हजारीबाग: देश एक ओर आजादी का जश्न मना रहा है. उन शहीदों को याद कर रहा है जिन्होंने अपना जीवन देश के लिए न्योछावर कर दिया. सरकार उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान दे रही है, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसी संदर्भ में हजारीबाग जिला प्रशासन ने गुरूवार को स्वतंत्रता सेनानियों को अंग वस्त्र देकर अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झार कर ली.
स्वतंत्रता सेनानी के प्रति गैर जिम्मेदाराना रूख
हजारीबाग के एक स्वतंत्रता सेनानी हैं लक्ष्मीकांत दुबे. यह प्रायः हर स्वतंत्रता दिवस पर जिले में होने वाले मुख्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं. इन्हें प्रशासन सम्मान भी देता है. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहें कि 90 वर्ष की उम्र में भी वे बेबस होकर पैदल घर जाने को मजबूर हुए. सब उन्हें कार्यक्रम में शिरकत करने तो बुला लेते हैं लेकिन उनकी आवाजाही का ख्याल कोई नहीं रखता.
ऐसे में वे पैदल ही घर आने-जाने को मजबूर हो जाते हैं. गुरूवार को भी स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में उन्हें प्रशासन की ओर से सम्मानित किया गया था. लेकिन कार्यक्रम स्थल तक उन्हें लाने ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. ऐसे में सम्मान समारोह समाप्त होते ही वे पैदल घर को निकल पड़े.
एक स्थानीय पत्रकार ने की मदद
उन्हें ऐसे जाते देख एक स्थानीय पत्रकार की उनपर नजर पड़ी. उसने उनसे पूछा कि वह घर कैसे जाएंगे तो उन्होंने अपनी बेबसी बताई कि रिक्शा या फिर ऑटो से वह घर चले जाएंगे. यह सुन स्थानीय पत्रकार ने उन्हें अपने मोटरसाइकिल पर बैठाकर उन्हें उनके घर तक पहुंचाया.
क्या कहा स्थानीय पत्रकार ने
इस पूरे घटनाक्रम में स्थानीय पत्रकार साद्वल कुमार का कहना है कि जब उन्हें लाचार अवस्था में पैदल घर जाते देखा तो उनसे रहा नहीं गया और इसलिए वे उन्हें घर पहुंचाने चल पड़े. उनका यह भी कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान दिल से किया जाना चाहिए.
इस घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल उठता है कि जिनकी बदौलत आज हम खुले आसमान में सांस ले रहे हैं, उन्हें उचित सम्मान क्यों नहीं मिल पा रहा है. वैसे इसे सिर्फ प्रशासन को ही नहीं हर एक आम इंसान को भी अपना दायित्व समझना चाहिए.