बगोदर, गिरिडीह: झारखंड अलग राज्य निर्माण के दस साल बाद 2010 में पहली बार पंचायत चुनाव हुए थे. उसके बाद पंचायतों में लाखों की लागत से दो मंजिलें पंचायत सचिवालय के निर्माण हुए. पंचायत सचिवालयों में पंचायत सेवक, मुखिया के बैठने के लिए चेंबर बने हुए हैं. दोनों के ऊपर पंचायत सचिवालय को संवारने की भी जिम्मेदारी है. हालांकि कई जगह देखरेख के अभाव में पंचायत सचिवालय में बिजली-पानी तक की सुविधाएं नदारद हैं. लेकिन इन सब से इतर बगोदर के तिरला पंचायत की बात कुछ अलग है.
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तिरला पंचायत सचिवालय में न सिर्फ बिजली-पानी और शौचालय की बेहतर व्यवस्था है बल्कि पंचायत सचिवालय के जमीन पर कालीन बिछे हुए हैं. खिड़की और दरवाजे में लगे पर्दे भी सचिवालय के शोभा बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं जिस तरह से अंदर से सचिवालय सजा है, बाहर से भी यह उतना ही सुंदर दिखता है. दीवारों पर की गई चित्रकारी में झारखंड की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. इसके साथ ही बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के लिखे स्लोगन भी लोगों को प्रेरित करता है.
आधी आबादी को मिला है प्रतिनिधित्व का मौका: इस पंचायत का प्रतिनिधित्व करने का मौका आधी आबादी को मिला है. सरिता साव पहली बार पंचायत की मुखिया चुनी गईं हैं. अन्य महिला मुखियाओं की तरह इनके पति मुखिया का बागडोर नहीं संभालते हैं. बल्कि सरिता साव खुद मुखिया की सभी जिम्मेदारी को निभाती हैं. समाज को साथ लेकर चलना, सही-गलत को परखना और फैसला लेना सब कुछ खुद हीं करती हैं. मुखिया सरिता साव भले हीं पहली बार पंचायत प्रतिनिधि के रूप में पंचायत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर पिछले 20 सालों से पंचायत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. सरिता साव राजनीतिक दल भाकपा माले से जुड़ी हैं.
पंचायत को दिलाना है अलग पहचान: मुखिया सरिता साव ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहती हैं कि पंचायत को अलग पहचान दिलाना है. कहती हैं कि पंचायत सचिवालय का भवन हीं सिर्फ अलग हटकर नहीं है बल्कि अलग तरह के कार्य करने की प्लानिंग भी है. बताया कि विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को मिल सके इसके लिए वे गंभीर रहती हैं. महिलाओं के साथ बातचीत में भी योजनाओं की जानकारी दी जाती है और उन्हें योजनाएं दिलाई जाती है. बताती हैं कि योजनाओं को लेकर महीने में एक बार समीक्षा बैठक भी की जाएगी. इसकी शुरूआत भी कर दी गई है.