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लॉकडाउन में 'देसी किसमिस' संवारेगा ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति, जंगली इलाकों में इसे चुनने जुटते हैं लोग - कोरोना वायरस

गिरिडीह के बगोदर में जंगली इलाके में इन दिनों देशी किशमिश यानी महुआ की खुशबू से फीजा महक रही है. महुआ चुनने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जंगली इलाकों में देखी जा रही है. लॉकडाउन में देसी किशमिश यानी महुआ से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में थोड़ी बहुत सुधार होने की संभावना है.

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महुआ
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Published : Apr 11, 2020, 3:15 PM IST

बगोदर, गिरिडीह: बगोदर प्रखंड क्षेत्र में देशी किशमिश यानी महुआ की खुशबू से फीजा महक रही है. महुआ चुनने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जंगली इलाके में सुबह में देखी जा रही है. कोरोना वायरस के नियंत्रण को लेकर की गई लॉकडाउन से ग्रामीणों की कमजोर हुई आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महुआ कुछ मददगार साबित हो सकता है.

देखें पूरी खबर

बताया जाता है कि महुआ को चुनकर उसे सुखाया जाता है और फिर उसकी बिक्री कर दी जाती है. महुआ के बिक्री करने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार होने की संभावना है. ग्रामीणों ने बताया कि गर्मी के वजह से आधी रात्रि के बाद पेड़ से महुआ गिरना शुरू हुआ हो जाता है. ऐसे में आधी रात को हीं ग्रामीण महुआ की निगरानी के लिए महुआ पेड़ के पास चले जाते हैं और रात्रि में निगरानी करने के बाद सुबह होते हीं महुआ को चुनकर जमा करते हैं और फिर उसे घर लाकर उसे सुखाते हैं. इसके बाद महुआ को बेचा जाता है. किसानों के द्वारा महुआ को जानवरों को भी खिलाया जाता है. बताया जाता है कि समय के अनुसार महुआ के मूल्य में उतार चढ़ाव होता रहता है. 40- 50 से 70 - 80 रूपये प्रतिकिलो की दर से महुआ की बिक्री की जाती है.

ये भी पढ़ें- हजारीबाग में मिला दूसरा कोरोना पॉजिटिव मरीज, झारखंड में कुल 17 पेशेंट

महुआ से बनता है शराब
महुआ से मुख्य रूप से शराब बनाया जाता है. इसे महुआ शराब या फिर देशी शराब कहा जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ से शराब बनाने का धंधा धड़ल्ले से संचालित होता है. अंग्रेजी शराब की तुलना में महुआ शराब का कीमत कम होता है. ऐसे में खासकर मजदूर वर्ग के लोगों के द्वारा इस शराब का सेवन किया जाता है.

बगोदर, गिरिडीह: बगोदर प्रखंड क्षेत्र में देशी किशमिश यानी महुआ की खुशबू से फीजा महक रही है. महुआ चुनने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जंगली इलाके में सुबह में देखी जा रही है. कोरोना वायरस के नियंत्रण को लेकर की गई लॉकडाउन से ग्रामीणों की कमजोर हुई आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महुआ कुछ मददगार साबित हो सकता है.

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बताया जाता है कि महुआ को चुनकर उसे सुखाया जाता है और फिर उसकी बिक्री कर दी जाती है. महुआ के बिक्री करने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार होने की संभावना है. ग्रामीणों ने बताया कि गर्मी के वजह से आधी रात्रि के बाद पेड़ से महुआ गिरना शुरू हुआ हो जाता है. ऐसे में आधी रात को हीं ग्रामीण महुआ की निगरानी के लिए महुआ पेड़ के पास चले जाते हैं और रात्रि में निगरानी करने के बाद सुबह होते हीं महुआ को चुनकर जमा करते हैं और फिर उसे घर लाकर उसे सुखाते हैं. इसके बाद महुआ को बेचा जाता है. किसानों के द्वारा महुआ को जानवरों को भी खिलाया जाता है. बताया जाता है कि समय के अनुसार महुआ के मूल्य में उतार चढ़ाव होता रहता है. 40- 50 से 70 - 80 रूपये प्रतिकिलो की दर से महुआ की बिक्री की जाती है.

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महुआ से बनता है शराब
महुआ से मुख्य रूप से शराब बनाया जाता है. इसे महुआ शराब या फिर देशी शराब कहा जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ से शराब बनाने का धंधा धड़ल्ले से संचालित होता है. अंग्रेजी शराब की तुलना में महुआ शराब का कीमत कम होता है. ऐसे में खासकर मजदूर वर्ग के लोगों के द्वारा इस शराब का सेवन किया जाता है.

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