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गुमला: जान जोखिम में डालकर जिंदगी गुजार रहे ग्रामीण, कब बढ़ेगा फाइलों से आगे विकास

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Published : Jul 4, 2020, 6:56 AM IST

चैनपुर प्रखंड की मालम पंचायत में पड़ने वाले कतारीकोना, कोल्हुकोना, सनइटांगर, उमदरा, गम्हरिया, झलका, सीपरी, गढ़ाटोली, तिलवरीपाठ, गटीदारा आदि गांव घोर नक्सल प्रभावित इलाके में आते हैं. यहां के ग्रामीण आज भी गांव से प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए पगडंडी का ही सहारा लेते हैं. गांव के लोग पगडंडी के रास्ते सबसे पहले अपनी पंचायत मुख्यालय में आते हैं. इसके बाद यहां से जिला मुख्यालय पहुंच सकते हैं.

Villagers pass through a shabby bridge of malam panchayat in Gumla
जान जोखिम में डालकर जिंदगी गुजार रहे ग्रामीण

गुमला: आजादी के सात दशक बाद भी गुमला के चैनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाके में रहने वाले आदिम जनजाति और आदिवासी परिवार आज भी गांव में विकास की बाट जोह रहे हैं. गांव तक जाने के लिए न तो सड़क है और न ही पुल-पुलिया. ऐसे में बरसात के मौसम में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है, तो वहीं मरीजों को समय पर चिकित्सा सुविधा भी मुहैया नहीं कराई जा सकती.

देखें ये स्पेशल स्टोरी

चैनपुर प्रखंड की मालम पंचायत में पड़ने वाले कतारीकोना, कोल्हुकोना, सनइटांगर, उमदरा, गम्हरिया, झलका, सीपरी, गढ़ाटोली, तिलवरीपाठ, गटीदारा आदि गांव घोर नक्सल प्रभावित इलाके में आते हैं. यहां के ग्रामीण आज भी गांव से प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए पगडंडी का ही सहारा लेते हैं. गांव के लोग पगडंडी के रास्ते सबसे पहले अपनी पंचायत मुख्यालय में आते हैं. इसके बाद यहां से जिला मुख्यालय पहुंच सकते हैं.

ये भी पढ़ें- न सरकार ने सुनी आवाज, न प्रशासन ने गुहार, तो ग्रामीणों ने खुद बना डाला पुल

ग्रामीणों को पंचायत मुख्यालय पहुंचने से पहले कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव तक सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीण पगडंडी के रास्ते ही पंचायत मुख्यालय पहुंचते हैं. छात्रों को नदी-नालों पर पुल-पुलिया नहीं होने से जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता है. कई ऐसी जगह हैं, जहां ग्रामीणों ने लकड़ी के जरिए पुल बनाकर नदी-नालों को पार करने का तरीका निकाला. हालांकि, यह जानलेवा साबित हो सकता है.

पुल में न रेलिंग और न मजबूती

ग्रामीणों की ओर से बनाए गए इस लकड़ी के पुल में न तो रेलिंग है और न ही ज्यादा मजबूती. ऐसे में इस पुल को पार करने से पहले लोगों को अपनी जान हथेली पर रखनी पड़ती है. आदिम जनजाति बाहुल्य कोल्हुकोना गांव के छोटे-छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र के जरिए पढ़ाया जाए, इसको लेकर गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी बनाया गया. मगर वो भी पिछले कई साल से अधूरा है. हालात यह है कि भवन अब जर्जर हो चुका है. इसके कई भाग टूटकर गिर रहे हैं.

ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंची विकास की किरण

ऐसे में गांव के एक कच्चे मकान में आंगनबाड़ी सेविका बच्चों को पढ़ाती हैं. मगर वो भी हफ्ते में एक-दो दिन ही बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव पहुंचती हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अगर गांव का विकास करती है, तो उन्हें काफी खुशी होगी. लंबे इंतजार के बाद भी आजतक ग्रामीण इलाकों में विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है.

कभी भी हो सकता है हादसा

ग्रामीण बताते हैं कि गांव जाने के लिए जो सड़कें हैं, उन पर कई जगह पुल-पुलिया की जरूरत है. मगर सरकारी उदासीनता के कारण आजतक न तो पुल बना और न ही सड़कें बनी हैं. इसकी वजह से किसी तरह लकड़ी का पुल बनाकर उसका उपयोग करते हैं. पुल किस दिन गिर जाए और कौन इसकी चपेट में आकर जान गवां बैठे.

बच्चे छोड़ देते हैं पढ़ाई

ग्रामीण युवाओं का कहना है कि इलाके का विकास नहीं होने की वजह से यहां के जो छात्र छात्राएं हैं, वो बरसात के दिनों में पढ़ाई छोड़ देते हैं. उनका कहना है कि जंगली इलाका होने के कारण नदियों में पानी का उफान आ जाता है. इसकी वजह से लोग नदी को पार नहीं कर सकते. ग्रामीणों ने बताया कि अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाता है, तो फिर उसका इलाज कराने के लिए बेहद परेशानी उठानी पड़ती है. मरीजों को खाट पर ढोकर अस्पताल ले जाना पड़ता है.

गांव में नहीं आंगनबाड़ी केंद्र

आदिम जनजाति बाहुल्य गांव की महिला बताती हैं कि वो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं, लेकिन गांव में एक ढंग का आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है. सालों पहले एक आंगनबाड़ी का भवन बनाया जा रहा था, मगर वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया. आंगनबाड़ी केंद्र के भवन को अधूरा छोड़ दिया गया, जिसके कारण उसके कई भाग टूटकर गिर गए. यहां पर बच्चे खेलते भी हैं तो उन्हें डर लगता है.

वहीं, इस मामले पर उप विकास आयुक्त का कहना है कि चैनपुर प्रखंड क्षेत्र की मालम पंचायत काफी सुदूरवर्ती क्षेत्र में पड़ती है. इस पंचायत के गांव में विकास के लिए जिला प्रशासन की ओर से पहल करके गांव का विकास किया जाएगा.

गुमला: आजादी के सात दशक बाद भी गुमला के चैनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाके में रहने वाले आदिम जनजाति और आदिवासी परिवार आज भी गांव में विकास की बाट जोह रहे हैं. गांव तक जाने के लिए न तो सड़क है और न ही पुल-पुलिया. ऐसे में बरसात के मौसम में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है, तो वहीं मरीजों को समय पर चिकित्सा सुविधा भी मुहैया नहीं कराई जा सकती.

देखें ये स्पेशल स्टोरी

चैनपुर प्रखंड की मालम पंचायत में पड़ने वाले कतारीकोना, कोल्हुकोना, सनइटांगर, उमदरा, गम्हरिया, झलका, सीपरी, गढ़ाटोली, तिलवरीपाठ, गटीदारा आदि गांव घोर नक्सल प्रभावित इलाके में आते हैं. यहां के ग्रामीण आज भी गांव से प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए पगडंडी का ही सहारा लेते हैं. गांव के लोग पगडंडी के रास्ते सबसे पहले अपनी पंचायत मुख्यालय में आते हैं. इसके बाद यहां से जिला मुख्यालय पहुंच सकते हैं.

ये भी पढ़ें- न सरकार ने सुनी आवाज, न प्रशासन ने गुहार, तो ग्रामीणों ने खुद बना डाला पुल

ग्रामीणों को पंचायत मुख्यालय पहुंचने से पहले कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव तक सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीण पगडंडी के रास्ते ही पंचायत मुख्यालय पहुंचते हैं. छात्रों को नदी-नालों पर पुल-पुलिया नहीं होने से जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता है. कई ऐसी जगह हैं, जहां ग्रामीणों ने लकड़ी के जरिए पुल बनाकर नदी-नालों को पार करने का तरीका निकाला. हालांकि, यह जानलेवा साबित हो सकता है.

पुल में न रेलिंग और न मजबूती

ग्रामीणों की ओर से बनाए गए इस लकड़ी के पुल में न तो रेलिंग है और न ही ज्यादा मजबूती. ऐसे में इस पुल को पार करने से पहले लोगों को अपनी जान हथेली पर रखनी पड़ती है. आदिम जनजाति बाहुल्य कोल्हुकोना गांव के छोटे-छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र के जरिए पढ़ाया जाए, इसको लेकर गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी बनाया गया. मगर वो भी पिछले कई साल से अधूरा है. हालात यह है कि भवन अब जर्जर हो चुका है. इसके कई भाग टूटकर गिर रहे हैं.

ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंची विकास की किरण

ऐसे में गांव के एक कच्चे मकान में आंगनबाड़ी सेविका बच्चों को पढ़ाती हैं. मगर वो भी हफ्ते में एक-दो दिन ही बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव पहुंचती हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अगर गांव का विकास करती है, तो उन्हें काफी खुशी होगी. लंबे इंतजार के बाद भी आजतक ग्रामीण इलाकों में विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है.

कभी भी हो सकता है हादसा

ग्रामीण बताते हैं कि गांव जाने के लिए जो सड़कें हैं, उन पर कई जगह पुल-पुलिया की जरूरत है. मगर सरकारी उदासीनता के कारण आजतक न तो पुल बना और न ही सड़कें बनी हैं. इसकी वजह से किसी तरह लकड़ी का पुल बनाकर उसका उपयोग करते हैं. पुल किस दिन गिर जाए और कौन इसकी चपेट में आकर जान गवां बैठे.

बच्चे छोड़ देते हैं पढ़ाई

ग्रामीण युवाओं का कहना है कि इलाके का विकास नहीं होने की वजह से यहां के जो छात्र छात्राएं हैं, वो बरसात के दिनों में पढ़ाई छोड़ देते हैं. उनका कहना है कि जंगली इलाका होने के कारण नदियों में पानी का उफान आ जाता है. इसकी वजह से लोग नदी को पार नहीं कर सकते. ग्रामीणों ने बताया कि अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाता है, तो फिर उसका इलाज कराने के लिए बेहद परेशानी उठानी पड़ती है. मरीजों को खाट पर ढोकर अस्पताल ले जाना पड़ता है.

गांव में नहीं आंगनबाड़ी केंद्र

आदिम जनजाति बाहुल्य गांव की महिला बताती हैं कि वो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं, लेकिन गांव में एक ढंग का आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है. सालों पहले एक आंगनबाड़ी का भवन बनाया जा रहा था, मगर वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया. आंगनबाड़ी केंद्र के भवन को अधूरा छोड़ दिया गया, जिसके कारण उसके कई भाग टूटकर गिर गए. यहां पर बच्चे खेलते भी हैं तो उन्हें डर लगता है.

वहीं, इस मामले पर उप विकास आयुक्त का कहना है कि चैनपुर प्रखंड क्षेत्र की मालम पंचायत काफी सुदूरवर्ती क्षेत्र में पड़ती है. इस पंचायत के गांव में विकास के लिए जिला प्रशासन की ओर से पहल करके गांव का विकास किया जाएगा.

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