खूंटीः अहिरा रे अहिरा, गईया हो गईया हो चरईह हो... बारहो रे महिना गईया मारोली पिटोली रे, हो रे आज तो करबो तोर सोलहो सिंगार रे... मुंडा समाज का यह पारंपरिक गीत सोहराय पर्व में हर आदिवासी बहुल गांव में गूंजायमान रहता है. आदिवासी पौराणिक कथा के आधार पर यह पर्व आदिवासी समाज काफी श्रद्धा और उल्लासपूर्वक मनाते हैं. इसमें सबसे खास बात यह है कि सोहराय में मवेशियों की पूजा (Tribal society worshipped cattle) की जाती है.
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दीपावली की रात पूजा-पाठ करने के बाद गांव के लोग टोलियां बनाकर पूरी रात गांव में ढोल-मांदर बजाते घूम-घूमकर घर-घर में मौजूद गाय-बैलों की सींग पर तेल लगाया जाता है. इसके बाद दीपावली के तीसरे दिन गोहाल के सामने महुए की लकड़ी का खेंढ़ीदार खूंटा गाड़कर गोरया बोंगा की पूजा की जाती है. इस दौरान मुर्गा की बलि चढ़ाई जाती है, साथ ही चावल और उरद की रोटी बिना नमक के घी लगाकर बनाया जाता है. इसे प्रसाद स्वरूप गाय बैलों को खिलाया जाता है. दीपावली के दूसरे दिन सूर्यग्रहण होने के कारण मुंडा सोहराय पर्व नहीं मना सके. लेकिन तीसरे दिन मुंडा समाज के किसानों ने अपने मवेशियों को उबटन और रंगों से सजाकर माला पहनाई.
खूंटी में सोहराय पर्व (Sohrai festival in Khunti) को लेकर बुधवार शाम को सामूहिक रूप से लोगों ने अपने मवेशियों को गांव की परिक्रमा करायी. कहीं-कहीं गाय डाढ़ भी लगाया गया. इस दौरान लोग एक दूसरे को उबटन भी लगाते नजर आए. सोहराय को लेकर घरों में प्रसाद के रूप में रासी (हड़िया) तैयार किया गया. अनगढ़ा पंचायत के चांडीडीह गांव में पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष पद्मभूषण कड़िया मुंडा सपरिवार सोहराय पर्व के मौके पर मवेशियों को लेकर निकले. उन्होंने अनगड़ा में आयोजित सामूहिक नृत्य का आनंद उठाया और कुछ देर के लिए नृत्य में शामिल भी हुए.
झारखंड में सोहराय पर्व (Sohrai in Jharkhand) मनाने का मुख्य उद्देश्य गाय और बैलों को खुश करना है. इन बेजुबान मवेशियों की मेहनत से ही खेत में फसल तैयार होता है. उनके साथ खुशियां बांटने के लिए यह पर्व मनाया जाता है. इसके अलावा हर वर्ष फसल अच्छी हो, इसको लेकर भी सोहराय मनाया जाता है. सोहराय पर्व को मनाने के लिए एक दूसरे के घर एक सप्ताह से पूर्व से ही रिश्तेदार जुटने लगते हैं. इस दौरान पारंपरिक बैल नृत्य इस पर्व का आकर्षण का केंद्र रहता है. जिसमें बैलों के साथ खुशियां बांटने का अवसर मिलता है. लोग एक दूसरे से मिलते है और मांदर की थाप पर बैलों और गायों के साथ नृत्य करते हैं.