गिरिडीह: भेलवाघाटी नरसंहार के 18 वर्ष बीत चुके हैं. आज भी यहां दहशत बरकरार है. घटना के बाद सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं देने का वादा किया गया था. लोगों ने कहा कि आज भी उनकी परेशानियां कम नहीं हुई हैं. साल 2005 में 11 सितंबर की काली रात में भाकपा माओवादियों के द्वारा गांव के बीच चौराहे पर 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था.
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मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे लोग: भेलवाघाटी गांव में पेयजल व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका है. तीन सौ से भी अधिक परिवार वाले इस गांव में लोगों को कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. गांव में पानी का जलस्तर नीचे जाने से जलकूप सूखा गए हैं. चापाकल से पर्याप्त पानी नहीं निकल रहा है. पानी की किल्लत की वजह से आए दिन आपस में भी उलझन होती रहती है. वहीं गांव में अभी तक जल नल योजना के तहत घरों तक पानी पहुंच नहीं पाया है.
आठवीं के बाद पढ़ाई की सुविधा नहीं: इसके अलावा यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का भी टोटा लगा हुआ है. यहां के लोगों को देवरी, चतरो व गिरीडीह जाना पड़ता है. वहीं गांव में सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है. सिंचाई सुविधा के अभाव में लोग बारिश के पानी पर आश्रित हैं. यहां के लोग सिर्फ धान व मकई फसल की खेती कर पाते हैं. गांव में अभी तक आठवीं तक की पढ़ाई की ही सुविधा है. आठवीं के बाद की पढ़ाई करने के लिए बरमसिया गांव जाना पड़ता है. ग्रामीण गफूर अंसारी, इमामुद्दीन अंसारी, सलामत मिंया, मकबूल मिंया, जुमराती मिंया, समसुद्दीन अंसारी, दिलवर अंसारी, जुम्मन मिंया, सद्दाम अंसारी आदि ने समस्याओं से निजात दिलवाने की मांग की है.
क्या है इसके पीछे की कहानी: बताया जाता है कि इलाके में नक्सल गतिविधि को रोकने के लिए गांव में ग्राम रक्षा दल का गठन किया गया था. इसी बात से नक्सली गांव वालों से नाराज थे. इसके लिए नक्सलियों ने कई बार गांव के लोगों को चेतावनी भी दी थी. ग्रामीणों को इसे नजरअंदाज करने का परिणाम 11 सितंबर 2005 को 17 लोगों की जान गंवा कर भुगतना पड़ा. घटना शाम के साढ़े सात बजे घटी थी. उस रात माओवादियों ने पूरे भेलवाघाटी गांव को घेर लिया था.
बीच चौराहे पर खेली खून की होली: गांव को घरेने के बाद ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को एक-एक कर घर से बाहर निकाल कर गांव के बीच चौराहे पर जनअदालत लगाया. जनअदालत में ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को मौत की सजा देने का फरमान जारी किया गया. इसके बाद माओवादियों ने गांव के बीच चौराहे पर ही खून की होली खेली. पहले उनकी जमकर पिटाई की और उसके बाद किसी को गोली मारी तो किसी को गला रेतकर मौत के घाट उतार दिया. इस दौरान रात साढ़े सात बजे से साढ़े दस बजे तक नक्सलियों के द्वारा गांव को घेरे रखा गया था.