जामताड़ा: जिस उम्र में महिलाओं को तनाव मुक्त जीवन मिलना चाहिए, उस उम्र में कुछ उम्रदराज महिलाएं जामताड़ा स्टेशन रोड के पास सड़क किनारे पत्तल-दोना बेचने को मजबूर हैं.
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महज दिखावा?
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यूं तो महिलाओं के विकास, उनके अधिकार को लेकर लंबी चौड़ी बातें की जाती रही हैं, लेकिन क्या वाकई समाज उन बातों को तरजीह देता है. आज भी महिलाओं को समाज में जितना अधिकार मिलना चाहिए, नहीं मिल रहा. उन्हें अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है. सिर्फ इतना नहीं, उन्हें शोषण, अत्याचार और प्रताड़ना से भी गुजरना पड़ता है. महिलाओं की स्थिति कुछ इस कदर है कि वो अपने घर समाज से अलग हटकर मेहनत मजदूरी करने के लिए सड़क पर बैठने को मजबूर हैं.
पत्तल-दोना बेचकर कर रहीं गुजर बसर
संथाल की अधिकांश आदिवासी महिलाएं पत्तल- दोना बेचकर अपना गुजर बसर कर रही हैं. जामताड़ा स्टेशन रोड पर सड़क के किनारे ऐसी कई बेबस महिलाएं आपको मिल जाएंगी. इनका कहना है कि कोई है ही नहीं, जो उनका सहारा बने.
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जामताड़ा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की सचिव अलका मांझी का कहना है कि महिला दिवस तो हर साल मनाते हैं, लेकिन महिलाओं को जो अधिकार मिलने चाहिए, वो नहीं मिल रहे. महिलाएं सुरक्षित भी नहीं हैं. ये एक चिंता का विषय है. महिलाओं को 33% आरक्षण मिलना चाहिए. जरूरत है ऐसी बेबस महिलाओं को सुरक्षा प्रदान किए जाने की और एक सम्मानजनक अधिकार देने की.