बगोदर/गिरिडीह: दुनिया भर में शुक्रवार तीन दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस 2021 मनाया जा रहा है. International Day of Disabled Persons 2021 पर दुनिया भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें दिव्यांगों के उत्थान पर मंथन किया जा रहा है. इस बीच ईटीवी भारत की टीम ने गिरिडीह में ऐसे दिव्यांगों की कहानी खंगाली, जिनका जीवन सामान्य कहे जाने वाले लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है. इस दौरा यह सच्चाई भी सामने आई कि गिरिडीह में दिव्यांगों के हित की चिंता सिर्फ भाषणों में हो रही है. इन्हें सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है.
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बगोदर के दिव्यांग खीरोधर प्रसाद मिसाल
बगोदर इलाके में रहने वाले खीरोधर प्रसाद का कद छोटा है, लेकिन सपने बड़े हैं. बगोदर में विष्णुगढ़ सीमा के अटका के पास के गांव बारा के रहने वाले खीरोधर तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. लगभग 42 साल के खीरोधर को आंख से कम दिखाई देता है. उनको कान से सुनने में भी परेशानी होती है. वे चल-फिर भी नहीं सकते हैं. लेकिन उनका जज्बा बड़े बड़ों को मात देता है. इन तकलीफों को पार कर उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई की है.
परिजनों ने बताया कि दिव्यांग खीरोधर का हौसला समाज के सामान्य लोगों के लिए भी मिसाल है. खीरोधर ने इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए थे, इसके बाद ही उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था. बाद में घर में संचालित राशन दुकान में घरवालों का हाथ बंटाने लगे. खीरोधर को इंदिरा आवास और विकलांग पेंशन का लाभ मिल रहा है. लेकिन उन्होंने चलने फिरने में सहूलियत के लिए थ्री व्हीलर बाइक की व्यवस्था सरकार से करने की मांग की तो किसी ने ध्यान नहीं दिया. साथ ही नौकरी या पीडीएस दुकान उपलब्ध कराने की मांग पर भी अभी तक सुनवाई नहीं हुई. सरिया प्रखंड के दिव्यांग नारायण पंडित ने सरकार से सहयोग की मांग की है.
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दिव्यांग संतोष कुमार बने प्रेरणा
एक साधारण व्यक्ति जो काम शायद ही कर पाए, वह गिरिडीह के दिव्यांग संतोष ने कर दिखाया है. जाके पांव न फटे बिवाई, का जाने पीर पराई.यह लाइन शायद संतोष जैसे मददगारों के लिए ही लिखी गई है. बगोदर प्रखंड के खटैया निवासी दिव्यांग संतोष कुमार न तो सही से बोल पाते हैं और न ही चल पाते हैं. बावजूद इसके वे दिव्यांगों की मदद करते हैं. संतोष जिस तरह से काम कर रहे हैं वह सामान्य व्यक्ति सोच भी नहीं सकता है. दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने सेवा भावना से विकलांग मानव सेवा केंद्र खोला था.
बगैर किसी सहायता के संतोष इसे चला रहे हैं और दिव्यांगों की मदद कर रहे हैं. वह सोशल मीडिया के माध्यम से अपने मित्रों से सहयोग राशि की मांग करते हैं और इसी से संस्था चला रहे हैं. इसके अलावा स्कूल और कॉलेज में जाकर छात्र छात्राओं से भी मदद लेते हैं और राशि इकट्ठी कर दिव्यांगों के लिए सहायता सामग्री बांटते हैं.
नारायण पंडित ने मांगी मदद
इधर, दिव्यांग नारायण पंडित ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. नारायण का कहना है कि सरकार हमारी मदद करे, क्योंकि हमें इसकी बहुत जरूरत है.