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लोहरदगा: शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता आ रहा नजर, विकास के नाम पर कुछ भी नहीं

लोहरदगा के भौंरो गांव की हालात बद से बदतर है. यहां विकास के नाम पर सिर्फ एक आदर्श गांव का बोर्ड नजर आता है. बता दें कि शहीद पांडे गणपत राय का ये पैतृक गांव है. जहां नेता आकर विकास का वादा कर चले जाते हैं.

Development not happening in the Bhauro village
शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता आ रहा नजर
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Published : Jan 17, 2020, 12:55 AM IST

Updated : Jan 17, 2020, 6:58 AM IST

लोहरदगा: जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव के बाहर लगा आदर्श गांव के बोर्ड देखकर यह लगता है कि यह निश्चित रूप से आदर्श गांव होगा. लेकिन शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता नजर आ रहा है. शहीद के सपने और अरमान यहां पर घुट-घुट कर मरने को विवश हैं. शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही है.

इस गांव में नया लैंपस भवन 1 साल पहले बनकर तैयार हुआ था. वहीं, आज तक उस भवन का ताला भी नहीं खुला. सड़कों की हालत उतनी ही बदतर है. जब जयंती समारोह की बात हुई तो सड़कों में डस्ट डालकर उसकी मरम्मत की गई. साथ ही यहां पानी की सुविधाएं भी नहीं है. गांव में नालियों का गंदा पानी सड़क पर बहता है. किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं है. बच्चों के लिए जो स्कूल है, उस स्कूल की हालत यह बताती है कि यहां पर बच्चों की शिक्षा में सुधार से कहीं ज्यादा यहां की व्यवस्था में सुधार जरूरी है. समस्याएं काफी है, सालों से लोग सिर्फ वादे सुनते आ रहे हैं. इन वायदों को पूरा करने को लेकर किसी ने कोशिश ही नहीं की. गांव की बदहाली आज भी शहीद के अरमानों को दम तोड़ने पर विवश करती है.

शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता आ रहा नजर

ये भी पढ़ें- राजधनवार के पूर्व विधायक ने की मांग, भाजपा में शामिल होने से पहले इस्तीफा दें बाबूलाल

1857 की क्रांति के वीर शहीद पांडे गणपत राय की जन्मस्थली लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव की हालत को देखकर तरस आता है. गांव में सुविधाएं तो है नहीं, समस्याओं का अंबार जरूर लगा हुआ है. हर साल 17 जनवरी को जयंती समारोह के मौके पर यहां पर मेला लगता है. नेता यहां पर खूब वादे करते हैं, पर इन वादों की हकीकत देखनी हो तो कभी गांव में आकर देखिए. यहां पर शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही.

लोहरदगा: जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव के बाहर लगा आदर्श गांव के बोर्ड देखकर यह लगता है कि यह निश्चित रूप से आदर्श गांव होगा. लेकिन शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता नजर आ रहा है. शहीद के सपने और अरमान यहां पर घुट-घुट कर मरने को विवश हैं. शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही है.

इस गांव में नया लैंपस भवन 1 साल पहले बनकर तैयार हुआ था. वहीं, आज तक उस भवन का ताला भी नहीं खुला. सड़कों की हालत उतनी ही बदतर है. जब जयंती समारोह की बात हुई तो सड़कों में डस्ट डालकर उसकी मरम्मत की गई. साथ ही यहां पानी की सुविधाएं भी नहीं है. गांव में नालियों का गंदा पानी सड़क पर बहता है. किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं है. बच्चों के लिए जो स्कूल है, उस स्कूल की हालत यह बताती है कि यहां पर बच्चों की शिक्षा में सुधार से कहीं ज्यादा यहां की व्यवस्था में सुधार जरूरी है. समस्याएं काफी है, सालों से लोग सिर्फ वादे सुनते आ रहे हैं. इन वायदों को पूरा करने को लेकर किसी ने कोशिश ही नहीं की. गांव की बदहाली आज भी शहीद के अरमानों को दम तोड़ने पर विवश करती है.

शहीद पांडे गणपत राय का पैतृक गांव भौंरो दम तोड़ता आ रहा नजर

ये भी पढ़ें- राजधनवार के पूर्व विधायक ने की मांग, भाजपा में शामिल होने से पहले इस्तीफा दें बाबूलाल

1857 की क्रांति के वीर शहीद पांडे गणपत राय की जन्मस्थली लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव की हालत को देखकर तरस आता है. गांव में सुविधाएं तो है नहीं, समस्याओं का अंबार जरूर लगा हुआ है. हर साल 17 जनवरी को जयंती समारोह के मौके पर यहां पर मेला लगता है. नेता यहां पर खूब वादे करते हैं, पर इन वादों की हकीकत देखनी हो तो कभी गांव में आकर देखिए. यहां पर शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही.

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स्टोरी-शहीद के अरमानों को तिलांजलि दे रहा यह गांव
... शहीद पांडे गणपत राय के पैतृक गांव भौरों में दम तोड़ते हैं वादे
एंकर- 1857 की क्रांति के वीर शहीद पांडे गणपत राय की जन्मस्थली लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव के बाहर लगा आदर्श गांव के बोर्ड देखकर यह लगता है कि यह निश्चित रूप से आदर्श गांव होगा. जहां पर विकास की तमाम सुविधाएं होंगी. लोगों के लिए हर जरूरतें यहां होंगी. विकास के तमाम सपनों और अरमानों को लिए, परंतु जब इस बोर्ड को छोड़कर कुछ आगे गांव की ओर बढ़ा जाता है तो सच्चाई सामने आने लगती है. बोर्ड को देखकर जो भ्रम हम पाल बैठे हैं वह कुछ कदमों में ही नजर आने लगता है. साफ दिख जाता है कि शहीद के इस गांव में विकास दम तोड़ रहा है. शहीद के सपने और अरमान यहां पर घुट-घुट कर मरने को विवश हैं. शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही है.

बाइट- बसंत प्रजापति, स्थानीय ग्रामीण

वी/ओ- इस गांव में नया लैम्प्स भवन 1 साल पहले बनकर तैयार है. आज तक उस भवन का ताला भी नहीं खुला. सड़कों की हालत उतनी ही बदतर है. जब जयंती समारोह की बात हुई तो सड़कों में डस्ट डालकर उसकी मरम्मत की जा रही है. पानी की सुविधाएं भी नहीं है. गांव में नालियों का गंदा पानी सड़क पर बहता है. किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं है. बच्चों के लिए जो स्कूल है, उस स्कूल की हालत यह बताती है कि यहां पर बच्चों की शिक्षा में सुधार से कहीं ज्यादा यहां की व्यवस्था में सुधार जरूरी है. समस्याएं काफी है, सालों से लोग सिर्फ वादे सुनते आ रहे हैं. इन वायदों को पूरा करने को लेकर किसी ने कोशिश ही नहीं की. गांव की बदहाली आज भी शहीद के अरमानों को दम तोड़ने पर विवश करती है.

बाइट- सरोज कुमार उरांव, प्रभारी प्रधानाध्यापक, उत्क्रमित मवि भौंरो
बाइट- महेश राम, स्थानीय ग्रामीण

वी/ओ- शहीद पांडे गणपत राय की जन्म स्थली को आदर्श गांव के रूप में घोषित तो जरूर कर दिया गया. यहां पर 17 जनवरी को विकास मेला सह जयंती समारोह का आयोजन भी होता है. जिसमें राज्य के बड़े-बड़े नेता, सांसद, विधायक यहां तक कि मंत्री भी शामिल होते हैं. हर कोई गांव में विकास की बयार की बात कहता है, पर अगले ही दिन उस गांव की तकदीर वहीं पहुंच जाती है, जहां पर से वह चलना शुरू हुआ था. गांव में आज भी समस्याओं का अंबार लगा हुआ है. युवाओं के पास रोजगार नहीं है, सुविधाओं का घोर अभाव है. समस्याओं की वजह से यहां पर हर साल पलायन करने को लोग विवश नजर आते हैं. सड़कों की हालत, नालियों का बहता गंदा पानी, पेयजल के लिए जूझते लोग, स्कूल की बदहाली सहित कई ऐसे समस्याएं हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि आदर्श गांव का तमगा तो जरूर मिल गया गांव में विकास आज भी रो रहा है.

बाइट- डॉक्टर वंदना राय, शहीद की परपोती

वी/ओ- पांडे गणपत राय का जन्म 17 जनवरी 1809 को लोहरदगा जिले के भौंरो गांव में हुआ था. यह छोटानागपुर महाराज के दीवान थे. पांडे गणपत राय ने 1857 के विद्रोह में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ भाग लिया था. झारखंड में 1857 की क्रांति की व्यापक शुरुआत तब हुई, जब सेना के दस्ते ने 30 जुलाई 1857 को हजारीबाग में विद्रोह कर दिया था. विद्रोह का नेतृत्व सूबेदार जयमंगल पांडे और नादिर अली कर रहे थे. यह सैनिक विद्रोह बाद में जनक्रांति में बदल गया. इसी विद्रोह के नायक थे शहीद पांडे गणपत राय. आज दुर्भाग्य की बात है कि शहीद के जयंती समारोह में नेता और मंत्री आने से कतराते हैं. यहां पर विकास मुंह मोड़ चुका है. लोग अपने आप को ठगा महसूस करते हैं. इसकी पीड़ा साफ तौर पर शहीद के परिजनों के चेहरे पर भी नजर आती है.


Body:इस गांव में नया लैम्प्स भवन 1 साल पहले बनकर तैयार है. आज तक उस भवन का ताला भी नहीं खुला. सड़कों की हालत उतनी ही बदतर है. जब जयंती समारोह की बात हुई तो सड़कों में डस्ट डालकर उसकी मरम्मत की जा रही है. पानी की सुविधाएं भी नहीं है. गांव में नालियों का गंदा पानी सड़क पर बहता है. किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं है. बच्चों के लिए जो स्कूल है, उस स्कूल की हालत यह बताती है कि यहां पर बच्चों की शिक्षा में सुधार से कहीं ज्यादा यहां की व्यवस्था में सुधार जरूरी है. समस्याएं काफी है, सालों से लोग सिर्फ वादे सुनते आ रहे हैं. इन वायदों को पूरा करने को लेकर किसी ने कोशिश ही नहीं की. गांव की बदहाली आज भी शहीद के अरमानों को दम तोड़ने पर विवश करती है.


Conclusion:1857 की क्रांति के वीर शहीद पांडे गणपत राय की जन्मस्थली लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौंरो गांव की हालत को देखकर तरस आता है. गांव में सुविधाएं तो है नहीं, समस्याओं का अंबार जरूर लगा हुआ है. हर साल 17 जनवरी को जयंती समारोह के मौके पर यहां पर मेला लगता है. नेता यहां पर खूब वादे करते हैं, पर इन वादों की हकीकत देखनी हो तो कभी गांव में आकर देखिए. यहां पर शहीद के अरमानों को तिलांजलि दी जा रही.
Last Updated : Jan 17, 2020, 6:58 AM IST
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