गिरिडीह: जिले में माल महाराज का मिर्जा खेले होली यह पुरानी कहावत इन दिनों मनरेगा के मेटेरियल आपूर्तिकर्ताओं पर सटीक साबित हो रही है. दरअसल मनरेगा के मेटेरियल के कई आपूर्तिकर्ताओं द्वारा सरकारी रकम को हड़पने का प्रयास किया जा रहा है. यह रकम मेटेरियल के स्वामित्व (रॉयल्टी) का है. रकम एक दो नहीं बल्कि कई करोड़ में होने की बात कही जा रही है. रकम कितनी है इसका हिसाब अभी जिला खनन विभाग के पास भी नहीं है. यह रॉयल्टी भी पिछले चार-पांच साल का बताया जा रहा है.
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रॉयल्टी की रकम नहीं होती है जमा
मिली जानकारी के मुताबिक मनरेगा में मेटेरियल (ईंट, बालू, पत्थर, सीमेंट समेत अन्य सामान) की आपूर्ति वेंडरों के द्वारा की जाती है. मेटेरियल का यदि सरकारी चालान से आपूर्ति किया गया है तो रॉयल्टी नहीं काटी जाती है. यदि सरकारी चालान से सामानों की आपूर्ति नहीं की गई है तो डबल रॉयल्टी काटी जाती है. काटी गई रॉयल्टी को जिला खनन विभाग के खाते में जमा भी करना होता है. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. वेंडरों के मेटेरियल आपूर्ति करने के बाद प्राक्कलन राशि से रॉयल्टी काट तो ली जा रही है लेकिन इस रकम को खनन विभाग के खाते में जमा नहीं किया जा रहा है.
कई बार पत्र देने के बाद भी सुनवाई नहीं
पूरे मामले की जानकारी खुद जिला खनन पदाधिकारी ने दी है. उन्होंने बताया कि उनके विभाग के खाते में रॉयल्टी जमा करनी होती है लेकिन रकम को जमा ही नहीं किया जा रहा है. यह भी बताया कि वेंडरों से रॉयल्टी जमा करवाने का काम बीडीओ है ऐसे में कई बार इस बारे में चिट्ठी लिखकर अवगत कराया गया है. लेकिन एक दो प्रखंडों से कुछ राशि जमा हूुई, लेकिन बाकी प्रखंडों के कई वेंडरों ने रकम जमा नहीं किया है.
भेजा जा रहा है नोटिस
वहीं सदर प्रखंड के बीडीओ डॉक्टर सुदेश कुमार के मुताबिक रॉयल्टी काटने और उसे संबंधित विभाग के खाते में जमा करने का काम वेंडर का ही है. ऐसे में वेंडरों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है और उन्हें कई बार नोटिस भी दिया गया है.
रॉयल्टी की लूट
इस मामले पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ साव बताते हैं रॉयल्टी की लूट की जा रही है. लूट का यह खेल पिछले कई वर्षों से चल रहा है. इस लूट में कई वेंडर शामिल हैं. कई वेंडर तो सिर्फ बिल ही बेच रहे हैं. इसकी शिकायत उन्होंने कई दफा की है. हर शिकायत के बाद संबंधित विभाग एक पत्र निकाल देता है लेकिन इस पत्र का असर वेंडरों पर पड़ ही नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि यदि कोई मनरेगा मजदूर योजना पूरी करने में देरी करता है तो प्रशासन उससे न सिर्फ रिकवरी करने में जुट जाता है बल्कि मुकदमा भी करने की बात कही जाती है लेकिन वेंडर पिछले पांच-छह वर्षों से सरकार की रकम रोके हुए हैं लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ पत्र भेजा जा रहा है.