हजारीबागः झारखंड की सोहराय कला देश की प्राचीन लोक कला में से एक है. 5000 साल वर्ष पुरानी लोक कला गांव से निकलकर विदेशों और कई आर्ट गैलरी में भी अपनी पहचान बना चुकी है. अब हजारीबाग की लोक कला अब बड़े-बड़े होटल, सरकारी आवास, एयरपोर्ट में भी दिख रही है. हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा (Hazaribag MP Jayant Sinha) अपने संसदीय क्षेत्र हजारीबाग के सभी प्रवेश द्वारों पर बड़े बड़े सोहराय फाटक बनवाने की कवायद में जुट गए हैं. जिससे जब भी कोई व्यक्ति हजारीबाग आए तो सबसे पहले उसकी नजर सोहराय पेंटिंग पर पड़े.
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झारखंड में सोहराय कला को नया आयाम देने की कोशिश हो रही है. हजारीबाग जिला के प्रवेश द्वारों में सोहराय फाटक बनाने की तैयारी चल रही है. साथ ही सोहराय पेंटिंग को पकड़ों पर भी उकेरने की तैयारी की जा रही है. 5000 साल पुरानी सोहराय हजारीबाग की अपनी लोक कला है. यह लोक कला सिर्फ हजारीबाग तक ही सीमित नहीं रही बल्कि विदेशों के कई आर्ट गैलरी ओं में भी अपनी सुंदरता बिखेर चुकी है. अब हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा इस प्रयास में हैं कि हजारीबाग जिला के प्रवेश द्वार में ही सोहराय फाटक बनवाया जाए ताकि जो भी व्यक्ति हजारीबाग आए इस रास्ते से गुजरे तो उसकी नजर सबसे पहले सोहराय कला पर पड़े. यही नहीं हजारीबाग में इन दिनों एक सेल्फी प्वाइंट लोगों को आकर्षित भी कर रहा है. जहां आई लव हजारीबाग लिखा है उसके पीछे भी बड़े बोर्ड में सोहराय पेंटिंग बनाने की तैयारी चल रही है. सांसद जयंत सिन्हा कहते हैं कि सोहराय कला के बारे में कई लोग जानते हैं. राजधानी रांची में भी कई अधिकारी और गैर सरकारी आवास में भी सोहराय दिखता है. इसलिए हमने सोचा है कि क्यों ना हजारीबाग जिला में प्रवेश द्वारों पर ही सोहराय कला को उकेरा जाए. जिससे इस कला को ख्याति भी मिलेगी और इस कला से जुड़े लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
सांसद जयंत सिन्हा का यह भी कहना है कि सोहराय सिर्फ दीवारों तक ही सीमित ना रहे बल्कि कपड़ों जैसे- कुर्ता, बंडी, जैकेट, साड़ी में भी सोहराय कला की छटा दिखनी चाहिए. इस बाबत स्थानीय कलाकार और व्यवसायियों को ऐसा करने के लिए सोचना चाहिए. जिससे सोहराय पेंटिंग का वैल्यू ऐड होगा और इसका दोतरफा फायदा मिलेगा. एक तो इस कला को लोग समझेंगे तो दूसरी ओर इस कला से जुड़े कलाकारों और व्यवसायियों को भी लाभ मिलेगा.
हजारीबाग की लोक कला सोहराय को जीआई टैग भी मिल चुका है. ऐसे में इसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो रही है. हजारीबाग के कलाकार का बनाई हुई पेंटिंग राजपथ पर भी दिखी, जिसकी प्रशंसा पूरे देश ने की है. सोहराय कला को ऊंचाई तक ले जाने के लिए पद्मश्री बुलु इमाम (Padmashree Bulu Imam) का परिवार निरंतर कोशिश भी कर रहा है. पद्मश्री बुलु इमाम की पुत्रवधू अलका इमाम का कहना है कि यह कला प्रकृति से जुड़ी हुई है. जिसमें प्रकृति के रंग ही उपयोग लाया जाता हैं. गांव की महिलाएं अपने घरों पर किया करती थीं. आज इसकी सुंदरता महानगरों तक दिख रही है.
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पद्मश्री बुलु इमाम ने इस कला को विश्व स्तर तक ले जाकर नयी पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पद्मश्री बुलु इमाम का भी कहना है कि वर्तमान समय में सोहराय मिट्टी के घरों से निकलकर पक्के घरों तक पहुंच रही है. 5000 साल पुरानी कला गांव की थी. मिट्टी की दीवारों पर मिट्टी से ही कलाकृति की जाती थी. लेकिन अब धीरे-धीरे गांव में पक्के मकान बन रहे हैं ऐसे में हम लोग पक्के मकान पर भी नई तकनीक से यह कलाकृति करवा रहे है. कला किसी खास व्यक्ति विशेष की नहीं होती. सम्मिलित प्रयास से कलाकृति को आयाम भी मिलता है. सोहराय कला को पद्मश्री बुलु इमाम ने दुनिया के सामने लाया तो अब इस कला को और भी अधिक लोकप्रिय बनाने की कोशिश हर एक व्यक्ति को करने की जरूरत है.