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गिरिडीह में मूर्ती की बिक्री न के बराबर, राजस्थान से पहुंचे मूर्तीकारों के सामने भुखमरी की समस्या

राजस्थान से गिरिडीह के बगोदर पहुंचे मूर्तिकार कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. ये मूर्तीकार अपना प्रदेश छोड़कर डेढ़ सालों से बगोदर में तंबू डालकर रह रहे हैं और रंग-बिरंगी मूर्तियां भी बनाई है, लेकिन बाजार में मूर्तियों की डिमांड नहीं है.

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Published : Nov 14, 2020, 4:58 PM IST

sale of idols is negligible in Giridih
गिरिडीह में मूर्ती की बिक्री न के बराबर

गिरिडीह: राजस्थान से बगोदर पहुंचे मूर्तिकारों को अपने पुश्तैनी व्यापार को जीवित रखने और परिजनों की परवरिश के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. ये मूर्तीकार अपना प्रदेश को छोड़कर डेढ़ साल से बगोदर में रह रहे हैं और रंग-बिरंगी मूर्तियां भी बनाई हैं, लेकिन दीपावली में भी बाजार में मूर्तियों की डिमांड नहीं है.

देखें पूरी खबर

मूर्तिकारों के चेहरे पर उदासी

इस कार्य में महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं. महिलाएं भी मूर्तियों को बनाने में जी तोड़ मेहनत कर रही हैं, लेकिन इन मूर्तिकारों को इनका मेहनताना भी नहीं मिल रहा है, जिससे ये अपने परिवार का जीविकोपार्जन चला सके. कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण कई महीनों तक मूर्तिकारों का धंधा बंद रहा. उस समय किसी तरह से जीविकोपार्जन कर रहे थे. दीपावली के त्योहार को लेकर मूर्तिकारों के चेहरे पर थोड़ी रौनक लौटी थी, लेकिन मूर्ती नहीं बिकने से उनकी खुशियां धरी की धरी रह गईं.

ये भी पढ़ें-भगवान बिरसा की जीवनी लोगों के लिए बनेगा प्रेरणा स्रोत, 15 नवंबर को पुराने जेल में बने स्मृति पार्क का होगा उद्घाटन

मूर्तिकारों को नहीं मिल रहा खरीदार

ये मूर्तिकार दिवाली के 1 महीने पहले से लक्ष्मी, गणेश सहित अलग-अलग तरह की रंग-बिरंगी मूर्तियां बनाने की तैयारी में जुट गए थे. ये मूर्तियां बनकर तैयार भी हैं, लेकिन मूर्तियों की बिक्री न के बराबर हो रही है, जिससे उन्हें अपने परिवार की चिंता सताने लगी है. इस संबंध में मूर्तिकार सुंदरी बताती हैं कि दीपावली को लेकर बड़ी संख्या में मूर्तियां बनाई गई हैं, ताकि कुछ आमदनी कर सके, लेकिन मूर्ति की डिमांड बाजार में न के बराबर है.

गिरिडीह: राजस्थान से बगोदर पहुंचे मूर्तिकारों को अपने पुश्तैनी व्यापार को जीवित रखने और परिजनों की परवरिश के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. ये मूर्तीकार अपना प्रदेश को छोड़कर डेढ़ साल से बगोदर में रह रहे हैं और रंग-बिरंगी मूर्तियां भी बनाई हैं, लेकिन दीपावली में भी बाजार में मूर्तियों की डिमांड नहीं है.

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मूर्तिकारों के चेहरे पर उदासी

इस कार्य में महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं. महिलाएं भी मूर्तियों को बनाने में जी तोड़ मेहनत कर रही हैं, लेकिन इन मूर्तिकारों को इनका मेहनताना भी नहीं मिल रहा है, जिससे ये अपने परिवार का जीविकोपार्जन चला सके. कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण कई महीनों तक मूर्तिकारों का धंधा बंद रहा. उस समय किसी तरह से जीविकोपार्जन कर रहे थे. दीपावली के त्योहार को लेकर मूर्तिकारों के चेहरे पर थोड़ी रौनक लौटी थी, लेकिन मूर्ती नहीं बिकने से उनकी खुशियां धरी की धरी रह गईं.

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मूर्तिकारों को नहीं मिल रहा खरीदार

ये मूर्तिकार दिवाली के 1 महीने पहले से लक्ष्मी, गणेश सहित अलग-अलग तरह की रंग-बिरंगी मूर्तियां बनाने की तैयारी में जुट गए थे. ये मूर्तियां बनकर तैयार भी हैं, लेकिन मूर्तियों की बिक्री न के बराबर हो रही है, जिससे उन्हें अपने परिवार की चिंता सताने लगी है. इस संबंध में मूर्तिकार सुंदरी बताती हैं कि दीपावली को लेकर बड़ी संख्या में मूर्तियां बनाई गई हैं, ताकि कुछ आमदनी कर सके, लेकिन मूर्ति की डिमांड बाजार में न के बराबर है.

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