कोडरमा: भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, हम चांद पर पहुंचे चुके हैं. लेकिन आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं कोडरमा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर गझंडी रेलवे स्टेशन से सटे बूढ़ी टांड़ गांव की, जहां जंगल में बसे गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. इनका जीवन सिर्फ जंगलों तक ही सिमट कर रह गया है.
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दरअसल, बूढ़ी टांड़ जंगलों में बसा एक गांव है, जहां करीब 200 लोग रहते हैं, जिनकी जिंदगी पिछले कई सालों से जंगलों तक ही सीमित है. गांव के लोग पगडंडियों और संकरी सड़कों से होकर आवाजाही करते हैं. क्योंकि यहां एक भी सड़क नहीं है. वहीं गांव के लोगों को बिजली भी नसीब नहीं हो पाई है. लोग अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. पीने के पानी का भी यही हाल है. गांव के लोग चुआ से पानी भरकर अपनी प्यास बुझाते हैं.
बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर लोग: गांव के लोग आज भी कई बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं. गांव के नौनिहाल किसी तरह पगडंडियों और दुर्गम जंगली रास्तों से होकर कई किलोमीटर दूर स्कूल जा पाते हैं. हालांकि सरकार जंगलों में रहने वाली आदिम जनजातियों के लिए कई योजनाएं चला रही हैं. साथ ही जंगलों में रहने वाली आदिम जनजातियों के उत्थान के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं, बावजूद इसके कोडरमा के गझंडी स्थित बूढ़ी टांड़ की आदिम जनजातियों को अब तक कोई सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
इन जंगलों में रहने वाली आदिम जनजातियों का जीवन जंगलों तक ही सीमित होकर रह गया है. जरूरत है कि आदिम जनजातियों के उत्थान के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं को वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिम जनजातियों के बीच प्रचारित किया जाये और लोगों को योजनाओं से जोड़ने के लिए जागरूकता जैसे कार्यक्रम चलाये जाये ताकि ऐसे क्षेत्रों में रह रहे लोगों को इसका लाभ मिल सके और उनकी जीवन शैली में भी सुधार हो सके.