हजारीबागः जिले के बरही प्रखंड के रानीचुआ गांव की बहू और मुखिया ने अपनी सोच और अथक प्रयास से गांव की तस्वीर बदल दी है. जिस गांव में पहले नक्सलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थी. अब लहलहाते खेत, बच्चों के पढ़ाई से खुशहाली की नई इबारत लिख रहा है. ग्रामीणों ने खुद को स्वरोजगार से जोड़कर तरक्की के रास्ते पर कदम बढ़ाया है. इस बदलाव के पीछे हैं दस साल से गांव की मुखिया रीता मुर्मू .
गांव में न सड़क थी और न बिजली
रीता 1991 में बहू के रूप में रानीचुआ आईं थीं, वो जब गांव पहुंचीं तो यहां सुविधा के नाम पर घर की छत ही थी. गांव विकास की किरणों से भी कोसों दूर था. गांव के लोग बेरोजगार और नशे में धुत रहते थे. महिलाएं घर में दुबकी रहती थीं. बच्चों का स्कूल से वास्ता नहीं था. गांव में ना तो पक्की सड़क थी और ना ही बिजली. इस हालत को देखकर रीता मुर्मू ने ठान लिया कि मुझे अपने गांव की दशा और दिशा बदलनी है. ऐसे में उन्होंने सबसे पहले शिक्षा की अलख जगाने की ठानी और बच्चों को चबूतरों पर बैठा कर पढ़ाना शुरू किया. उन्हें देश दुनिया के बारे में बताया. फिर बच्चों के माध्यम से घरों में पहुंचीं और महिलाओं को जागरूक किया. अब यहां के बच्चे कहते हैं कि हमें बड़ा होकर इंजीनियर बनना है.
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महिला सहायता समूह बनाया
रीता मुर्मू की जब शादी हुई तो वह मैट्रिक पास थीं. बाद में उन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में इंटर की परीक्षा पास की. शिक्षा का महत्व महिलाओं को बताया. बाद में महिला सहायता समूह का गठन किया . शुरुआत में समूह के लिए महिलाएं हर सप्ताह हर सप्ताह ₹10 जमा करती थीं और उससे स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया.
उन्होंने पुरुषों को खेती की बारीकी समझाई. श्री विधि के बारे में जानकारी इकट्ठा की और युवाओं को आधुनिक तरीके से खेती के लिए प्रेरित किया. अब युवा रोजगार के लिए शहर का मुंह नहीं देखते.
गांव के लिए छोड़ी नौकरी
रीता मुर्मू की इस दौरान नर्स और फिर 2004 झारखंड पुलिस में भी बहाली हो गई. लेकिन जल्द ही गांव के लिए कुछ करने की सोच को लेकर उन्होंने नौकरी भी छोड़ दी, जिसको पति गाजो टुडू के साथ ग्रामीणों ने भी खूब सराहा. पिछले 10 सालों से वो पंचायत की मुखिया हैं. रीता का कहना है कि अगर मैं नौकरी करती तो सिर्फ और सिर्फ अपना घर संभाल पाती.हमने तो सोचा था कि गांव का विकास किया जाए इसलिए नौकरी भी छोड़ डाली.
गांव से शराब उन्मूलन
जिले के रानीचुआ पंचायत की दस साल से मुखिया रीता मुर्मू महिलाओं को हर रोज एक गीत सुनाती हैं. हम होंगे कामयाब एक दिन यह मूल मंत्र अब गांव की महिलाओं की भी ताकत बन गया है. उनके प्रयासों से गांव से शराब की विदाई भी हो गई है. गांव में न कोई शराब बनाता है और न ही पीता है. उनके कार्यों के लिए उन्हें मेडल और शील्ड खूब मिले हैं. वह गांव को इस ऊंचाई पर ले जाना चाहती हैं जिसकी पूरे देश में चर्चा हो.