गिरिडीह: कोरोना काल के दौरान जब निजी अस्पतालों में मरीजों की भर्ती लगभग बंद हो गई है. कोरोना के भय से डॉक्टर मरीजों को देखने से कतराने लगे हैं, जिससे लोगों को परेशानी होने लगी है. इससे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं और उनके परिजनों को हो रही है, लेकिन इस दौरान सरकारी स्वास्थ्यकर्मी लगातार मरीजों की सेवा कर रहे हैं. गिरिडीह में भी सरकारी व्यवस्था के माध्यम से गर्भवती महिलाओं का ख्याल रखा जा रहा है. यही कारण है जिले के चैताडीह में स्थित मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई में प्रसव की संख्या में डेढ़ गुणा बढ़ोतरी हुई है. कोरोना काल से पहले चैताडीह में स्थित मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई में 300-325 महिलाओं का प्रसव एक महीने में होता था, लेकिन अब यहां हर महीने लगभग 540 महिलाओं का प्रसव हो रहा है. वहीं सिजेरियन ( सर्जरी से प्रसव) की संख्या में तिगुना बढ़ोतरी हुई है.
कोरोना काल में सरकारी अस्पतालों में बढ़ी मरीजों की संख्या
सिविल सर्जन डॉ अवधेश कुमार सिन्हा ने बताया कि पहले लॉकडाउन से पहले एक महीने में 20 से 30 सिजेरियन होता था, जो संख्या अब 87 तक पहुंच गई है. उन्होंने बताया कि जून महीने में 87 प्रसव सिजेरियन से हुआ है, जबकि जुलाई में यह संख्या 57 थी, इसी तरह लॉकडाउन से पहले जहां लगभग 300 प्रसव चैताडीह के मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई में होता था, वह संख्या अब 539 तक पहुंच गई है, जून महीने में यहां 509 तो जुलाई में 539 प्रसव कराया गया है. सिविल सर्जन ने कहा कि कोरोना काल में डॉक्टर, जीएनएम, एएनएम, चतुर्थवर्गीय कर्मियों समेत अन्य कर्मियों ने बेहतर से बेहतर सेवा दी है, अब जो कमी है उसे भी ठीक किया जा रहा है.
कर्मियों को भी कोरोना का भय
कोरोना काल के दौरान प्रसव कराने वाली जीएनएम, नर्सेज की भी अपनी पीड़ा है. उनका कहना है कि कोरोना के दौरान जो भी मरीज आते हैं उन सभी का कोरोना टेस्ट नहीं होता, इससे असुरक्षा की भावना उनके अंदर भी है. डुमरी की जीएनएम ललिता बाला का कहना है कि प्रसव से जुड़े कर्मियों की सुरक्षा के प्रति विशेष ध्यान देने की दरकार है, जो भी मरीज भर्ती हों उन सभी का कोरोना टेस्ट होना ही चाहिए.
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प्रसव के बाद मरीजों को खुद देखे चिकित्सक
चैताडीह में स्थित मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य इकाई में भर्ती जच्चा और उनके परिजनों ने बताया कि प्रसव के समय डॉक्टर तो रहते हैं, लेकिन उसके बाद वार्ड में आकर उनके स्वास्थ्य की जांच नहीं होती है, सिर्फ नर्सेज और दाई ही आती है. उनका कहना है कि डॉक्टरों को भी वार्ड में आकर विजिट करना चाहिए, ताकि मरीज अपनी सभी परेशानी बता सके और उन्हें सही परामर्श मिले.