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मकर पर्व पर ढेकी से बने पीठा की मिठास होती है बेहद खास, आदिवासी परंपरा से बने व्यंजन का जायका बना देता है दीवाना

Pitha dish made from Dheki. मकर संक्रांति को हर राज्य के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. इस दिन चूड़ा दही खाने की भी परंपरा है. वहीं झारखंड के आदिवासी इस दिन खास पकवान बनाते हैं जिसका नाम है पीठा. इस व्यंजन को खूब पसंद किया जाता है.

Pitha dish made from Dheki
Pitha dish made from Dheki
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 13, 2024, 10:26 AM IST

Updated : Jan 13, 2024, 10:46 AM IST

मकर पर्व पर ढेकी से बने पीठा की मिठास होती है बेहद खास

जमशेदपुर: झारखंड में आदिवासी समाज के लिए मकर संक्रांति का पर्व खास होता है. प्रकृति की पूजा करने वाले इस समाज में आज भी पुरानी परंपरा को बखूबी निभाया जा रहा है. मकर पर्व में आदिवासी समाज में बनने वाला पीठा आज भी देसी तरीके से ही बनता है. इसकी मिठास आज भी लोगों को पसंद आती है.

झारखंड में प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपने सभी पर्व त्योहारों में अपनी पुरानी परंपरा को निभाते हैं. साल के पहले माह में मनाए जाने वाला मकर संक्रांति के पर्व के लिए आदिवासी समाज के लोग एक महीने पहले से ही तैयारी करते हैं. घर की साफ सफाई के साथ घरों को आकर्षक रंगों से पुताई करते हैं. मकर में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. उन व्यंजनों में पीठा का महत्व सबसे ज़्यादा होता है. महिलाये पीठा बनाने मे काफी मेहनत करती हैं.

आज जहां काम को आसान करने के कई तरह की मशीन उपलब्ध हैं, वहीं आदिवासी समाज में आज भी ग्रामीण महिलाएं देसी तरीके से ही पीठा बनाती हैं. जिसका स्वाद लोगों को खूब पसंद आता है. महिलायें पहले तो लकड़ी से बने ढेकी में अरवा चावल की कुटाई करती हैं. एक तरफ पैर के सहारे ढेकी की बड़ी लकड़ी के एक छोर को दबाया जाता है और लकड़ी के दूसरे छोर से भीगे हुए चावल की कुटाई होती है. शकुंतला बताती हैं की ढेकी हमारी पुरानी परंपरा है. ढेकी के चावल से बने पीठा का स्वाद काफी अच्छा होता है. अब कुछ ही घरों मे ढेकी देखने को मिलता है ढेकी चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाता है.

घर के आंगन में मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है, जिसमें लकड़ी को जलावन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी से बने बर्तन मे गुड़ का रस बनाया जाता है. रस बनने के बाद उसमे कूटे हुए चावल को डाल कर मिलाया जाता है, जिससे गुड़ का रस गाढ़ा हो जाता है. इसके बाद चूल्हे पर कढ़ाई में तेल डाल कर गर्म किया जाता है और फिर उसमें गुड़ चावल के मिश्रण के छोटे छोटे लोइया बनाकर उस तेल मे डाला जाता है. इसके पक जाने के बाद पीठा बन जाता है फिर उसे टोकरी मे रखा जाता है.

पीठा बनाने वाली सीता बताती हैं कि मकर संक्रांति में पीठा का सबसे ज्यादा महत्व होता है. बिना किसी मिलावट के पीठा बनता है और तीन चार महीने तक खराब नहीं होता. इसे खाने बनाने से कोई नुकसान भी नहीं होता. बल्कि ये शरीर के लिए काफी फायदेमंद है. तीन तरह के पीठा बनाए जाते हैं. पहला गुड़ पीठा. दूसरा चीनी पीठा और तीसरा मास पीठा जिसे आदिवासी समाज में जिल पीठा कहते है. मकर पर्व के दिन हम एक दूसरे को पीठा खिलाते है जिससे हमारे बीच संबंधों में मिठास बनी रहे.

सानया टुडू बताती हैं कि मकर पर्व में काफी तरह के व्यजन बनते हैं, लेकिन पीठा सबसे खास होता है. आज ढेकी लुप्त हो रहा है, यह हमारे पूर्वजों की देन है. हम इसे बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे हमारी पुरानी परम्परा और संस्कृति कायम रहे.

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मकर संक्रांति में पीठा की मिठास, पकवान में परंपरा की महक

मकर पर्व पर ढेकी से बने पीठा की मिठास होती है बेहद खास

जमशेदपुर: झारखंड में आदिवासी समाज के लिए मकर संक्रांति का पर्व खास होता है. प्रकृति की पूजा करने वाले इस समाज में आज भी पुरानी परंपरा को बखूबी निभाया जा रहा है. मकर पर्व में आदिवासी समाज में बनने वाला पीठा आज भी देसी तरीके से ही बनता है. इसकी मिठास आज भी लोगों को पसंद आती है.

झारखंड में प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपने सभी पर्व त्योहारों में अपनी पुरानी परंपरा को निभाते हैं. साल के पहले माह में मनाए जाने वाला मकर संक्रांति के पर्व के लिए आदिवासी समाज के लोग एक महीने पहले से ही तैयारी करते हैं. घर की साफ सफाई के साथ घरों को आकर्षक रंगों से पुताई करते हैं. मकर में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. उन व्यंजनों में पीठा का महत्व सबसे ज़्यादा होता है. महिलाये पीठा बनाने मे काफी मेहनत करती हैं.

आज जहां काम को आसान करने के कई तरह की मशीन उपलब्ध हैं, वहीं आदिवासी समाज में आज भी ग्रामीण महिलाएं देसी तरीके से ही पीठा बनाती हैं. जिसका स्वाद लोगों को खूब पसंद आता है. महिलायें पहले तो लकड़ी से बने ढेकी में अरवा चावल की कुटाई करती हैं. एक तरफ पैर के सहारे ढेकी की बड़ी लकड़ी के एक छोर को दबाया जाता है और लकड़ी के दूसरे छोर से भीगे हुए चावल की कुटाई होती है. शकुंतला बताती हैं की ढेकी हमारी पुरानी परंपरा है. ढेकी के चावल से बने पीठा का स्वाद काफी अच्छा होता है. अब कुछ ही घरों मे ढेकी देखने को मिलता है ढेकी चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाता है.

घर के आंगन में मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है, जिसमें लकड़ी को जलावन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी से बने बर्तन मे गुड़ का रस बनाया जाता है. रस बनने के बाद उसमे कूटे हुए चावल को डाल कर मिलाया जाता है, जिससे गुड़ का रस गाढ़ा हो जाता है. इसके बाद चूल्हे पर कढ़ाई में तेल डाल कर गर्म किया जाता है और फिर उसमें गुड़ चावल के मिश्रण के छोटे छोटे लोइया बनाकर उस तेल मे डाला जाता है. इसके पक जाने के बाद पीठा बन जाता है फिर उसे टोकरी मे रखा जाता है.

पीठा बनाने वाली सीता बताती हैं कि मकर संक्रांति में पीठा का सबसे ज्यादा महत्व होता है. बिना किसी मिलावट के पीठा बनता है और तीन चार महीने तक खराब नहीं होता. इसे खाने बनाने से कोई नुकसान भी नहीं होता. बल्कि ये शरीर के लिए काफी फायदेमंद है. तीन तरह के पीठा बनाए जाते हैं. पहला गुड़ पीठा. दूसरा चीनी पीठा और तीसरा मास पीठा जिसे आदिवासी समाज में जिल पीठा कहते है. मकर पर्व के दिन हम एक दूसरे को पीठा खिलाते है जिससे हमारे बीच संबंधों में मिठास बनी रहे.

सानया टुडू बताती हैं कि मकर पर्व में काफी तरह के व्यजन बनते हैं, लेकिन पीठा सबसे खास होता है. आज ढेकी लुप्त हो रहा है, यह हमारे पूर्वजों की देन है. हम इसे बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे हमारी पुरानी परम्परा और संस्कृति कायम रहे.

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Last Updated : Jan 13, 2024, 10:46 AM IST
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