जामताड़ा: आदिवासियों का पर्व शगुन सोहराय को लेकर संथाल परगना सहित जामताड़ा में काफी उत्साह है. चारों तरफ हर्ष उल्लास का वातावरण है. गांव में आदिवासी समाज मांदर की थाप गूंज रही है. लोक गीत और पारंपरिक वाद्य यंत्र की धुन पर महिलाएं और पुरूष झूमते नाचते नजर आ रहे हैं.
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संथाल समाज का ये पर्व कई नामों से प्रचलित है, संथाल समाज इसे हाथी लिकन (हाथी के समान) कहते हैं. शगुन सोहराय प्रत्येक वर्ष जनवरी माह के दूसरे सप्ताल यानी प्रत्येक पौष माह में धान की फसल कटने के बाद मनाया जाता है. यह पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है. जिसमें आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करते हैं और उन्हें नयी फसल का प्रसाद चढ़ाते हैं. इसी खुशी में वो सामूहिक रूप से सम्मिलित होकर पूरा गांव नाचता गाता है. आदिवासी समाज के लोग बताते हैं कि 5 दिन तक अलग-अलग नियम विधान के साथ इस पर्व को मनाया जाता है, जिसमें अलग अलग दिन पूजा करने के अलग अलग विधान हैं.
जानिए, पांच दिन के क्या हैं विधानः पांच दिवसीय पर्व शगुन सोहराय में पूजा के प्रत्येक दिन के अलग अलग नाम हैं और उनके अलग अलग विधान हैं. शगुन सोहराय के पहले दिन को उम कहा जाता है. पहले दिन आदिवासी समाज इस पर्व के शुरुआत में स्नान करते हैं. इसके बाद कृषि से संबंधित सभी औजारों को साफ करते हैं. इसके अलावा घरों को भी साफ सुथरा कर गोबर से लिपाई करते हैं. साथ ही घर में गेहल पूजा करते हैं. इस पर्व के दूसरे दिन को बोगान कहा जाता है, इस दिन बलि देने की प्रथा है. इसमें आदिवासी समाज सात मुर्गे की बलि देते हैं. पर्व के तीसरे दिन को खुटाउ कहा जाता है. इस दिन बैल को बांधकर उसको सजाकर पूरे गांव में घूमाया जाता हैं. इसके अलावा पर्व के चौथे दिन को जाली कहा जाता है. इस दिन आदिवासी समाज एक दूसरे के प्रत्येक घर-घर जाकर नाचते सम्मिलित होकर नाचते गाते हैं. शगुन सोहराय के पांचवे दिन को हाको कटकोम कहा जाता है. इस दिन गांव के तालाब से मछली पकड़ने का रिवाज है. जिसमें घर के सदस्यों द्वारा मछली पकड़ कर लाया जाता है. इसके बाद पर्व के अंतिम शिकार खेलने की परंपरा है. मकर संक्रांति के दिन शिकार के साथ यह पर्व समाप्त हो जाता है.
सोहराय पर्व भाई बहन के प्रेम का प्रतीकः आदिवासी समाज के साहित्यकार व राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुनील बास्की बताते हैं कि शगुन सोहराय पर्व ना सिर्फ प्रकृति से जुड़ा है बल्कि ये आदिवासी परंपरा में भाई बहन के अटूट प्रेम को भी दर्शाता है. ये पर्व भाई बहन के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है. इसे भाई बहन का भी पर्व माना जाता है. शगुन सोहराय में भाई अपने बहन अपने यहां आने का न्योता देता है. बहन अपने भाई के दिए आमंत्रण को स्वीकार करती है और उसके यहां आती है, बहन के आने के बाद काफी धूमधाम से उसका स्वागत किया जाता है. पांच दिन तक चल रहे इस पर्व का समापन मकर संक्रांति के दिन समाप्त होता है.