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दगाबाज मानसून! अकाल की तरफ गिरिडीह, जिला में 80 प्रतिशत कम हुई बारिश

गिरिडीह में इस वर्ष धान की खेती नहीं होने के कगार (lack of rain in Giridih) पर हैं. यह सब मानसून की दगाबाजी के कारण हो रहा हैं. पिछले वर्ष की तुलना में जिला में अभी तक 80 प्रतिशत कम वर्षा (below normal rainfall) हुई हैं. इसको लेकर जिला को सुखाड़ क्षेत्र घोषित करने की मांग (declare district as drought prone area) उठ रही है.

due to lack of rain in Giridih demand to declare district as drought prone area
गिरिडीह
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Published : Aug 4, 2022, 11:01 AM IST

गिरिडीहः बेहतर बारिश की उम्मीद पाले किसानों संग मानसून ने दगाबाजी (lack of rain in Giridih) की. जहां पिछले वर्ष 20-25 जुलाई तक लगभग 300 mm बारिश हुई थी. वहीं इस वर्ष जुलाई माह में मात्र 40-42 mm बारिश ही हुई है. ऐसे में धान रोपनी नहीं हो सकी हैं. जबकि 10-15 जुलाई से ही धान रोपने का काम हर वर्ष शुरू हो जाता था. इस बार तो धान रोपनी की जगह किसानों को बिचड़ा बचाना भी मुश्किल भरा रहा. बारिश की जो कमी रही इससे इस वर्ष सुखाड़ का डर भी किसानों को सताने लगा हैं. दो तीन दिनों से कुछ बारिश हो रही हैं लेकिन यह वर्षा नाकाफी (low rainfall in Monsoon) है.

इसे भी पढ़ें- राज्य में सुखाड़ के आसार पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ मंथन, शॉर्ट टर्म और वैकल्पिक फसल पर जोर, बीज अनुदान सब्सिडी बढ़ेगी!


हालांकि इन सबों के बीच कुछ किसान नदी कुआं से पटवन कर धान लगाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन ऐसे किसानों की संख्या दो-चार ही हैं. इन किसानों का भी कहना हैं कि अभी तो वो किसी तरह पटवन कर धान रोप दे रहे हैं लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया तो यह फसल भी मर जाएगी. इसको लेकर मायूस किसान सरकार की मदद की गुहार लगा रहे हैं.

देखें पूरी खबर
15 प्रतिशत कम डाला गया बिचड़ाः पिछले साल जून माह में 144.2 mm बारिश हुई थी. जबकि इस वर्ष जून में मात्र 92.8 mm बारिश हुई. शुरुआत में ही बारिश कम हुई तो किसानों ने बिचड़ा भी कम लगाया. आंकड़ों के अनुसार जिला में 88 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है. जबकि 8800 हेक्टेयर में धान का बिचड़ा तैयार किया जाता है. बारिश की कमी के कारण जिलेभर में इस साल 85 प्रतिशत बिचड़े ही खेतों में डाले गए. बताया जा रहा हैं कि जो बिचड़े खेत में डाले गए थे उसमें से 40% बिचड़े बारिश की कमी के कारण खराब हो चुका है. दो तीन दिन से हो रही मामूली बारिश से अगर बिचड़ों में जान आ सकी तो किसानों को कुछ राहत मिल सकती है.
आकस्मिक फसल योजना के लिए रहें तैयार: जिला कृषि पदाधिकारी सुरेंद्र सिंह (District Agriculture Officer Surendra Singh) ने बारिश की कमी होने पर विभाग की तैयारी की जानकारी दी है. बताया कि आकस्मिक फसल योजना तैयार की जा रही है। जिससे किसानों को लाभ मिलेगा. जिस तरह की बारिश हो रही हैं उसे देखते हुए किसान पंक्ति में अब सीधी बुआई करें. कम दिनों के किस्मवाले धान की बुआई करना उचित हैं. ऊपरी जमीन में दलहन, तेलहन व मक्का की अधिक बुआई करने का सुझाव किसानों को दिया जा रहा है.
जिला को सुखाड़ क्षेत्र घोषित करने की मांगः मौसम की बेरुखी के बाद जिला को सुखाड़ क्षेत्र घोषित करने की मांग (declare district as drought prone area) भी तेज हो गई है. भाकपा माले की इकाई द्वारा इसे लेकर जिला के विभिन्न प्रखंड में धरना-प्रदर्शन भी किया गया है. माले के नेताओं का साफ कहना हैं कि अब धान की फसल हो नहीं सकती. किसानों द्वारा लगाया गया बिचड़ा भी खराब हो चुका है, ऐसे में किसानों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए.
हाल के वर्षों में धान की खेतीः पिछले दो तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो जिला में निर्धारित लक्ष्य से अधिक धान रोपनी हुई थी और पैदावार भी बंपर हुई थी. जो आंकड़े हैं उसके अनुसार वर्ष 2020-21 ने लक्ष 88000 हेक्टेयर पर धान लगाने का था. इस लक्ष्य से अधिक 88067 हेक्टेयर में धान लगाया गया जबकि 3.24 लाख एमटी धान का उत्पादन हुआ था. इसी तरह वर्ष 2021-22 में 88000 हेक्टेयर से अधिक 88798 हेक्टेयर में रोपनी हुई थी और उत्पादन 3.33 लाख एमटी हुआ था. जबकि इस बार भी लक्ष्य 88 हजार हेक्टेयर में धान लगाने का है पर रोपनी लगभग शून्य ही है.

गिरिडीहः बेहतर बारिश की उम्मीद पाले किसानों संग मानसून ने दगाबाजी (lack of rain in Giridih) की. जहां पिछले वर्ष 20-25 जुलाई तक लगभग 300 mm बारिश हुई थी. वहीं इस वर्ष जुलाई माह में मात्र 40-42 mm बारिश ही हुई है. ऐसे में धान रोपनी नहीं हो सकी हैं. जबकि 10-15 जुलाई से ही धान रोपने का काम हर वर्ष शुरू हो जाता था. इस बार तो धान रोपनी की जगह किसानों को बिचड़ा बचाना भी मुश्किल भरा रहा. बारिश की जो कमी रही इससे इस वर्ष सुखाड़ का डर भी किसानों को सताने लगा हैं. दो तीन दिनों से कुछ बारिश हो रही हैं लेकिन यह वर्षा नाकाफी (low rainfall in Monsoon) है.

इसे भी पढ़ें- राज्य में सुखाड़ के आसार पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ मंथन, शॉर्ट टर्म और वैकल्पिक फसल पर जोर, बीज अनुदान सब्सिडी बढ़ेगी!


हालांकि इन सबों के बीच कुछ किसान नदी कुआं से पटवन कर धान लगाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन ऐसे किसानों की संख्या दो-चार ही हैं. इन किसानों का भी कहना हैं कि अभी तो वो किसी तरह पटवन कर धान रोप दे रहे हैं लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया तो यह फसल भी मर जाएगी. इसको लेकर मायूस किसान सरकार की मदद की गुहार लगा रहे हैं.

देखें पूरी खबर
15 प्रतिशत कम डाला गया बिचड़ाः पिछले साल जून माह में 144.2 mm बारिश हुई थी. जबकि इस वर्ष जून में मात्र 92.8 mm बारिश हुई. शुरुआत में ही बारिश कम हुई तो किसानों ने बिचड़ा भी कम लगाया. आंकड़ों के अनुसार जिला में 88 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है. जबकि 8800 हेक्टेयर में धान का बिचड़ा तैयार किया जाता है. बारिश की कमी के कारण जिलेभर में इस साल 85 प्रतिशत बिचड़े ही खेतों में डाले गए. बताया जा रहा हैं कि जो बिचड़े खेत में डाले गए थे उसमें से 40% बिचड़े बारिश की कमी के कारण खराब हो चुका है. दो तीन दिन से हो रही मामूली बारिश से अगर बिचड़ों में जान आ सकी तो किसानों को कुछ राहत मिल सकती है.
आकस्मिक फसल योजना के लिए रहें तैयार: जिला कृषि पदाधिकारी सुरेंद्र सिंह (District Agriculture Officer Surendra Singh) ने बारिश की कमी होने पर विभाग की तैयारी की जानकारी दी है. बताया कि आकस्मिक फसल योजना तैयार की जा रही है। जिससे किसानों को लाभ मिलेगा. जिस तरह की बारिश हो रही हैं उसे देखते हुए किसान पंक्ति में अब सीधी बुआई करें. कम दिनों के किस्मवाले धान की बुआई करना उचित हैं. ऊपरी जमीन में दलहन, तेलहन व मक्का की अधिक बुआई करने का सुझाव किसानों को दिया जा रहा है.
जिला को सुखाड़ क्षेत्र घोषित करने की मांगः मौसम की बेरुखी के बाद जिला को सुखाड़ क्षेत्र घोषित करने की मांग (declare district as drought prone area) भी तेज हो गई है. भाकपा माले की इकाई द्वारा इसे लेकर जिला के विभिन्न प्रखंड में धरना-प्रदर्शन भी किया गया है. माले के नेताओं का साफ कहना हैं कि अब धान की फसल हो नहीं सकती. किसानों द्वारा लगाया गया बिचड़ा भी खराब हो चुका है, ऐसे में किसानों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए.
हाल के वर्षों में धान की खेतीः पिछले दो तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो जिला में निर्धारित लक्ष्य से अधिक धान रोपनी हुई थी और पैदावार भी बंपर हुई थी. जो आंकड़े हैं उसके अनुसार वर्ष 2020-21 ने लक्ष 88000 हेक्टेयर पर धान लगाने का था. इस लक्ष्य से अधिक 88067 हेक्टेयर में धान लगाया गया जबकि 3.24 लाख एमटी धान का उत्पादन हुआ था. इसी तरह वर्ष 2021-22 में 88000 हेक्टेयर से अधिक 88798 हेक्टेयर में रोपनी हुई थी और उत्पादन 3.33 लाख एमटी हुआ था. जबकि इस बार भी लक्ष्य 88 हजार हेक्टेयर में धान लगाने का है पर रोपनी लगभग शून्य ही है.
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