ETV Bharat / state

तिब्बती शरणार्थियों को अभी भी याद आता है चीन का आतंक, अब भारत बन गया है उनका मुल्क

तिब्बती शरणार्थियों का शिविर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग शहर में स्थित है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें यहां आश्रय दिया था. आज तिब्बती शरणार्थी खासकर ठंड के समय में झारखंड-बिहार के कई जिलों में देखने को मिलते हैं, जहां वे ऊनी कपड़ों का स्टॉल लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं.

तिब्बती शरणार्थियों का शिविर
Tibetan refugees
author img

By

Published : Dec 27, 2019, 7:39 PM IST

Updated : Dec 27, 2019, 7:47 PM IST

हजारीबाग: भारत में तिब्बतियों ने 1959 के बाद भारत को अपना घर और अपना देश बना लिया. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें देश में जगह देने का कार्य किया और आज भी ये लोग पंडित जवाहरलाल नेहरु को अपने दिलों-दिमाग में समा के रखे हुए हैं.

देखें पूरी खबर

ऊनी कपड़ों का स्टॉल लगाकर करते हैं जीवन यापन
तिब्बती शरणार्थी शिविर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग शहर में स्थित है. इस शिविर का स्थापना 1959 में हुआ था. इसके 1 साल पहले 1958 में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें यहां आश्रय दिया था. आज तिब्बती शरणार्थी खासकर ठंड के समय में झारखंड-बिहार के कई जिलों में देखने को मिलते हैं, जहां वे ऊनी कपड़ों का स्टॉल लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं. आज के समय में लगभग 700 तिब्बती परिवार का आश्रय स्थली भारत बना है. यह सिर्फ ऊनी समान ही नहीं, बल्कि लकड़ी की कलाकृति, धातु के बने खिलौने और कारपेट भी बेचा करते हैं.

ये भी पढ़ें-शहीद अल्बर्ट एक्का की जयंती पर हेमंत सोरेन ने दी श्रद्धांजलि, कहा- झारखंड के वीरों को मिलेगा उचित सम्मान

तिब्बत पर आक्रमण
यह तिब्बती परिवार अब भारत को ही अपना देश मानते हैं. उनका कहना है कि जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था. उस वक्त हमारी जन्म नहीं हुई थी, लेकिन वे अपने पूर्वजों से कहानी सुनते आए हैं कि उस समय भारत ने उन्हें जगह दिया था और बड़े दिल होने का सबूत भी दिया था. तब से वे सभी भारत में ही रहते हैं और भारत के लिए जीते और मरते हैं. उनका कहना है कि उनके माता-पिता तिब्बत से आए थे और उनका जन्म हजारीबाग के मिशन अस्पताल में हुआ है. इस हिसाब से वे हजारीबाग के हुए.

कम मुनाफे पर बेचते हैं गर्म कपड़े
तिब्बती शरणार्थियों का कहना है कि हजारीबाग के लोग काफी अच्छे हैं. पहले जब वे यहां आते थे तो काफी समस्या होती थी, लेकिन धीरे-धीरे उनका आपसी भाईचारा बढ़ता गया और वे यहां के लोगों के दिलों में रहने लगे. ठंड के दिनों में वे स्वेटर का बाजार लगाते हैं और आते-जाते लोग यहां से स्वेटर खरीदते हैं. उनका कहना है कि वे कपड़ों को कम मुनाफे पर ही बेचते हैं, जिससे उन पर लोगों का काफी अधिक सहयोग भी मिलता है, लेकिन आज भी उनके दिलों में दुख जरूर है जो चाइना ने उन्हें दिया है.

ये भी पढ़ें-पारसनाथ पहाड़ पर ठंड लगने से दो तीर्थ यात्रियों की मौत, पर्वत वंदना के दौरान घटी घटना

पेट पालने के लिए मिल जाता है कुछ पैसा
इधर, हजारीबाग के युवा जो यहां स्वेटर खरीदने के लिए आते हैं. वे कहते हैं कि इन लोगों का व्यवहार काफी अच्छा है और कम दामों में ही कपड़ा मिल जाता है. यहां से स्वेटर लेने से एक फायदा है. पहला की सस्ते दर पर गरम कपड़ा मिल जाता है और दूसरा इन शरणार्थियों को अपना पेट पालने के लिए कुछ पैसा भी मिल जाता है. यह आपसी प्रेम का प्रतीक भी है कि हम तिब्बत के शरणार्थियों को भारत में जगह दिए हैं. अब इनका दिल भारत के लिए धड़कता है. ऐसे में हम सभी का यह दायित्व भी है कि हम इनके दिलों को ठेस ना पहुंचाएं.

हजारीबाग: भारत में तिब्बतियों ने 1959 के बाद भारत को अपना घर और अपना देश बना लिया. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें देश में जगह देने का कार्य किया और आज भी ये लोग पंडित जवाहरलाल नेहरु को अपने दिलों-दिमाग में समा के रखे हुए हैं.

देखें पूरी खबर

ऊनी कपड़ों का स्टॉल लगाकर करते हैं जीवन यापन
तिब्बती शरणार्थी शिविर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग शहर में स्थित है. इस शिविर का स्थापना 1959 में हुआ था. इसके 1 साल पहले 1958 में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें यहां आश्रय दिया था. आज तिब्बती शरणार्थी खासकर ठंड के समय में झारखंड-बिहार के कई जिलों में देखने को मिलते हैं, जहां वे ऊनी कपड़ों का स्टॉल लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं. आज के समय में लगभग 700 तिब्बती परिवार का आश्रय स्थली भारत बना है. यह सिर्फ ऊनी समान ही नहीं, बल्कि लकड़ी की कलाकृति, धातु के बने खिलौने और कारपेट भी बेचा करते हैं.

ये भी पढ़ें-शहीद अल्बर्ट एक्का की जयंती पर हेमंत सोरेन ने दी श्रद्धांजलि, कहा- झारखंड के वीरों को मिलेगा उचित सम्मान

तिब्बत पर आक्रमण
यह तिब्बती परिवार अब भारत को ही अपना देश मानते हैं. उनका कहना है कि जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था. उस वक्त हमारी जन्म नहीं हुई थी, लेकिन वे अपने पूर्वजों से कहानी सुनते आए हैं कि उस समय भारत ने उन्हें जगह दिया था और बड़े दिल होने का सबूत भी दिया था. तब से वे सभी भारत में ही रहते हैं और भारत के लिए जीते और मरते हैं. उनका कहना है कि उनके माता-पिता तिब्बत से आए थे और उनका जन्म हजारीबाग के मिशन अस्पताल में हुआ है. इस हिसाब से वे हजारीबाग के हुए.

कम मुनाफे पर बेचते हैं गर्म कपड़े
तिब्बती शरणार्थियों का कहना है कि हजारीबाग के लोग काफी अच्छे हैं. पहले जब वे यहां आते थे तो काफी समस्या होती थी, लेकिन धीरे-धीरे उनका आपसी भाईचारा बढ़ता गया और वे यहां के लोगों के दिलों में रहने लगे. ठंड के दिनों में वे स्वेटर का बाजार लगाते हैं और आते-जाते लोग यहां से स्वेटर खरीदते हैं. उनका कहना है कि वे कपड़ों को कम मुनाफे पर ही बेचते हैं, जिससे उन पर लोगों का काफी अधिक सहयोग भी मिलता है, लेकिन आज भी उनके दिलों में दुख जरूर है जो चाइना ने उन्हें दिया है.

ये भी पढ़ें-पारसनाथ पहाड़ पर ठंड लगने से दो तीर्थ यात्रियों की मौत, पर्वत वंदना के दौरान घटी घटना

पेट पालने के लिए मिल जाता है कुछ पैसा
इधर, हजारीबाग के युवा जो यहां स्वेटर खरीदने के लिए आते हैं. वे कहते हैं कि इन लोगों का व्यवहार काफी अच्छा है और कम दामों में ही कपड़ा मिल जाता है. यहां से स्वेटर लेने से एक फायदा है. पहला की सस्ते दर पर गरम कपड़ा मिल जाता है और दूसरा इन शरणार्थियों को अपना पेट पालने के लिए कुछ पैसा भी मिल जाता है. यह आपसी प्रेम का प्रतीक भी है कि हम तिब्बत के शरणार्थियों को भारत में जगह दिए हैं. अब इनका दिल भारत के लिए धड़कता है. ऐसे में हम सभी का यह दायित्व भी है कि हम इनके दिलों को ठेस ना पहुंचाएं.

Intro:हर कोई अपने मुल्क से बेंहतहा मोहब्बत करता है। अगर कोई देश अपना छोड़ने को विवश होता है तो कहीं ना कहीं बड़ी मजबूरी रहती है। भारत में तिब्बतियों ने 1959 के बाद भारत को अपना घर और अपना देश बना लिया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें देश में जगह देने का कार्य किया और आज भी यह लोग पंडित जवाहरलाल नेहरु को अपने दिलों में समा के रखे हैं।

हजारीबाग से ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट


Body:तिब्बती शरणार्थी शिविर पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग शहर में स्थित है। तिब्बती शरणार्थी शिविर का स्थापना 1959 में की गई थी। इसके 1 वर्ष पहले 1958 में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें यहां आश्रय दिया था ।आज तिब्बती शरणार्थी खासकर ठंड के समय झारखंड -बिहार के कई जिलों में देखने को मिलते हैं ।जहां वे उन्हीं कपड़े का स्टॉल लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं ।आज के समय में लगभग 700 तिब्बती परिवार का आश्रय स्थली भारत बना है। यह सिर्फ ऊनी समान ही नहीं बल्कि लकड़ी की कलाकृति ,धातु के बने खिलौने, कारपेट भी बेचा करते हैं।

यह तिब्बती परिवार अब भारत को ही अपना देश मानते हैं ।उनका कहना है कि जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था। उस वक्त हमारी जन्म नहीं हुई थी लेकिन हम अपने पूर्वजों से कहानी सुनते आए हैं। तब भारत ने हमें जगह दिया और बड़े दिल होने का सबूत भी दिया। तब से हम सभी भारत में रहते हैं और भारत के लिए जीते हैं। उनका कहना है कि हमारे मां पिता तिब्बत से आए थे । हमारा जन्म हजारीबाग के मिशन अस्पताल में हुआ है। अगर हमारा जन्म हजारीबाग में हुआ तो हम हजारीबाग के हुए हैं। यहां के लोग काफी अच्छे भी हैं ।पहले जब हम यहां आते थे तो काफी समस्या होती थी। लेकिन धीरे-धीरे हमारा आपसी भाईचारा बढ़ता गया और हम यहां के लोगों के दिलों में रहने लगे। वठंड के दिनों में हम स्वेटर का बाजार लगाते हैं। लोग आते हैं और यहां से खरीदते हैं। हम यह कोशिश भी करते हैं कि हम अधिक दाम पर ना बेचे। इतना ही पैसा हमें मिले कि हमारा जीवन चल सके। इस दौरान इन लोगों का भी काफी अधिक सहयोग हमें मिलता है। लेकिन आज भी उनके दिलों में वो टिस जरूर है जो चाइना ने उन्हें दिया है।

तो दूसरी और हजारीबाग के युवा जो यहां स्वेटर खरीदने के लिए आते हैं वे कहते हैं कि यह लोगों का व्यवहार भी काफी अच्छा है। हमें कम दामों में गर्म कपड़ा मिल जाता है। यहां से स्वेटर लेने से वह फायदा है पहला तो हमें गरम कपड़ा मिल गया और दूसरा इन शरणार्थियों को कुछ पैसा कमाने का मौका मिल गया।

byte..... जोनफा तिब्बती शरणार्थी
byte..... राजेश कुमार स्थानीय


Conclusion:यह आपसी प्रेम का प्रतीक भी है कि हम तिब्बत के शरणार्थियों को भारत में जगह दिए हैं। अब इनका दिल भारत के लिए धड़कता है। ऐसे में हम सभी का यह दायित्व भी है कि हम इनके दिलों को ठेस ना पहुंचाएं।

गौरव प्रकाश ईटीवी भारत हजारीबाग....
Last Updated : Dec 27, 2019, 7:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.