइकिल की उम्मीद लगाए हुए सरकारी दफ्तर के बाहर घंटों इंतजार करता है.

लेकिन वे अधिकारियों से मिल भी नहीं पाते. अधिकारियों से मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. जब अधिकारी अपना काम खत्म कर घर जाने के लिए निकलते हैं, तब उनकी नजर इन दिव्यांगों पर पड़ती है और फिर इनकी समस्या सुनी जाती है.

लोहरदगा में दिव्यांगों की ऐसी हालत है कहीं ना कहीं यह पूछती है कि क्या शारीरिक रूप से उनकी मजबूरी उनकी किस्मत की अमिट लकीर बन चुकी है. लोहरदगा जिले में रहने वाले दिव्यांग डीसी कार्यालय के बाहर इंतजार करते हुए अपने आप से सवाल पूछते हैं कि उनका कसूर क्या है.

यह भी पढ़ेंः सीएम काफिले पर हमले के आरोपी भैरव सिंह से पुलिस करेगी पूछताछ, आज से 7 दिनों तक रिमांड

शारीरिक रूप से किस्मत में जो लिख गया क्या वह कभी मिटेगा नहीं. उनकी फरियाद कैसे सुनी जाएगी. अधिकारियों के कार्यालय यहां तक कि डीसी का कार्यालय भी प्रथम तल्ला में स्थित है.

वहां तक पहुंचने के लिए इन्हें कई सीढ़ियों का सफर तय करना होगा. एक सामान्य इंसान तो वहां तक पहुंच सकता है, पर एक दिव्यांग एड़ियां रगड़ता हुआ वहां तक कैसे पहुंचेगा.

शायद इस बात का एहसास अधिकारियों को नहीं है. अधिकारी कहते हैं कि वह दिव्यांगों की समस्या को लेकर गंभीर हैं. सीमित उपलब्धता के बावजूद दिव्यांगों को मदद दी जा रही है, फिर भी दिव्यांगों की हालत देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि इनकी समस्या हल भी हुई होगी.

लोहरदगा जिले में दिव्यांग कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं. अपनी समस्या को लेकर जिला प्रशासन के वरीय अधिकारियों से मिल भी नहीं पाते. प्रशासन के वरीय अधिकारियों का कार्यालय कक्ष समाहरणालय के प्रथम तल्ला में स्थित है. वहां तक पहुंचने के लिए दिव्यांगों को सीढ़ी का सफर तय करना होगा. शारीरिक कमजोरी की वजह से दिव्यांग समाहरणालय के बाहर जमीन पर बैठकर घंटों इंतजार करते हैं.

लोहरदगा: केंद्र व राज्य सरकार दिव्यांगों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन अभी भी बुनियादी तौर पर कुछ नहीं बदला. एक ओर पीएम मोदी ने ऐसे लोगों को दिव्यांग नाम दिया है, लेकिन सिर्फ नाम बदलने से व्यवस्था बदल जाएगी, ऐसा फिलहाल नहीं दिख रहा है. कुछ इसी तरह का मामला यहां देखने को मिला.

देखें स्पेशल खबर.

समाज का अभिन्न हिस्सा होने के बाद भी सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठाता है. मजबूर परेशान और अपनी तकलीफों को लेकर सरकारी चौखट पर एड़ियां रगड़ते दिव्यांग सवाल पूछते हैं कि क्या सिर्फ कागजों में उन्हें सम्मान मिलेगा.

लोहरदगा में दिव्यांगों की संख्या 4,740 है. इन दिव्यांगों की परेशानी को सुनने वाला कोई नहीं है. सरकारी दफ्तर में पहुंचकर घंटों जमीन पर बैठकर किसी अधिकारी का इंतजार करते हैं कि कोई आए और उनकी बात को सुने. इनके हालत सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं. पूछते हैं कि क्या दिव्यांग सिर्फ कागजों में हैं.

अधिकारियों तक पहुंच भी नहीं पाते

किसी को ट्राई साइकिल चाहिए तो कोई बैसाखी की मांग को लेकर आता है. कोई ट्राई साइकिल चला नहीं पाता तो कोई बैटरी संचालित ट्राई साइकिल की उम्मीद लगाए हुए सरकारी दफ्तर के बाहर घंटों इंतजार करता है.

लेकिन वे अधिकारियों से मिल भी नहीं पाते. अधिकारियों से मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. जब अधिकारी अपना काम खत्म कर घर जाने के लिए निकलते हैं, तब उनकी नजर इन दिव्यांगों पर पड़ती है और फिर इनकी समस्या सुनी जाती है.

लोहरदगा में दिव्यांगों की ऐसी हालत है कहीं ना कहीं यह पूछती है कि क्या शारीरिक रूप से उनकी मजबूरी उनकी किस्मत की अमिट लकीर बन चुकी है. लोहरदगा जिले में रहने वाले दिव्यांग डीसी कार्यालय के बाहर इंतजार करते हुए अपने आप से सवाल पूछते हैं कि उनका कसूर क्या है.

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शारीरिक रूप से किस्मत में जो लिख गया क्या वह कभी मिटेगा नहीं. उनकी फरियाद कैसे सुनी जाएगी. अधिकारियों के कार्यालय यहां तक कि डीसी का कार्यालय भी प्रथम तल्ला में स्थित है.

वहां तक पहुंचने के लिए इन्हें कई सीढ़ियों का सफर तय करना होगा. एक सामान्य इंसान तो वहां तक पहुंच सकता है, पर एक दिव्यांग एड़ियां रगड़ता हुआ वहां तक कैसे पहुंचेगा.

शायद इस बात का एहसास अधिकारियों को नहीं है. अधिकारी कहते हैं कि वह दिव्यांगों की समस्या को लेकर गंभीर हैं. सीमित उपलब्धता के बावजूद दिव्यांगों को मदद दी जा रही है, फिर भी दिव्यांगों की हालत देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि इनकी समस्या हल भी हुई होगी.

लोहरदगा जिले में दिव्यांग कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं. अपनी समस्या को लेकर जिला प्रशासन के वरीय अधिकारियों से मिल भी नहीं पाते. प्रशासन के वरीय अधिकारियों का कार्यालय कक्ष समाहरणालय के प्रथम तल्ला में स्थित है. वहां तक पहुंचने के लिए दिव्यांगों को सीढ़ी का सफर तय करना होगा. शारीरिक कमजोरी की वजह से दिव्यांग समाहरणालय के बाहर जमीन पर बैठकर घंटों इंतजार करते हैं.

Last Updated : Jan 8, 2021, 5:12 PM IST
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