लातेहारः दीपावली त्योहार में मिट्टी के दीप का महत्व काफी है. इससे दीपावली त्योहार आने से महीनों पहले से कुम्हार मिट्टी के दीये बनाने में जुट जाते हैं. कोरोना काल के बाद यह पहला दीपावली है, जिसमें लोग काफी उत्साहित हैं. इससे कुम्हारों को अच्छी आमदनी की उम्मीद है. हालांकि, जलावन की कमी और लगातार हो रही बारिश के कारण उनकी चिंता बढ़ गई है. लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के तहत दिन रात दीप बनाने मे जुटे हैं.
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दरअसल, दीपावली की रात में मिट्टी के बने दीये जलाने की परंपरा काफी पहले से चली आ रही है. दीपावली की रात शहर से लेकर गांव तक लोग अपने अपने घरों को दीप से जगमग करते हैं. पहले तो मिट्टी से बने दीया का प्रयोग काफी अधिक होता था. लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता हावी होती गई, वैसे-वैसे दीपावली का स्वरूप भी बदलता गया. अब धीरे धीरे मिट्टी से बने दीयों का उपयोग सिर्फ परंपरा निभाने तक होता है. इससे कुम्हारों के व्यवसाय पर भी ग्रहण लगने लगा है.
कोरोना संक्रमण के प्रकोप के कारण पिछला दो साल कुम्हारों के लिए फायदेमंद नहीं रहा. इस दौरान काफी कम दीया और मिट्टी के बर्तनों की बिक्री हुई, जिससे कुम्हारों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी. लेकिन इस साल देशभर में कोरोना वायरस का प्रकोप भी काफी हद तक समाप्त हुआ है. इससे कुम्हारों को उम्मीद जगी है कि इस साल शायद अच्छी आमदनी हो जाए. अच्छी बिक्री के संभावना के बीच मिट्टी और जलावन की किल्लत और लगातार हो रही बारिश से थोड़ी परेशानी है. दीया और बर्तन का कारोबार करने वाले प्रमोद प्रजापति कहते हैं कि इस साल उम्मीद है कि अच्छी आमदनी होगी. लेकिन जलावन के दाम बढ़ गए हैं और मिट्टी काफी मुश्किल से मिल रही है. इससे थोड़ी परेशानी है.
कुम्हारों ने बताया कि सरकार एक तरफ स्वरोजगार को बढ़ावा देने की बात कहती है. लेकिन मिट्टी के कारोबार करने वालों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है. आज तक सरकार द्वारा एक पैसे की मदद नहीं मिली है. गिरजा प्रजापति और सुरेश प्रजापति ने बताया कि महंगाई की वजह से कारोबार काफी प्रभावित हुआ है. जलावन, मिट्टी और अन्य सामान महंगा हो गया है. लागत बढ़ गई है. इसके बावजूद आज तक सरकारी स्तर पर कोई मदद नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि दीप की कीमत कम से कम 150 रुपये प्रति सैकड़ा होगा, तभी हम लोगों को कुछ फायदा मिल पाएगा.