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Buddha Pahad News: CRPF जवान बने बूढ़ा पहाड़ के 'दशरथ मांझी', श्रमदान से गांव में बना रहे सड़क

किसी भी कठिन कार्य की तुलना पहाड़ तोड़ने से किया जाता है लेकिन दिल में जुनून और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. चाहे वो पत्थर का सीना चीरकर पानी के लिए रास्ता बनाना हो या पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाना हो. लातेहार के बूढ़ा पहाड़ में सीआरपीएफ जवानों का श्रमदान इन्हीं बातों को जीवंत कर रहा है. यहां के गांव वालों के लिए सीआरपीएफ जवान बूढ़ा पहाड़ के 'दशरथ मांझी' साबित हो रहे हैं.

CRPF jawans built road by Shramdaan at buddha pahad in Latehar
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Published : Mar 28, 2023, 2:16 PM IST

Updated : Mar 28, 2023, 2:22 PM IST

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लातेहारः बिहार के गया जिला के दशरथ मांझी, इन्हें कौन नहीं जानता. माउंटेन मैन के नाम से जाने और पहचाने जाने वाले दशरथ मांझी ने सिर्फ एक हथौड़ी और छेनी से अकेले ही पहाड़ काटकर उसमें सड़क बना दी थी. 360 फीट लंबी, 30 फीट चौड़ी और 25 फीट ऊंचे पहाड़ को 22 साल के लगातार हथौड़ी मार-मारकर उसमें से सड़क निकाल दी थी. लातेहार में कुछ इसी तर्ज पर सीआरपीएफ के जवान श्रमदान से पहाड़ काटकर गांव वालों के लिए सड़क बना रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- Changes in Buddha Pahad: बूढ़ापहाड़ के कई इलाकों में पहुंची बिजली, सीएम हेमंत के दौरे के बाद बदलने लगे हालात

लातेहार में बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सीआरपीएफ के जवान 'दशरथ मांझी' साबित हो रहे हैं. श्रमदान कर सीआरपीएफ जवान बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण इलाकों तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण कर रहे हैं. उनकी इस मेहनत से ग्रामीण काफी उत्साहित हैं और वो भी इसमें हाथ बंटा रहे हैं. क्योंकि नक्सल प्रभावित बूढ़ा पहाड़ काफी दुर्गम इलाका है और ये प्रदेश का तीन जिला लातेहार, गढ़वा और पलामू के साथ साथ पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की सीमा से लगता है. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क नहीं है.

बूढ़ा पहाड़ का क्षेत्र हाल के दिनों तक पूरी तरह से नक्सलियों के चंगुल में था. ऐसे में यहां सरकारी स्तर पर विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाना असंभव सा था. यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन था. नक्सली अपने सेफ जोन में सड़क निर्माण की अनुमति कभी नहीं दे सकते थे. ऐसे में इस इलाके में रहने वाले ग्रामीण आजादी के 75 वर्ष बाद भी पगडंडियों पर चलकर अपना जीवन बिता रहे थे. लेकिन कहा जाता है कि समय परिवर्तनशील होता है. यह बात इस इलाके के लिए भी चरितार्थ हो गई. पिछले कुछ दिनों से बूढ़ा पहाड़ के इलाके में पुलिस और सुरक्षाबलों के द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के कारण नक्सलियों को यह इलाका छोड़कर भागना पड़ा.

श्रमदान से बनने लगी सड़कः बूढ़ा पहाड़ के इलाके में बस से गांव तक पहुंच सड़क बनाने के लिए सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर श्रमदान किया. इस दौरान जरूरी संसाधनों को भी सीआरपीएफ ने उपलब्ध कराया और पहाड़ों का सीना चीरकर ग्रामीणों के लिए कच्ची सड़क का निर्माण आरंभ कराया गया. जेसीबी और ट्रैक्टर के माध्यम से पत्थरों को हटाया गया और मोरम बिछाकर चलने लायक सड़क बना दी गई है.

ग्रामीणों ने कहा- अब मिली है आजादीः श्रमदान से गांव तक सड़क निर्माण होने से ग्रामीण काफी उत्साहित दिखे. ग्रामीणों ने कहा कि उन लोगों ने तो सपनों में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव तक कभी सड़क भी बन पाएगी. ग्रामीणों ने कहा कि पहले इस इलाके में समस्याओं का मकड़जाल था, कहने को तो हम लोग आजाद थे, पर असली आजादी हमें अब मिली है. सड़क बन जाने से अब कम से कम गांव में कोई बीमार पड़ेगा तो उसे अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा. पहले तो लोग इलाज के अभाव में ही मर जाते थे. ग्रामीणों के मन में अब उम्मीद जगी है कि जिला के अन्य क्षेत्रों के साथ भी अब उनके इलाके में भी विकास की योजनाएं अंगड़ाइयां लेंगी.

लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ सुविधा बहाल कराना हमारी प्राथमिकता- सीआरपीएफः इस संबंध में पूछने पर सीआरपीएफ 11वीं बटालियन के कमांडेंट वीके त्रिपाठी ने कहा कि हमारा उद्देश्य ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ लोगों के हर सुख दुख में साथ निभाना भी है. जब भी ग्रामीणों को हमारी जरूरत महसूस होती है उस समय सीआरपीएफ के जवान और अधिकारी ग्रामीणों के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं. बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराने में हम पीछे नहीं रहते हैं. जहां भी जरूरत पड़ी वहां श्रमदान से ग्रामीणों के लिए पुलिया या सड़क का निर्माण करने में भी हम लोग हमेशा आगे रहे हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लातेहारः बिहार के गया जिला के दशरथ मांझी, इन्हें कौन नहीं जानता. माउंटेन मैन के नाम से जाने और पहचाने जाने वाले दशरथ मांझी ने सिर्फ एक हथौड़ी और छेनी से अकेले ही पहाड़ काटकर उसमें सड़क बना दी थी. 360 फीट लंबी, 30 फीट चौड़ी और 25 फीट ऊंचे पहाड़ को 22 साल के लगातार हथौड़ी मार-मारकर उसमें से सड़क निकाल दी थी. लातेहार में कुछ इसी तर्ज पर सीआरपीएफ के जवान श्रमदान से पहाड़ काटकर गांव वालों के लिए सड़क बना रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- Changes in Buddha Pahad: बूढ़ापहाड़ के कई इलाकों में पहुंची बिजली, सीएम हेमंत के दौरे के बाद बदलने लगे हालात

लातेहार में बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सीआरपीएफ के जवान 'दशरथ मांझी' साबित हो रहे हैं. श्रमदान कर सीआरपीएफ जवान बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण इलाकों तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण कर रहे हैं. उनकी इस मेहनत से ग्रामीण काफी उत्साहित हैं और वो भी इसमें हाथ बंटा रहे हैं. क्योंकि नक्सल प्रभावित बूढ़ा पहाड़ काफी दुर्गम इलाका है और ये प्रदेश का तीन जिला लातेहार, गढ़वा और पलामू के साथ साथ पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की सीमा से लगता है. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क नहीं है.

बूढ़ा पहाड़ का क्षेत्र हाल के दिनों तक पूरी तरह से नक्सलियों के चंगुल में था. ऐसे में यहां सरकारी स्तर पर विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाना असंभव सा था. यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन था. नक्सली अपने सेफ जोन में सड़क निर्माण की अनुमति कभी नहीं दे सकते थे. ऐसे में इस इलाके में रहने वाले ग्रामीण आजादी के 75 वर्ष बाद भी पगडंडियों पर चलकर अपना जीवन बिता रहे थे. लेकिन कहा जाता है कि समय परिवर्तनशील होता है. यह बात इस इलाके के लिए भी चरितार्थ हो गई. पिछले कुछ दिनों से बूढ़ा पहाड़ के इलाके में पुलिस और सुरक्षाबलों के द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के कारण नक्सलियों को यह इलाका छोड़कर भागना पड़ा.

श्रमदान से बनने लगी सड़कः बूढ़ा पहाड़ के इलाके में बस से गांव तक पहुंच सड़क बनाने के लिए सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर श्रमदान किया. इस दौरान जरूरी संसाधनों को भी सीआरपीएफ ने उपलब्ध कराया और पहाड़ों का सीना चीरकर ग्रामीणों के लिए कच्ची सड़क का निर्माण आरंभ कराया गया. जेसीबी और ट्रैक्टर के माध्यम से पत्थरों को हटाया गया और मोरम बिछाकर चलने लायक सड़क बना दी गई है.

ग्रामीणों ने कहा- अब मिली है आजादीः श्रमदान से गांव तक सड़क निर्माण होने से ग्रामीण काफी उत्साहित दिखे. ग्रामीणों ने कहा कि उन लोगों ने तो सपनों में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव तक कभी सड़क भी बन पाएगी. ग्रामीणों ने कहा कि पहले इस इलाके में समस्याओं का मकड़जाल था, कहने को तो हम लोग आजाद थे, पर असली आजादी हमें अब मिली है. सड़क बन जाने से अब कम से कम गांव में कोई बीमार पड़ेगा तो उसे अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा. पहले तो लोग इलाज के अभाव में ही मर जाते थे. ग्रामीणों के मन में अब उम्मीद जगी है कि जिला के अन्य क्षेत्रों के साथ भी अब उनके इलाके में भी विकास की योजनाएं अंगड़ाइयां लेंगी.

लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ सुविधा बहाल कराना हमारी प्राथमिकता- सीआरपीएफः इस संबंध में पूछने पर सीआरपीएफ 11वीं बटालियन के कमांडेंट वीके त्रिपाठी ने कहा कि हमारा उद्देश्य ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ लोगों के हर सुख दुख में साथ निभाना भी है. जब भी ग्रामीणों को हमारी जरूरत महसूस होती है उस समय सीआरपीएफ के जवान और अधिकारी ग्रामीणों के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं. बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराने में हम पीछे नहीं रहते हैं. जहां भी जरूरत पड़ी वहां श्रमदान से ग्रामीणों के लिए पुलिया या सड़क का निर्माण करने में भी हम लोग हमेशा आगे रहे हैं.

Last Updated : Mar 28, 2023, 2:22 PM IST
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