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लातेहार: 'सहिया' हैं स्वास्थ्य विभाग की पहिया, औरों के लिए वरदान पर खुद हैं बदहाल - latehar sahia payment news

लातेहार जिले में सहिया स्वास्थ्य विभाग की काफी मदद कर रही है. लेकिन दूसरों की मदद कर रही सहिया खुद परेशान है. सहिया से काम तो खूब लिया जा रहा है, लेकिन उस हिसाब से मानदेय नहीं दिया जा रहा है.

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सहिया को मिल रहा कम मानदेय
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Published : Nov 11, 2020, 7:23 PM IST

लातेहार: स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़े जिले में सहिया स्वास्थ्य विभाग की पहिया के रूप में कार्य कर रही है. दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए भी एक सच्ची सहेली साबित हो रही है. हालांकि समाज के दुख दर्द को बांटने वाली सहिया खुद बदहाल है.

देखें स्पेशल खबर
सहिया कर रही अपना काम
सहिया स्वास्थ्य विभाग की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. झारखंड राज्य में स्वास्थ्य विभाग हमेशा ही कर्मियों की कमी का कारण बतता हुए व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने में असफल थी. ऐसे में सहिया का कांसेप्ट लाकर सरकार ने महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने की योजना आरंभ की थी. सरकार का यह कांसेप्ट पूरी तरह सफल भी रहा. गांव की सक्रिय महिला को ही सहिया बनाकर उनसे स्वास्थ विभाग के लिंक के रूप में काम लेना आरंभ कर दिया गया. गांव की सहिया ने भी अपने कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देना आरंभ कर दिया.
महिलाओं का रखती हैं ख्याल
गांव की सहिया अपने क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं, किशोरियों युवतियों और बच्चियों का पूरा ख्याल रखती है. महिलाओं की गर्भावस्था धारण करने से लेकर प्रसव तक सहिया उन पर नजर बनाए रखती है. इस दौरान सभी प्रकार के टीकाकरण के अलावा अन्य सभी प्रकार की चिकित्सीय सुविधा और परामर्श भी उपलब्ध कराती रहती है.
अन्य मरीजों का भी रखते हैं ख्याल
सहिया अपने गांव की महिलाओं के साथ साथ अन्य मरीजों का भी ख्याल रखती है. सभी प्रकार की बीमारियों का सर्वे, इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग से समन्वय बनाने का काम भी सहिया के जॉब प्रोफाइल में है. सहिया मरीजों को अस्पताल भी पहुंचा कर उनका इलाज करवाती है. वहीं, प्रत्येक दिन दो सहिया सदर अस्पताल में बैठकर गांव से आने वाली महिलाओं और मरीजों को इलाज में सहयोग करती है.
कोरोना काल में बने वरदान
कोरोना वायरस काल मे जब लोग एक दूसरे के सामने जाने में भी कतरा रहे थे, तो उस दौरान सहिया गांव में जाकर सर्वे का काम कर रही थी. गांव में कितने मजदूर बाहर से आए? किन लोगों में कोरोना के लक्षण है? इस जैसे कई प्रकार का सर्वे कर गांव की रिपोर्ट को स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाई. इसी का प्रतिफल हुआ कि लातेहार जैसे पिछड़े जिले में भी स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ और कोरोना संक्रमित व्यक्तियों को चिन्हित किया गया और उनका इलाज आरंभ किया गया.

इसे भी पढ़ें-दिवाली में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले खुद अंधेरे में, कुम्हारों पर आर्थिक संकट

बदहाल हैं सहिया
समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने वाली सहिया खुद बदहाल हैं. सहिया को मानदेय के रूप में मात्र ₹2000 मिलता है. यानी ₹2000 के मासिक भुगतान पर ही सहिया दिन रात लोगों को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने में जुटी रहती है. इनकी समस्याओं को लेकर आवाज उठाने वाला भी कोई नहीं है. सहीया का अपना कोई संगठन भी नहीं है जो इनके लिए संघर्ष करें.

क्या कहती है सहिया
इस संबंध में सहिया अनुराधा देवी ने बताया कि बच्चियों के जन्म से लेकर 50 साल तक की उम्र तक की महिलाओं का पूरा ख्याल रखना उनका कार्य है. हालांकि जितना काम उन से लिया जाता है उसके हिसाब से मानदेय या नहीं मिल पाता है. वहीं प्रभा तिर्की ने कहा कि कोरोना काल में भी उन लोगों ने काफी काम किया. वह दिन रात मरीजों को उचित सुविधा दिलाने में लगी रहती हैं. परंतु उन्हें काफी कम मानदेय मिलता है.


स्वास्थ्य अधिकारी भी मानते हैं सहिया हैं वरदान
जिले के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते है कि गांव की सहिया विभाग के लिए वरदान के समान है. लातेहार के सिविल सर्जन डॉ एसके श्रीवास्तव ने कहा कि सहिया स्वास्थ्य विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इनके सहारे ही गांव-गांव तक आसानी से स्वास्थ्य सुविधा पहुंच पाती है. उन्होंने कहा कि सहिया को मानदेय के साथ कुछ प्रोत्साहन राशि भी देने का प्रावधान है.

लातेहार: स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़े जिले में सहिया स्वास्थ्य विभाग की पहिया के रूप में कार्य कर रही है. दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए भी एक सच्ची सहेली साबित हो रही है. हालांकि समाज के दुख दर्द को बांटने वाली सहिया खुद बदहाल है.

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सहिया कर रही अपना काम
सहिया स्वास्थ्य विभाग की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. झारखंड राज्य में स्वास्थ्य विभाग हमेशा ही कर्मियों की कमी का कारण बतता हुए व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने में असफल थी. ऐसे में सहिया का कांसेप्ट लाकर सरकार ने महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने की योजना आरंभ की थी. सरकार का यह कांसेप्ट पूरी तरह सफल भी रहा. गांव की सक्रिय महिला को ही सहिया बनाकर उनसे स्वास्थ विभाग के लिंक के रूप में काम लेना आरंभ कर दिया गया. गांव की सहिया ने भी अपने कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देना आरंभ कर दिया.
महिलाओं का रखती हैं ख्याल
गांव की सहिया अपने क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं, किशोरियों युवतियों और बच्चियों का पूरा ख्याल रखती है. महिलाओं की गर्भावस्था धारण करने से लेकर प्रसव तक सहिया उन पर नजर बनाए रखती है. इस दौरान सभी प्रकार के टीकाकरण के अलावा अन्य सभी प्रकार की चिकित्सीय सुविधा और परामर्श भी उपलब्ध कराती रहती है.
अन्य मरीजों का भी रखते हैं ख्याल
सहिया अपने गांव की महिलाओं के साथ साथ अन्य मरीजों का भी ख्याल रखती है. सभी प्रकार की बीमारियों का सर्वे, इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग से समन्वय बनाने का काम भी सहिया के जॉब प्रोफाइल में है. सहिया मरीजों को अस्पताल भी पहुंचा कर उनका इलाज करवाती है. वहीं, प्रत्येक दिन दो सहिया सदर अस्पताल में बैठकर गांव से आने वाली महिलाओं और मरीजों को इलाज में सहयोग करती है.
कोरोना काल में बने वरदान
कोरोना वायरस काल मे जब लोग एक दूसरे के सामने जाने में भी कतरा रहे थे, तो उस दौरान सहिया गांव में जाकर सर्वे का काम कर रही थी. गांव में कितने मजदूर बाहर से आए? किन लोगों में कोरोना के लक्षण है? इस जैसे कई प्रकार का सर्वे कर गांव की रिपोर्ट को स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाई. इसी का प्रतिफल हुआ कि लातेहार जैसे पिछड़े जिले में भी स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ और कोरोना संक्रमित व्यक्तियों को चिन्हित किया गया और उनका इलाज आरंभ किया गया.

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बदहाल हैं सहिया
समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने वाली सहिया खुद बदहाल हैं. सहिया को मानदेय के रूप में मात्र ₹2000 मिलता है. यानी ₹2000 के मासिक भुगतान पर ही सहिया दिन रात लोगों को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने में जुटी रहती है. इनकी समस्याओं को लेकर आवाज उठाने वाला भी कोई नहीं है. सहीया का अपना कोई संगठन भी नहीं है जो इनके लिए संघर्ष करें.

क्या कहती है सहिया
इस संबंध में सहिया अनुराधा देवी ने बताया कि बच्चियों के जन्म से लेकर 50 साल तक की उम्र तक की महिलाओं का पूरा ख्याल रखना उनका कार्य है. हालांकि जितना काम उन से लिया जाता है उसके हिसाब से मानदेय या नहीं मिल पाता है. वहीं प्रभा तिर्की ने कहा कि कोरोना काल में भी उन लोगों ने काफी काम किया. वह दिन रात मरीजों को उचित सुविधा दिलाने में लगी रहती हैं. परंतु उन्हें काफी कम मानदेय मिलता है.


स्वास्थ्य अधिकारी भी मानते हैं सहिया हैं वरदान
जिले के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते है कि गांव की सहिया विभाग के लिए वरदान के समान है. लातेहार के सिविल सर्जन डॉ एसके श्रीवास्तव ने कहा कि सहिया स्वास्थ्य विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इनके सहारे ही गांव-गांव तक आसानी से स्वास्थ्य सुविधा पहुंच पाती है. उन्होंने कहा कि सहिया को मानदेय के साथ कुछ प्रोत्साहन राशि भी देने का प्रावधान है.

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