गिरिडीह: लाउंड्री का काम सालों भर चलता है. घरों के कपड़ों से अधिक होटल, नर्सिंग होम से कपड़े धुलने के लिए लाउंड्री में आता है, लेकिन कोरोना काल में लाउंड्री में भी कपड़े नहीं पहुंच रहे हैं, जिसके कारण इससे जुड़े लोगों के रोजगार पर ग्रहण लग गया है. गिरिडीह के लाउंड्री संचालक भी पूरी तरह परेशान हैं. यहां शहरी इलाके में लाउंड्री की लगभग एक दर्जन दुकानें हैं, जबकि शहर से बाहर ग्रामीण इलाके, कसबे और प्रखंड क्षेत्र में भी लगभग 300 परिवार इस काम से जुड़े हुए हैं.
क्या कहते हैं इस उद्योग से जुड़े लोग
लाउंड्री के संचालक नरेश रजक का कहना है कि मार्च से ही काम प्रभावित होने लगा था, अब तो एक दिन में 200-300 रुपये कमाना भी दूभर हो गया है. वहीं, लाउंड्री संचालक सोनू रजक भी बताते हैं कि कोरोना काल में होटल और नर्सिंग होम से भी कपड़े नहीं आ रहे हैं. लाउंड्री में काम करने वाला नागेश्वर रजक का कहना है कि इस महामारी के दौरान उसकी आमदनी प्रभावित हुई है. पहले कपड़ा ज्यादा आता था तो उसी तरह कमाई होती थी, लेकिन अब कपड़ा कम आ रहा है.
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सरकार से मदद की गुहार
पपरवाटांड में कपड़ा धोने और उसे आयरन करके घरों तक पहुंचाने वाले गुजर रजक का कहना है कि महामारी में नाम मात्र का कपड़ा आ रहा है. पुलिस लाइन में रहनेवाले कर्मी भी कपड़े नहीं दे रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. इस उद्योग से जुड़े लोगों को सरकार से आर्थिक सहायता मिलना चाहिए.