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गोड्डाः सूप बनाने वालों को बेसब्री से रहता है छठ का इंतजार, कमाई की रहती है उम्मीद

लोक आस्था के महापर्व छठ का आगाज हो गया है. बांस के सूप बनाने वाले साल भर छठ का इंतजार करते हैं ताकि थोड़ी कमाई हो सके.

importance of bamboo soup for chhath in godda
सूप बनाने वाले
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Published : Nov 18, 2020, 8:56 AM IST

गोड्डा: आस्था के पर्व छठ को लेकर हर तरफ खास तौर पर बिहार-झारखंड उत्साह और भक्ति का माहौल है. इसके साथ ही सभी जानते हैं कि इस पवन पर्व में बांस के सूप के खास महत्व है लेकिन इसे बनाने वाले शिल्पी मोहली परिवार को भी छठ पर्व का साल भर इंतजार होता है क्योंकि पूरे साल में यही एक अवसर होता है, जहां उन्हें काम और थोड़ी बहुत दाम सुलभता से मिल जाते है, जिससे उन्हें दो जून की रोटी आसानी से नसीब हो जाती है.

देखें पूरी खबर
गोड्डा रामगढ़ दुमका मार्ग पर सड़क किनारे अगिया मोड़ के पास कई परिवार बांस के काम में जुटे हुए देर शाम तक देखे जा सकते हैं. हर साल इन्हें इस दिन का साल भर इंतजार होता है क्योंकि यही एक वक्त होता है जब उन्हे पर्याप्त काम के साथ ही थोड़ी बहुत दाम मिल जाते हैं. बांस के सूप बनाने वाले कहते हैं कि साल भर काम नहीं मिलता और रोटी तक के लाले पड़ जाते हैं. यही कुछ महीने भर पूरा परिवार मेहनत कर दिन भर मे 250 रुपये के हिसाब से कमा लेते हैं.

ये भी पढ़े- टाटानगर से बादाम पहाड़ तक जल्द दौड़ेगी इलेक्ट्रिक ट्रेन, डीआरएम ने दी जानकारी

नहीं होता है आसान

कई किलोमीटर का सफर साइकिल से तय कर बांस लाते हैं और फिर उन्हें काट छाट कर सूप डलिया बनाते हैं और फिर गांव-गांव जाकर बेचते हैं तब जाकर ढाई सौ के आस पास कमा पाते हैं. ठंड के मौसम मे भी ये सड़क के किनारे ही काम करते हैं. आम आदमी के लिए छठ आस्था से जुड़ा है लेकिन इन शिल्पी परिवारों के लिए ये दो जून की रोटी की जुगाड़ का बेहतर अवसर के साथ ही जरिया है.

लेकिन इन शिल्पी गालिब परिवारो को थोड़ी तकनीक के साथ ही आर्थिक मदद हो जाती है, जिसके ये हकदार भी है. उनके काम में तेजी के साथ ही कुछ अच्छी आय हो जाती. हालांकि इनके लिए कई सरकारी योजनाएं तो आती है लेकिन इन तक पहुंच नहीं पाती है. नतीजा इनकी माली हालत में सुधार दर दर तक होता नहीं दिखता.

गोड्डा: आस्था के पर्व छठ को लेकर हर तरफ खास तौर पर बिहार-झारखंड उत्साह और भक्ति का माहौल है. इसके साथ ही सभी जानते हैं कि इस पवन पर्व में बांस के सूप के खास महत्व है लेकिन इसे बनाने वाले शिल्पी मोहली परिवार को भी छठ पर्व का साल भर इंतजार होता है क्योंकि पूरे साल में यही एक अवसर होता है, जहां उन्हें काम और थोड़ी बहुत दाम सुलभता से मिल जाते है, जिससे उन्हें दो जून की रोटी आसानी से नसीब हो जाती है.

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गोड्डा रामगढ़ दुमका मार्ग पर सड़क किनारे अगिया मोड़ के पास कई परिवार बांस के काम में जुटे हुए देर शाम तक देखे जा सकते हैं. हर साल इन्हें इस दिन का साल भर इंतजार होता है क्योंकि यही एक वक्त होता है जब उन्हे पर्याप्त काम के साथ ही थोड़ी बहुत दाम मिल जाते हैं. बांस के सूप बनाने वाले कहते हैं कि साल भर काम नहीं मिलता और रोटी तक के लाले पड़ जाते हैं. यही कुछ महीने भर पूरा परिवार मेहनत कर दिन भर मे 250 रुपये के हिसाब से कमा लेते हैं.

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कई किलोमीटर का सफर साइकिल से तय कर बांस लाते हैं और फिर उन्हें काट छाट कर सूप डलिया बनाते हैं और फिर गांव-गांव जाकर बेचते हैं तब जाकर ढाई सौ के आस पास कमा पाते हैं. ठंड के मौसम मे भी ये सड़क के किनारे ही काम करते हैं. आम आदमी के लिए छठ आस्था से जुड़ा है लेकिन इन शिल्पी परिवारों के लिए ये दो जून की रोटी की जुगाड़ का बेहतर अवसर के साथ ही जरिया है.

लेकिन इन शिल्पी गालिब परिवारो को थोड़ी तकनीक के साथ ही आर्थिक मदद हो जाती है, जिसके ये हकदार भी है. उनके काम में तेजी के साथ ही कुछ अच्छी आय हो जाती. हालांकि इनके लिए कई सरकारी योजनाएं तो आती है लेकिन इन तक पहुंच नहीं पाती है. नतीजा इनकी माली हालत में सुधार दर दर तक होता नहीं दिखता.

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