हजारीबाग: कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है. जिले में एक ऐसे ही प्रतिभावान मूर्तिकार पास्कल प्रभु दास हैं जो पिछले 40 वर्षों से जुलू पार्क स्थित चर्च के सामने लकड़ी की मूर्ति बना रहे हैं. उनकी मूर्ति की मांग विदेशों में भी है. लेकिन, सरकारी उपेक्षा के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा. इसके बावजूद भी वे हिम्मत नहीं हारे.
पास्कल अभी ढोरी माता की मूर्ति बना रहे हैं. यह मूर्ति इसलिए खास है कि हजारीबाग के चर्च के फादर जोजो बिशप इसे रोम के पॉप फ्रांसिस को उपहार के रूप में देंगे. पास्कल इस मूर्ति को बेहद ही खूबसूरत ढंग से तैयार कर रहे हैं. उनका कहना है कि आज का दिन उनके लिए बेहद खास है. क्योंकि, उनके द्वारा बनाई हुई मूर्ति विदेश जा रही है. वह भी पॉप के हाथों में, इससे उन्हें वह मंच हासिल हुआ है जिसकी तलाश उन्हें 40 वर्षों से थी.
सरकार पर उपेक्षा का आरोप
पास्कल इस बात को लेकर खुश भी हैं कि उनकी मूर्ति पॉप के हाथों में जाने वाली है, तो दूसरी ओर दुखी भी हैं कि सरकार ने आज तक उनकी मदद नहीं की. उनका कहना है कि सरकार अगर सहयोग करती तो आज उनकी यह स्थिति नहीं होती. वे सरकारी जमीन पर बने एक कमरे में वर्षों से रह रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. उनके पिता की मौत बचपन में ही हो गई थी और मां देख नहीं सकती थी. ऐसे में उनका बचपन काफी कष्टों से बीता.
बाद में हजारीबाग चर्च के फादर ने उनकी मदद की और वे पढ़ाई करने पूना आर्ट कॉलेज चले गए. वहीं उन्होंने मूर्ति बनाना सीखा. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हजारीबाग में ही मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया. उनका कहना है कि यदि सरकार मदद करती तो वे दूसरे कलाकारों को भी सिखाते ताकि यह कलाकारी आगे भी जीवित रहती.
पास्कल के काम में उनकी पत्नी भी साथ देती हैं और कहती हैं कि उन्हें बेहद गरीबी में जीवन-यापन करना पड़ रहा है. क्योंकि हजारीबाग में मूर्ति खरीदने वाले बेहद कम हैं. ऐसे में कभी-कभार कोई विदेशी मेहमान हजारीबाग पहुंचता है तो वह मूर्ति बनाने का ऑर्डर मिलता है. हमें एक मूर्ति बनाने में महीनों लग जाते हैं. इसलिए सरकार को भी हम जैसे कलाकारों की कद्र करनी चाहिए और उन्हें उचित सम्मान भी देना चाहिए.
कौन है ढोरी माता?
12 जून 1956 को ढोरी खदान से कोयला निकालने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी. जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई.
मान्यता है कि ढोरी माता कोयला खदानों में काम करने वालों की रक्षा करती है. यहां ईसाइयों के अलावा दूसरे संप्रदाय के लोग भी मत्था टेकते हैं.
1957 के अक्टूबर महीने में अल्बर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई थी. जिसके बाद 1964 के मई महीने में मूर्ति को गिरजाघर से बाहर रख कर तीर्थालय के रूप में स्थापित किया गया था. बोकारो के बेरमो प्रखंड में यह तीर्थालय है.